बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए अपनी टिप्पणी में कहा है कि गोद लेने की प्रक्रिया केवल उन बच्चों तक सीमित नहीं है जो अनाथ हैं, छोड़ दिए गए हैं या कानून की नजर में आरोपी हैं। पीठ ने कहा कि किशोर न्याय कानून रिश्तेदारों के बच्चों को भी गोद लेने की इजाजत देता है। न्यायमूर्ति मनीष पिटाले की एकल पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही। यह याचिका एक दंपति ने दायर की थी, जो अपने रिश्तेदार की नाबालिग बेटी को गोद लेना चाहते थे। दंपति बच्ची के मामा-मामी हैं और बच्ची के माता-पिता उसे गोद देने के लिए राजी हैं।
यवतमाल की जिला अदालत ने खारिज कर दिया था अनुरोध
आपको बता दें कि इससे पहले इस मामले में यवतमाल की जिला अदालत ने बच्ची को गोद लेने के उनके अनुरोध को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि बच्ची न तो अनाथ है, न कानून की नजर में आरोपी है, न ही उसके माता-पिता ने उसे छोड़ा है और न ही बच्ची को देखभाल तथा संरक्षण की जरूरत है। जिला अदालत के फैसले के बाद दंपति ने उच्च न्यायालय में गुहार लगाई थी। न्यायमूर्ति पिटाले ने कहा कि किशोर न्याय कानून (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) केवल ऐसे बच्चों के लिए नहीं है, जो कानून की नजर में आरोपी हैं, जिन्हें देखभाल और संरक्षण की जरूरत है बल्कि यह रिश्तेदारों के बच्चों, सौतेले अभिभावक द्वारा बच्चे को गोद लेने संबंधी प्रक्रिया का भी नियमन करता है और इसकी मंजूरी देता है।
‘रिश्तेदार’ की परिभाषा के दायरे में आते हैं मामा-मामी
बंबई उच्च न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता बच्ची के मामा-मामी हैं, इसलिए वह कानून के तहत ‘रिश्तेदार’ की परिभाषा के दायरे में आते हैं। न्यायमूर्ति पिटाले ने निचली अदालत के आदेश को निरस्त करते हुए निर्देश दिया कि वह दंपति की याचिका पर नए सिरे से विचार करें। अदालत ने इस मामले में यह स्पष्ट कर दिया कि कोई भी दंपति अपने रिश्तेदारों के बच्चों को गोद ले सकते हैं।
अपहृत व्यक्ति से अच्छा बर्ताव वाले आरोपी को आजीवन कारावास की सज़ा नहीं दे सकते: सुप्रीम कोर्ट