कभी ना कभी सफर के दौरान साथ यात्री को जगह देने के लिए आपने थोड़ा एडजस्ट किया होगा। इससे आपको थोड़ी परेशानी जरूर हुई होगी लेकिन आपको यह संतुष्टि मिली होगी कि आपने किसी के सफर को आरामदायक बना दिया। भले ही उससे आपकी मुलाक़ात फिर नहीं होगी लेकिन उस यात्री के दिल में आप हमेशा के लिए बस गए होंगे।
इसे विस्तृत रूप में देंखे तो हम सब जिंदगी का सफर ही तो कर रहे हैं। जिंदगी एक लम्बी यात्रा है जिसे हमें अलग-अलग स्टॉप के साथ पूरा करना है। यह यात्रा कितनी लम्बी है यह किसी को नहीं पता। हां, इतना जरूर है कि इस यात्रा को आरामदायक बनाना हमारे ही हाथ में है।
अक्सर जिंदगी में ऐसे कई पल आते हैं, जब जिंदगी चाहती है कि हम एडजस्ट करें। परिस्थिति विशेष में खुद को ढालने की कोशिश करें ताकि परेशानियां कम हो सकें। लेकिन अक्सर एडजस्ट करने की बात में हम पीछे हटने की कोशिश करते हैं। हम खुद को परेशान नहीं करना चाहते भले ही इससे दूसरों को कितनी की परेशानी क्यों ना हो जाए।
दरअसल, हम कुछ देर की परेशानी तो देख लेते हैं लेकिन एडजस्ट करने के बाद जिंदगी भर के लिए मिलने वाली खुशी को नजरअंदाज कर देते हैं। बस, यही फर्क समझने की ज़रूरत है। ज़िंदगी के किसी भी रिश्ते में परिस्थितियों के अनुसार एडजस्टमेंट करना ही होता है, कभी बड़े स्तर पर तो कभी मामूली-सा। यदि सही समय पर समझदारी के साथ एडजस्टमेंट कर लिया जाए तो जिंदगी का सफर और हसीन हो जाता है और छोटी—मोटी समस्याएं कब छोटे स्टेशनों की तरह निकल जाती हैं, पता ही नहीं चलता।
एडजस्टमेंट बिना आपा खोए करना पड़ता है, तब ही इसके बेहतर परिणाम मिलते हैं। यकीनन इस दौरान नकारात्मक विचार हावी होने की कोशिश करते हैं और मानसिक तौर पर परेशानियां भी बढ़ती हैं लेकिन मुस्कुराते हुए इनसे निपटा जाए तो सारी दिक्कतें धीरे—धीरे दूर होने लगती हैं।
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