शायर अकबर इलाहाबादी ने बतौर जज की थी नौकरी, जयंती पर पढ़िए उनकी बेहतरीन शायरी

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Akbar-Allahabadi-Biography

हास्य-व्यंग्य के शायर अकबर इलाहाबादी को शायरी की दुनिया का ‘बेताज़ बादशाह’ कहा जाता है। वे एक ऐसा शायर थे, जिसके अल्फाजों में इश्क़ की रूमानी खुशबू थी। वहीं, राजनीति पर सीधे तंज कसने में भी वे पीछे नहीं थे। समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता और धार्मिक ढोंग के प्रति विद्रोहपन उनके स्वभाव का हिस्सा था। इलाहाबादी का जन्म 16 नवंबर, 1846 को उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के बारां गांव में हुआ था। मह​ज़ मैट्रिक तक पढ़े-लिखे इलाहाबादी ने शायरी की दुनिया में खूब नाम कमाया। अज़ीम शायर अकबर इलाहाबादी की आज 177वीं बर्थ एनिवर्सरी के अवसर पर पढ़िए उनकी कुछ बेहतरीन शायरियां…

इलाहाबादी का पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगा

शायर अकबर इलाहाबादी का असली नाम सैयद अकबर हुसैन था। शुरुआती दिनों से ही उनका पढ़ने-लिखने में बहुत कम मन लगता था। शादी को लेकर उनका नज़रिया ऐसा था कि जब 15 साल के हुए तो खुद से 2-3 साल बड़ी लड़की से पहली शादी कीं। कुछ ही समय बाद दूसरी शादी भी कर लीं। आगे चलकर इलाहाबादी को अपनी दोनों बीवियों से दो-दो संतानें हुईं। पढ़ाई-लिखाई से कोई खास वास्ता ना रखते हुए भी किसी तरह उन्होंने वकालत तक की पढ़ाई कर ली और इलाहाबाद के सेशन कोर्ट में जज के रूप में नियुक्त हुए।

Akbar-Allahabadi

वकालत के बावजूद इलाहाबादी की रूह में बसती थी शायरी

अकबर इलाहाबादी वकालत तो कर रहे थे, लेकिन उनका शायरी से एक अलग ही रिश्ता था। अपनी शायरी के जरिए वो दिल के हालातों को बयां करने के लिए हमेशा बेकरार रहते थे। घरेलू हालात, परिवार से करीबी, तन्हाई, अकेलेपन का गम.. ये सब उनकी शायरियों में दिखाई देता था। इसके अलावा वो एक मिलनसार शख्सियत होने के साथ ही अपनी रचनाओं में हास्य और व्यंग्य भी खूब किया करते थे।

जवानी बेपरवाही में तो आगे की उम्र गुजरी तन्हाई में…

शायर इलाहाबादी की शायरियों में जो हंसी के बोल थे, उतनी ही उनकी निजी जिंदगी तन्हाई में गुजरीं। अकबर इलाहाबादी के बेटे और पोते की बहुत कम उम्र में मौत होने के बाद उनकी शायरियों में अकेलेपन की महक आने लगीं, तभी उन्होंने लिखा-

‘आई होगी किसी को हिज्र में मौत, मुझ को तो नींद भी नहीं आती।’

1.”दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ”

2.”इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता”

3.”हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती”

4.”आई होगी किसी को हिज्र में मौत
मुझ को तो नींद भी नहीं आती”

5.”लोग कहते हैं बदलता है ज़माना सब को
मर्द वो हैं जो ज़माने को बदल देते हैं”

6.”हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना”

7.”नाज़ क्या इस पे जो बदला है ज़माने ने तुम्हें
मर्द हैं वो जो ज़माने को बदल देते हैं”

8.”लीडरों की धूम है और फॉलोवर कोई नहीं
सब तो जेनरेल हैं यहाँ आख़िर सिपाही कौन है”

9.”पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा
लो आज हम भी साहिब-ए-औलाद हो गए”

10.”आह जो दिल से निकाली जाएगी
क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी”

11.”इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैं
कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है”

12.”खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो”

13.”बस जान गया मैं तिरी पहचान यही है
तू दिल में तो आता है समझ में नहीं आता”

14.”हम क्या कहें अहबाब क्या कार-ए-नुमायाँ कर गए
बी-ए हुए नौकर हुए पेंशन मिली फिर मर गए”

15.”दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त
हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते”

16.”हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं
कि जिन को पढ़ के लड़के बाप को ख़ब्ती समझते हैं”

17.”मैं भी ग्रेजुएट हूँ तुम भी ग्रेजुएट
इल्मी मुबाहिसे हों ज़रा पास आ के लेट”

18.”ग़ज़ब है वो ज़िद्दी बड़े हो गए
मैं लेटा तो उठ के खड़े हो गए”

19.”जब मैं कहता हूँ कि या अल्लाह मेरा हाल देख
हुक्म होता है कि अपना नामा-ए-आमाल देख”

20.”ख़ुदा से माँग जो कुछ माँगना है ऐ ‘अकबर’
यही वो दर है कि ज़िल्लत नहीं सवाल के बा’द”

मशहूर शायर इलाहाबादी का निधन

दुर्भाग्यवश 15 फरवरी, 1921 में 74 साल की उम्र में इस अज़ीम शायर ने दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन शायरी पसंद करने वाले लोगों के दिल में वह आज भी बसते हैं। उर्दू जुब़ान के शायर अक़बर इलाहाबादी एक ऐसे मुकम्मल शायर हुए हैं, जिनका लिखा हर पीढ़ी के बीच पढ़ा जाएगा।

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