भारत में होने वाली मौतों में वायु प्रदूषण तीसरा बड़ा कारण, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

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आज 5 जून है और पूरी दुनिया के लोगों द्वारा हमारी धरती को सुन्दर बनाने का संकल्प दोहराया जा रहा है, क्योंकि आज विश्व पर्यावरण दिवस है। वर्ष 1974 से संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा इस दिवस को मनाया जा रहा है। हर वर्ष इस दिवस पर पर्यावरण को लेकर ज्वलंत मुद्दे पर एक थीम का चयन किया जाता है और पूरी दुनिया के लोगों में उस पर्यावरण समस्या के प्रति जागरूकता लाने का प्रयास किया जाता है। इस वर्ष की थीम है — वायु प्रदूषण।

वायु प्रदूषण के खतरों से आज कौन परिचित नहीं है, फिर भी पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के लिए इस दिवस का उद्देश्य लोगों को जागरूक करना है। वायु प्रदूषण वर्तमान में चिंता का विषय बना हुआ है।

जब से औद्योगिक क्रांति आयी है, तब से पर्यावरण असंतुलन दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। हर व्यक्ति अपना भौतिक विकास चाहता है, फिर चाहे पर्यावरण दूषित हो या पृथ्वी का तापमान बढ़े। बस इसी चाहत का परिणाम है कि मानव ने इन भौतिक संसाधनों का उपयोग अंधाधुंध तरीके से किया है और आज हमारे सामने इसके दुष्परिणाम मौजूद है।

स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक लंबे समय तक घर से बाहर रहने या घर में वायु प्रदूषण की वजह से 2017 में स्ट्रोक, मधुमेह, दिल का दौरा, फेफड़े के कैंसर या फेफड़े की पुरानी बीमारियों से करीब पूरी दुनिया में करीब 50 लाख लोगों की मौत हुई। अगर इस रिपोर्ट के तथ्यों पर बात करें तो अकेले भारत में वायु प्रदूषण से हर साल करीब 12 लाख लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों का आंकड़ा, स्वास्थ्य संबंधी कारणों से होने वाली मौत को लेकर तीसरा सबसे खतरनाक कारण है। देश में सबसे ज्यादा मौतें सड़क हादसों और मलेरिया के कारण होती है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2017 में भारत 12 लाख और चीन में 14 लाख मौतें हुई हैं। वायु प्रदूषण के बढ़ते खतरे के कारण दक्षिण एशियाई देशों के बच्चों की औसत उम्र में ढाई साल (30 महीने) की कमी आई है, जबकि वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा 20 महीने का है।

वायु प्रदूषण नियंत्रित हो तो बढ़ जाएगी उम्र

अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के मुताबिक​ अगर लोगों द्वारा पृथ्वी पर बढ़ते वायु प्रदूषण को नियंत्रित करते हुए इसमें सुधार किया जाए तो वैश्विक स्तर पर हर व्यक्ति की उम्र में ढाई वर्ष की बढ़ोतरी हो सकती है। भारत और चीन की बात करें तो वायु प्रदूषण से बेहाल चीन ने इस पर लगाम कसने के लिए कई बड़े फैसले लिए और धुआं निकालने वाले प्लांट और वाहनों के इस्तेमाल पर रोक लगाने संबंधी कई बड़े फैसले उठाते हुए कुछ हद तक सुधार किया लेकिन जीवन प्रत्याशा दर में अभी भी औसतन 3.9 साल की कमी है।

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भारत में घटी जीवन प्रत्याशा

भारत में राजधानी दिल्ली सहित कई शहरों में वायु प्रदूषण तेज गति से बढ़ रहा है। जिसके कारण भारतीय लोगों की जीवन प्रत्याशा में गिरावट आई है। दिल्ली के समीप दो शहरों हापुड़ और बुलंदशहर के लोगों की जीवन प्रत्याशा की दर में निराशाजनक कमी आई है और यहां पर जीवन प्रत्याशा में 12 साल से भी ज्यादा कम हो गई है जो दुनिया में किसी भी शहर के मुकाबले बहुत ज्यादा है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 30 लाख मौत तो सीधे तौर पर पीएम (पार्टिकल पलूशन) 2.5 से जुड़ी हैं। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्र हैं। रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर के करीब 3.6 अरब लोग घरों में रहते हुए वायु प्रदूषण के शिकार हो गए।

ये गैसें हैं जहरीली

वाहनों, उद्योगों और अन्य उपकरणों से निकलने वाली गैसों में सल्फर ऑक्साइड (कोयले और तेल के जलने से), नाइट्रोजन ऑक्साइड, ओजोन, कार्बन मोनोक्साइड आदि से वायु प्रदूषित होती है। कृषि प्रक्रिया से उत्सर्जित अमोनिया इन दिनों सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाली गैस है। पहले नंबर पर अमोनिया (99.39), पार्टिकल पलूशन (पीएम 2.5) (77.86), वोलाइट ऑर्गेनिक कम्पाउंड्स (वीओसी) 54.01 और नाइट्रोजन ऑक्साइड 49.41 स्तर पर प्रदूषण बढ़ा रहे हैं।

10 में से 7 भारतीय शहर सबसे प्रदूषित

मार्च के महीने में एयर विजुअल और ग्रीनपीस की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 में दुनिया के दस सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से सात शहर भारत के हैं, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे गुरुग्राम को सबसे प्रदूषित शहर के रूप में शामिल किया गया। गुरुग्राम के बाद गाजियाबाद, फैसलाबाद (पाकिस्तान), फरीदाबाद, भिवानी, नोएडा, पटना, होटन (चीन), लखनऊ और लाहौर का नंबर आता है।

वायु में दूषित गैसों का स्तर पीएम 2.5 के स्तर से ज्यादा होने पर धुंध बढ़ जाती है और साफ दिखाई नहीं देता है। इन कणों का हवा में स्तर बढ़ने का बच्चों और बुजुर्गों पर बुरा असर पड़ता है।

माना हर देश वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पूरे प्रयास कर रहे हो, लेकिन जब तक हम भौतिक संसाधनों का मितव्ययी बनकर उपयोग नहीं करेंगे तब तक ऐसा संभव नहीं है।

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