पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने 24 अक्टूबर को एक फैसले में देश की तीनों टेलीकॉम कंपनियों को बड़ा झटका दिया था। इसके अनुसार कोर्ट ने कहा था कि दूरसंचार कंपनियों के सरकार की बकाया राशि (एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू- AGR) में उनके दूरसंचार सेवाओं से इतर राजस्व को शामिल किया जाना कानून के अनुसार ही है। इस पर 22 नवंबर को एयरटेल, वोडाफोन-आइडिया और टाटा टेलीसर्विसेज ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। इसमें फैसले पर पुनर्विचार करने और ब्याज, जुर्माना और जुर्माने पर ब्याज को माफ करने की अपील की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही उनके लिए 23 जनवरी, 2020 तक की डेडलाइन भी तय कर दी थी। जिसकी डेडलाइन खत्मक होने तक एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया ने बकाया राशि का भुगतान नहीं किया है। वहीं रिलायंस जियो ने 195 करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया है।
अब आगे क्या होगा?
एजीआर के बकाया भुगतान नहीं करने वाली टेलीकॉम कंपनियों को सरकार की ओर से मामूली राहत दी गई है और टेलीकॉम विभाग ने इन कंपनियों के खिलाफ फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं करने का निर्णय लिया है। डिपार्टमेंट ने टेलीकॉम कंपनियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में भुगतान की डेडलाइन बढ़ाने को लेकर दायर याचिका को देखते हुए ये फैसला लिया है।
दरअसल, भारती एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया ने टेलीकॉम डिपार्टमेंट को पत्र भेजकर कहा था कि वे 88,624 करोड़ रुपये के बकाये का भुगतान निर्धारित समयसीमा में नहीं करेंगी। कंपनियां इस भुगतान के संबंध में समयसीमा बढ़ाने को लेकर उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका पर होने वाली सुनवाई का इंतजार करेंगी।
यहां बता दें कि बीते मंगलवार को टेलीकॉम कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर डेडलाइन बढ़ाने की मांग की थी। इस मामले की अगले हफ्ते सुनवाई होने वाली है। इससे पहले टेलीकॉम कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट से फैसले पर विचार करने के लिए के लिए याचिका दायर की थी। इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
क्या होता है एजीआर
भारत सरकार और टेलीकॉम कंपनियों के बीच एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू यानी एजीआर का मामला 14 साल पुराना है। जिसके अंतर्गत संचार मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम द्वारा टेलीकॉम कंपनियों से लिए जाने वाले यूजेज और लाइसेंसिग फीस होती है जिसे एजीआर कहते हैं। इसको दो भागों में बांटा गया है- स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज और लाइसेंसिंग फीस, जो क्रमश 3-5 फीसदी और 8 फीसदी होता है।