कैसे इस गांव के बच्चों की रातों-रात बदल गई जिंदगी, इस टीचर की कहानी अंदर तक झकझोर देगी

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छह भाईयों के परिवार में, वह गरीबी को खत्म करने के लिए बड़ा हुआ था। उसके पिता, महाराष्ट्र के तुलजापुर, उस्मानाबाद में कोतवाल (कांस्टेबल) के पद पर काम करते थे जिसके लिए उन्हें 130 रुपये का मामूली वेतन मिलता था जिससे आठ मुंह को खिलाना काफी मुश्किल था।

इसी वजह से, एक होनहार छात्र होने के बावजूद भी शौकतली को शादी करनी पड़ी भले ही वह उस समय क्लास 11वीं में ही पढ़ रहा था। यहां तक ​​कि परिवार के सदस्यों और गांववालों से परेशान होने के बावजूद भी उसने अपनी पढ़ाई को जारी रखा और कड़ा संघर्ष किया और अंत में बीएड की डिग्री हासिल की।

बीएड की डिग्री हासिल करने के बाद विश्वास भरे जोश में वो जब उस्मानाबाद में नौकरी की तलाश में निकला तो जो देखा उसने बहुत परेशान कर दिया। एक जगह टीचर बनने के लिए सामने से उससे 50,000 रुपये का भुगतान करने के लिए कहा गया। शिक्षक बनने का शौकतली का सपना उसी समय चकनाचूर हो गया। आखिरकार शौकतली ने तय किया कि बेहतर जीवन के लिए सबकुछ छोड़कर अब पुणे का रुख किया जाएगा।

अपने परिवार के साथ, शौकतली, जो सिलाई जानते थे उन्होंने अपनी स्किल को सुधारना शुरू कर दिया।

कुछ महीनों के लिए पुणे में एक स्थानीय दर्जी के यहां काम किया, जब तक कि उनके पास अपना छोटा बिजनेस शुरू करने के लिए पर्याप्त पैसे जमा नहीं हुए। आखिरकार एक किराए की सिलाई मशीन के साथ एक छोटे से किराए के कमरे में, दर्जी के रूप में अपनी पहली यात्रा शुरू की।

बेटे के स्कूल जिस दिन गए बदल गई जिंदगी

एक बार जब चीजें सुलझने लग गई तो एक शिक्षक की पुकार फिर शौकतली के अंदर से आने लगी। इसलिए, एक दिन वो जब अपने बेटे के स्कूल गए, जो कि तब 7वीं क्लास में था और वहां जाकर अपनी सेवाएं मुफ्त में देना शुरू कर दिया।

इसके अलावा सबसे अच्छी बात यह थी कि स्कूल के अधिकारियों ने इस काम में सहमति जताई और उन्हें एक शिक्षक के रूप में वहां काम करने के लिए कहा।

2000 से 2005 तक, शौकतली ने दिन में एक शिक्षक और शाम में एक दर्जी की दो नौकरियां एक साथ की। हालांकि, उनके जीवन ने तब करवट ली, जब स्कूल मैनेजमेंट ने उनके काम से प्रभावित होकर भोर तालुका के एक दूरदराज के गांव वेलवंद में उनको एक स्कूल शुरू करने की पेशकश की।

2005 बना, यह स्कूल समर्थ विद्या मंदिर, अब तालुका के 35 किलोमीटर के दायरे में और पाँच गाँवों में पहला और एकमात्र माध्यमिक स्कूल है। भोर के पहाड़ी परिदृश्यों के बीच, स्कूल 40-50 किलोमीटर दूर गांवों से आने वाले आदिवासी छात्र यहां पढ़ने आते हैं।

शौकतली ने बताया कि जब वो 2005 में स्कूल पहुंचे तो वहां लगभग दो छात्रों के साथ एक दो-कमरे की इमारत वाला जर्जर स्कूल था। लीक होती टिन की छत, वॉशरूम और आने-जाने में परेशानियां, छात्रों को स्कूल आने से रोकना जैसी कई समस्याएं थी। इसे सरकारी मान्यता भी नहीं मिली थी। इसलिए, छात्रों को स्कूल आना शुरू करने के लिए, मुझे उन सब का भी ध्यान रखना था।

यद्यपि कुछ महीनों में सरकारी मान्यता का काम तो हो गया था, लेकिन माता-पिता को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए आश्वस्त करना एक बड़ी चुनौती थी।

वेलवंद में, युवा काफी हद तक निरक्षर थे। उनमें से अधिकांश पास के शहरों और शहरों में मजदूरों या कारखाने में मजदूरों के रूप में काम करते हैं। कुछ समय बाद उनके माता-पिता ने भी यह माना कि स्कूल वाला आकर्षक विकल्प हैं लेकिन उन्हें मानसिकता को बदलने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था।

इसलिए शौकतली ने तय किया वो शिक्षा की आवश्यकता के बारे में बताने के लिए आसपास के सभी गांवों में हर घर का दौरा करेंगे।

शौकतली ने गांव वालों को सिखाया कि मेरे संघर्षों ने मुझे एक बात सिखाई, कि केवल शिक्षा ही आपको वास्तव में आजाद कर सकती है।

इसके अतिरिक्त, स्कूल के संरचनात्मक मुद्दों, आवश्यक सुविधाओं के साथ जल्द ही कई सामाजिक संगठन और रोटरी क्लब ने 40 लाख रुपये से अधिक की आर्थिक मदद की। आखिरकार आज वहां प्रयोगशालाओं और एक लाइब्रेरी के साथ आठ कमरों का एक स्कूल है।

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