वैसे भी आज के समय में चारों ओर पर्यावरण का लेकर चिंता और भाषणबाजी देखने को ही मिल रही है, पर कोई इसे जमीन स्तर पर कार्य रूप में लाने से कतराता है। ऐसे में ‘बीज बम’ सुनकर अचम्भा लगेगा, पर यह सच है। यह बम विस्फोटक नहीं है, पर यह पर्यावरण के हित में बनाया गया ‘बीज बम’ है। ऐसा ही कुछ किया है बिहार की एक संस्था ‘तरुमित्र’ ने।
पटना स्थित एक संस्था ‘तरुमित्र’ के माध्यम से छात्र-छात्राओं के बनाए ‘बीज बम’ प्रकृति के संरक्षण में एक नई पहल है जिसमें ये बच्चे एक दिन में सैकड़ों बम बनाते और उन्हें चलती ट्रेनों से बरसाते हैं। डरने की की कोई बात नहीं है। इनक बमों के गिरने से विस्फोट नहीं, बल्कि इनसे जीवन के अंकुर फूटते हैं। ये बम जहां गिरेंगे वही हरियाली बढ़ाते हैं।
तरुमित्र आश्रम में देश के विभिन्न शिक्षण संस्थानों के बच्चे कई प्रजातियों के पेड़ों के बीजों का संग्रह करते हैं। फिर बीज के चारों ओर मिट्टी लपेटकर गोला बनाते हैं, जिन्हें ‘बीज बम’ कहा जाता हैं। इन बमों को खाली या बंजर भूमि में फेंक दिया जाता है और यह स्वाभाविक है कि जहां बीज गिरेंगे वहां उसे अनुकूलन मिलने पर कुछ दिनों बाद पौधे उग आते हैं।
पिछले वर्ष शुरू किया था यह प्रयोग इस वर्ष भी जुलाई तक चलेगा अभियान
बढ़ता शहरीकरण घटता जंगल वैश्विक मंथन को मजबूर कर रहा है। जिसके कारण कई पर्यावरणीय समस्याएं हमारे सामने मौजूद है। अगर हरियाली बचाने के लिए ठोस प्रयास नहीं किये गए तो पृथ्वी मरुभूमि में तब्दील हो जाएगी।
पर कुछ नया करने की सोच चुके इन छात्र-छात्राओं ने धरती को बचाने का संकल्प लिया और वह भी एक नये अंदाज में ‘बीज बम’ के रूप में। पटना के तरुमित्र आश्रम में प्रतिदिन देश के कोने-कोने से विभिन्न स्कूलों एवं कॉलेजों से छात्र-छात्राओं की टीम आती है। टीम बीज बम बनाती है। बीते साल शुरू किया गया यह काम इस साल फिर शुरू किया गया है। यह सिलसिला जुलाई तक चलेगा।
संस्था बनाती है प्रतिदिन 200 से 300 बीज बम, फिर यात्रा के दौरान चलती ट्रेनों से फेंकते
इस संस्था में हर रोज 200 से 300 बीज बम तैयार जाते हैं। इनका उपयोग जुलाई से सितंबर तक किया जाता है। इसका कारण यह है कि इस समय बारिश के महीने होते हैं और बीजों को अनुकूल परिस्थिति मिल जाती है। जिससे बीज अंकुरित होकर तीन से चार महीने में बढ़ लेते है।
इन बमों को लेकर छात्र-छात्राओं की टीम ट्रेनों पर सवार हो जाती है। टीम पटना-बक्सर, पटना-गया, पटना-देवघर सहित विभिन्न रूटों पर सफर करती है। टीम में शामिल बच्चे चलती ट्रेन से ट्रैक के दोनों तरफ ‘बीज बम’ फेंकते जाते हैं। इसके अलावा एक टीम गंगा एवं राज्य के अन्य नदियों के किनारे-किनारे वाहन से सफर करती है। इस टीम में शामिल छात्र भी बम फेंकते जाते हैं।
प्रयास को मिल रही है कामयाबी
वैसे तो इस प्रोग्राम को चल एक साल का समय हुआ है। जिन बमों को जुलाई में फेंका था उसके बाद सितंबर में सर्वे किया गया। इसका काफी बेहतर परिणाम देखने को मिला। जिन जगहों पर अब तक कोई पौधा नहीं दिखाई देता था, वहां धीरे-धीरे हरियाली दिखाई देने लगी है। जल्द ही ये पौधे पेड़ में तब्दील हो जाएंगे।
बीजों को संग्रह आश्रम के पेड़ों से गिरे बीज से किया जाता है
तरुमित्र संस्था के निदेशक फादर रॉबर्ट का कहना है कि पर्यावरण को समर्पित संगठन ने बीज बम बनाने के लिए सालभर आश्रम के पेड़ों से गिरे बीज को इकट्ठा करके इनका संग्रह किया जाता है। बीज का संग्रह करने के बाद छात्र-छात्राओं की टीम आश्रम में आने के बाद बीज बम बनाती है। गीली मिट्टी के गोले में एक बीज को डाला जाता है। इसे बनाने के लिए उर्वर मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि बंजर भूमि में गिरने पर भी बरसात के दिनों में बीज उग सकें।
बीज बमों में मुख्यतः कदंब, कहवा, आम, बरगद, जामुन, महुआ, पाटली आदि के बीजों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किये जा रहे हैं। यहां पर हर छात्र के लिए कम से कम 100 बीज बम बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में भी होता है ऐसा अनूठा प्रयोग
उत्तराखंड के उत्तरकाशी के राइंका कमद के छात्र-छात्राएं स्कूल में बीज बम बनाने में जुट जाते है। उनके द्वारा करीब दस हजार बीज बम बनाए जाते हैं, उनको जहां बंजर व कम पेड़ हैं। वहां फेंकते है। जो बाद में उग जाते है।