रिपोर्ट में खुलासा: बंगाल में इलेक्शन के बाद 15 हजार हिंसा के मामले में सात हजार महिलाएं प्रभावित, 25 लोगों की हुई मौत

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पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हुई राजनीतिक हिंसा की जांच करने गई एक एजेंसी की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा के करीब 15 हजार मामले हुए, जिनमें 25 लोगों की जान गई और सात हजार से अधिक महिलाओं का उत्पीड़न हुआ। केंद्र सरकार ने इस रिपोर्ट के आधार पर उचित कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी. किशन रेड्डी के अनुसार, ‘कॉल फॉर जस्टिस’ नाम की एक संस्था ने केंद्र सरकार को यह रिपोर्ट सौंपी है।

अधिकांश घटनाएं पूर्व नियोजित, संगठित और षड्यंत्रकारी: एजेंसी

एजेंसी की रिपोर्ट में दावा किया गया कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद 2 मई की रात से शुरू हुई हिंसा की वारदातें राज्यभर के गांवाें और कस्बों में हुईं। इसके स्पष्ट संकेत हैं कि अधिकांश घटनाएं छिटपुट नहीं बल्कि पूर्व नियोजित, संगठित और षड्यंत्रकारी हैं। बता दें कि इस रिपोर्ट को पांच सदस्यीय टीम ने तैयार किया है, जिसमें दो सेवानिवृत्त आईएएस और एक आईपीएस अधिकारी शामिल हैं। इस टीम ने हिंसा के बाद बंगाल का दौरा किया और हिंसा वाले स्थानों पर जाकर इससे प्रभावित हुए लोगों से बात करने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है। रेड्डी ने कहा, केंद्रीय गृह मंत्रालय इस रिपोर्ट की समीक्षा करेगा और इसकी सिफारिशों को लागू किया जाएगा।

राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को चुप करने अंजाम दी गई वारदातें

जांच एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, हिंसा की कमान पेशेवर अपराधियों, माफिया डॉन और आपराधिक गैंग ने संभाली थी। इन सभी के नाम पुलिस रिकॉर्ड में पहले से मौजूद हैं। इससे साफ है कि हिंसा की यह वारदातें राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को चुप करने के लिए अंजाम दी गईं। इसमें एक खास वर्ग को निशाना बनाया गया। संपत्तियों को नष्ट किया गया, लोगों की जान ली गई और सामान लूटा गया। इसमें सबसे अधिक नुकसान दिहाड़ी मजदूरों को पहुंचा। रिपोर्ट के आधार पर रेड्डी ने कहा पश्चिम बंगाल के 16 जिले हिंसा से प्रभावित हुए। कई लोगों को हिंसा के कारण बंगाल छोड़कर असम, झारखंड और ओडिशा में शरण लेनी पड़ी।

डर के मारे लोगों ने पुलिस से नहीं की शिकायत

रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि हिंसा के शिकार हुए अधिकतर लोग इतना डरे हुए थे कि उन्होंने पुलिस से इसकी शिकायत तक नहीं की। इसके दो प्रमुख कारण थे, पहला वे जानते थे कि पुलिस इस मामले में उनकी कोई मदद नहीं करेगी और दूसरा शिकायत करने पर उन्हें दोबारा परेशान किया जाएगा, जान भी ली जा सकती है। यही नहीं जिन लोगों ने हिम्मत कर रिपोर्ट दर्ज भी कराई, उन्हें पुलिस ने अपराधियों से सुलह करने की नसीहत देकर लौटा दिया और उनकी रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की।

एजेंसी ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रिपोर्ट पेश करने की दी सलाह

कॉल फॉर जस्टिस समूह ने अपनी इस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश करने की सलाह दी है। ताकि इन साक्ष्यों, गवाहियों और जमीनी रिपोर्टिंग के आधार पर सर्वोच्च अदालत इस मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित कर सकता है। इससे मामले की जिम्मेदार नेतृत्व में बारीकी से जांच हो सकेगी।

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