बॉलीवुड में आज के दौर में ऐसे कई अभिनेता आ रहे हैं, जो गायिका के क्षेत्र में भी उस्ताद हैं। मगर 40-50 के दशक में ऐसी महिला कलाकार की कल्पना करना भी मुश्किल था। उस दौर में एक अदाकारा ऐसी आईं, जिनकी अदाओं में गज़ब की नज़ाकत और आवाज़ में मंत्रमुग्ध कर देने वाली मौसिकी शामिल थीं। हम बात कर रहे हैं प्रसिद्ध अभिनेत्री व गायिका सुरैया की, जिन्होंने अपने हुस्न और हुनर से हिंदी सिनेमा के इतिहास में एक नई मिसाल कायम कीं। उनका पूरा नाम सुरैया जमाल शेख था। 15 जून को अभिनेत्री सुरैया की 94वीं बर्थ एनिवर्सरी है। इस खास अवसर पर जानिए उनके बारे में कुछ रोचक बातें…
माता-पिता ने चुना पाकिस्तान तो सुरैया को भाया हिंदोस्तां
‘वो पास रहें या दूर रहें, नुक्ताचीं है गमे दिल’ और ‘दिल ए नादां तुझे हुआ क्या है’ जैसे उनके गाए गीत सुनकर आज भी जेहन में सुरैया की तस्वीर उभर आती है। 15 जून, 1929 को पंजाब के गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में जन्मी सुरैया अपने माता-पिता नूरजहां और खुर्शीद बानो की इकलौती संतान थीं। उन्हें भारत से बड़ा प्यार था। वर्ष 1947 में देश की आजादी के बाद नूरजहां व खुर्शीद ने पाकिस्तान की नागरिकता ले ली, लेकिन सुरैया तब भी यहीं रहीं।
बतौर बाल कलाकार हुई बॉलीवुड में एंट्री
सुरैया ने कभी भी संगीत की शिक्षा नहीं ली थी, लेकिन आगे चलकर उनकी पहचान एक बेहतरीन अदाकारा के साथ ही एक अच्छी गायिका के रूप में भी बनीं। सुरैया ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के न्यू गर्ल्स हाई स्कूल से पूरी कीं। इसके साथ ही वह अपने घर पर ही कुरान और फारसी की शिक्षा भी लिया करती थीं। वर्ष 1937 में रिलीज हुई फिल्म ‘उसने सोचा था’ के ज़रिये सुरैया ने बतौर बाल कलाकार बॉलीवुड में डेब्यू किया था।
शूटिंग देखने गई और बन गई हीरोइन
अभिनेत्री सुरैया को सबसे पहले बड़ा काम अपने चाचा जहूर की मदद से मिला था। जहूर उन दिनों फिल्म इंडस्ट्री में बतौर खलनायक अपनी पहचान बना चुके थे। दरअसल, वर्ष 1941 में स्कूल की छुट्टियों के दौरान सुरैया एक बार मोहन स्टूडियो में फिल्म ‘ताजमहल’ की शूटिंग देखने गई थीं। वहां उनकी मुलाकात फिल्म के निर्देशक नानु भाई वकील से हुईं, जिन्हें सुरैया में फिल्म इंडस्ट्री का एक उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया था।
नौशाद साहब ने पहचाना सिंगिंग टैलेंट
नानूभाई ने उसी वक्त सुरैया को फिल्म के किरदार मुमताज महल के लिए चुन लिया था। वहीं आकाशवाणी के एक कार्यक्रम के दौरान संगीत सम्राट नौशाद ने जब सुरैया को गाते सुना, तब वह उनके गाने के अंदाज से काफी प्रभावित हुए। नौशाद ने अपने निर्देशन में कारदार साहब की फिल्म ‘शारदा’ में सबसे पहले सुरैया को गाने का मौका दिया। इस बीच सुरैया को महबूब खान की ‘अनमोल घड़ी’ में भी काम करने का मौका मिला।
नरगिस के लिए बन गई बड़ा कॉम्पिटीशन
हालांकि सुरैया फिल्म में सह-अभिनेत्री थी, लेकिन फिल्म के एक गाने ‘सोचा था क्या क्या हो गया’ से वह बतौर प्लेबैक सिंगर श्रोताओं के बीच अपनी पहचान बनाने में सफल रहीं। वर्ष 1949-50 में सुरैया के सिने कॅरियर में एक नया मोड़ आया और वो अपनी प्रतिद्वंदी अभिनेत्री नरगिस और कामिनी कौशल से भी आगे निकल गईं। इसका मुख्य कारण यह था कि सुरैया अभिनय में बाज़ीगर होने के साथ-साथ गाने भी गाया करती थीं।
देवानंद से फिल्म के सेट पर हुआ प्यार
बॉलीवुड अभिनेत्री सुरैया के पूरे सिने करियर में उनकी जोड़ी फिल्म अभिनेता देवानंद के साथ खूब जमीं। देव आनंद के साथ सुरैया की फिल्में जीत (1949) और दो सितारे (1951) दर्शकों के बीच काफी प्रसिद्ध रहीं। बता दें कि ये फिल्में इसलिए भी यादगार रही, क्योंकि फिल्म ‘जीत’ के सेट पर ही देवआनंद ने सुरैया से अपने प्रेम का इजहार किया था। खुद देवआनंद ने अपनी आत्मकथा ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ में सुरैया के साथ रिश्ते की बात कबूली है।
देव और सुरैया की रोमांटिक लव स्टोरी
सुरैया और देवानंद की जोड़ी वाली फिल्मों में ‘विधा जीत’, ‘शायर’, ‘अफसर’, ‘नीली’ जैसी फिल्में भी शामिल हैं। उन दिनों जब वो शूटिंग कर रहे थे, तो एक गाने की शूटिंग के दौरान देवानंद और सुरैया की नाव पानी में पलट गई थी। तब देवानंद ने ही सुरैया को डूबने से बचाया था। सुरैया इसके बाद देवानंद से बेइंतहा मोहब्बत करने लगीं थी, लेकिन सुरैया की नानी की इजाजत न मिलने पर ये जोड़ी अपनी जिंदगी में आगे नहीं बढ़ पाईं।
प्रधानमंत्री नेहरू भी थे सुरैया की प्रतिभा के कायल
वर्ष 1963 में फिल्म ‘रुस्तम सोहराब’ के बाद सुरैया ने खुद को फिल्म इंडस्ट्री से दूर कर दिया। लगभग तीन दशक तक अपनी जादुई आवाज और अभिनय से दर्शकों का दिल जीतने वाली अभिनेत्री सुरैया ने 31 जनवरी, 2004 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी सुरैया की महानता के बारे में कहा था कि उन्होंने मिर्जा गालिब की शायरी को आवाज देकर उनकी आत्मा को अमर बना दिया है।
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