स्पेशल: शादी के तीन साल बाद शुरु हुआ था सुरेश ओबेरॉय का फिल्मी कॅरियर

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भारतीय फिल्मों के कैरेक्टर एक्टर सुरेश ओबेरॉय आज अपना 74वां जन्मदिन मना रहे हैं। उनका जन्म देश के बंटवारे से पहले 17 दिसंबर, 1946 को बलूचिस्तान के क्वेटा में एक पंजाबी खत्री हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम आनंद सरूप ओबेरॉय और माता का नाम करतार देवी था। वर्ष 1947 में देश के विभाजन के एक साल के भीतर ही उनका परिवार भारत आ गया। ओबेरॉय परिवार शुरुआत में पंजाब के अमृतसर में रहा था, बाद में व्यापार के सिलसिले में हैदराबाद शिफ्ट हो गया। सुरेश ओबेरॉय का असल नाम ‘विशाल कुमार ओबेरॉय’ हैं। वह अभिनेता विवेक ओबेरॉय के पिता हैं और हिंदी फिल्मों के अलावा कई अन्य प्रमुख भाषाओं में भी काम कर चुके हैं। ऐसे में इस खास मौके पर जानते हैं उनकी ज़िंदगी के बारे में…

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स्कूल के दिनों में थे टेनिस और स्विमिंग चैम्पियन

सुरेश ओबेरॉय की ​स्कूली शिक्षा हैदराबाद के सेट जॉर्ज ग्रामर स्कूल में हुई थी। स्कूल के दिनों में वे खेलों में काफ़ी एक्टिव थे। सुरेश टेनिस और स्विमिंग चैम्पियन भी रहे थे। इसके साथ ही उन्होंने बॉय स्काउट में प्रेसिडेंट अवॉर्ड भी प्राप्त किया था। हैदराबाद में ​बसने के बाद उनके परिवार ने मेडिकल स्टोर्स की चेन शुरु कर दी। सुरेश के हाई स्कूल पास करते ही उनके पिता का निधन हो गया था, जिसके कारण उन्हें अपने परिवार की फार्मेसी चेन संभालनी पड़ी। बाद में वे एक्टिंग का जुनून लेकर मुंबई पहुंचे।

हालांकि, उनका एक्टिंग कॅरियर शादी के बाद शुरु हुआ। सुरेश ओबेरॉय पंजाबी, हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, तमिल और तेलुगु भाषाओं के अच्छे जानकार हैं। वे एक्टिंग के अलावा वॉइस आर्टिस्ट, मॉडल, टेलीविज़न एक्टर और टीवी होस्ट के रूप में भी काम कर चुके हैं।

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शादी के बाद शुरु हुआ फिल्मी कॅरियर

सुरेश ओबेरॉय की शादी 1 अगस्त, 1974 को उनसे करीब आठ साल जूनियर यशोधरा से मद्रास में हुई। उनकी पत्नी यशोधरा एक पंजाबी बिजनेस परिवार से आती है। सुरेश और यशोधरा दोनों के एक बेटा बॉलीवुड एक्टर विवेक ओबेरॉय और एक बेटी मेघना ओबेरॉय हैं। शादी के तीन साल बाद वर्ष 1977 में सुरेश ओबेरॉय का फिल्मी कॅरियर फिल्म ‘जीवन मुक़्त’ से शुरु हुआ। इसके बाद उन्होंने फिल्म ‘सुरक्षा’, ‘कर्तव्य’ और ‘काला पत्थर’ में काम किया। सुरेश ने साल 1980 में फिल्म ‘एक बार फ़िर’ में बतौर लीड काम किया, लेकिन उनकी यह फिल्म लोगों को ज्यादा पसंद नहीं आई थी।

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इसके बाद सुरेश ओबेरॉय ने फिल्म ‘एक बार कहो’, ‘साजन की सहेली’, ‘रक्षा’, ‘नारी’, मैं और मेरा हाथी’ जैसी फिल्मों में काम किया। लेकिन उन्हें सफ़लता और पहचान वर्ष 1982 में रिलीज हुई फिल्म ‘लावारिस’ से मिली। इस फिल्म में सुरेश की शानदार एक्टिंग के लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार के सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार के लिए नामांकन मिला। इसके बाद साल 1985 में उन्हें फिल्म ‘घर एक मंदिर’ के लिए फ़िर एक बार फिल्मफेयर के सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए नॉमिनेट हुए। वर्ष 1987 में रिलीज हुई फिल्म ‘मिर्च मसाला’ में उनकी एक्टिंग को खूब सराहना मिली और बेस्ट सर्पोटिंग एक्टर के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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ज्यादातर फिल्मों में पुलिस अफसर का रोल किया

सुरेश ओबेरॉय ने अपने फिल्मी कॅरियर में ज्यादातर फिल्मों में पुलिस इंस्पेक्टर या आर्मी अफसर की भूमिका निभाई है। वर्ष 1993 में उन्होंने फिल्म ‘गर्दिश’ में इंस्पेक्टर सैनी और ‘गेम’ में इंस्पेक्टर पवार का रोल प्ले किया। इसके बाद उन्होंने फिल्म ‘विजयपथ’ में इंस्पेक्टर राजेश सक्सेना और ‘किस्मत’ में एसीपी आनंद व फिल्म ‘दिलबर’ में डीसीपी श्रीधर आत्माराम वर्मा का किरदार निभाया।

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इसके बाद सुरेश ने ‘सोल्जर’, ‘लज्ज़ा’, ‘गदर: एक प्रेम कथा’, ‘अशोका’, ‘तलाश’, ‘मणिकर्णिका’, ‘कबीर सिंह’ और ‘पीएम नरेन्द्र मोदी’ जैसी फिल्मों में काम किया है। उन्हें उनके बेहतरीन काम के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया जा चुका है। सुरेश ओबेरॉय ने टेलीविज़न शो ‘धड़कन और ‘कश्मीर’ में भी काम किया। इसके अलावा उन्होंने टीवी शो ‘जीना इसी का नाम है’ को होस्ट किया और अपनी स्पष्ट एवं मधुर आवाज़ का जादू बिखेरा। सुरेश ब्रह्माकुमारीज जैसी मेडिटेशन ऑर्गनाइजेशन से भी जुड़े हुए हैं।

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