डेढ़ दर्जन भाषाओं के जानकार थे पूर्व प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव, आर्थिक सुधारों के रहे जनक

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भारत के नौवें प्रधानमंत्री व प्रसिद्ध राजनेता पी. वी. नरसिम्हा राव (पामुलापर्ति वेंकट नरसिंह राव) की आज 28 जून को 102वीं जयंती है। वे दक्षिण भारत से देश के प्रधानमंत्री बनने वाले पहले व्यक्ति थे। नरसिम्हा राव के कार्यकाल में भारत ने आर्थिक क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन-बदलाव किए, जिससे अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा मिलीं। उनके कार्यकाल में ही भारतीय अर्थव्यवस्था में ‘लाइसेंस राज’ को खत्म किया गया, जिससे इसमें खुलापन आया।

पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के साथ देश की कमजोर अर्थव्यवस्था को वैश्विकरण और उदारीकरण के माध्यम से एक नई दिशा दी गईं। इन्हीं वजहों से उन्हें ‘भारत के आर्थिक सुधार का जनक’ भी माना जाता है। पी. वी. नरसिम्हा राव को 17 भाषाओं का ज्ञान था। इस अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

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पी वी नरसिम्हा राव का जीवन परिचय

भूतपूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून, 1921 को आंध्रप्रदेश के करीमनगर में हुआ था। उनके पिता का नाम पी रंगा राव और मां का नाम रुक्मिनाम्मा था। नरसिम्हा राव एक बहुत ही साधारण किसान परिवार से आते थे। उनकी प्राथमिक शिक्षा करीमनगर जिले के कत्कुरू गांव में एक रिश्तेदार के यहां रहकर हुई थी। बाद में उस्मानिया विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की। वर्ष 1930 में नरसिम्हा राव ने हैदराबाद में ‘वंदे मातरम’ आंदोलन में भाग लिया। वह नागपुर गए और नागपुर विश्वविद्यालय के अधीन हिस्लोप कॉलेज में ए​डमिशन लिया और वहां से लॉ में मास्टर की डिग्री प्राप्त की।

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40 के दशक में ‘काकतीय’ पत्रिका का संपादन किया

पी वी नरसिम्हा राव की मातृभाषा तेलुगु थी, परंतु मराठी भाषा पर भी उनकी जोरदार पकड़ थी। वह आठ भारतीय भाषाओँ (तेलुगु, तमिल, मराठी, हिंदी, संस्कृत, उड़िया, बंगाली और गुजराती) के अलावा अंग्रेजी, फ्रांसीसी, अरबी, स्पेनिश, जर्मन और पर्शियन बोलने में पारंगत थे। नरसिम्हा राव ने 1940 के दशक में ‘काकतीय’ पत्रिका नामक एक तेलुगु साप्ताहिक पत्रिका का संपादन किया था। उन्होंने सत्यम्मा राव से शादी की, जिनकी मृत्यु वर्ष 1970 में हो गई थी। इन दोनों के तीन बेटे और पांच बेटियां हैं।

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बतौर मुख्यमंत्री आंध्रप्रदेश में किए थे भूमि सुधार

नरसिम्हा राव देश की आजादी के दौरान स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहे थे। वो कांग्रेस के सदस्य थे और पेशे से वकील थे। वकालत करते हुए ही उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया था। राव आंध्र प्रदेश सरकार में वर्ष 1962 से 64 तक कानून एवं सूचना मंत्री, 1964 से 67 तक कानून एवं विधि मंत्री, वर्ष 1967 में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री एवं वर्ष 1968 से 1971 तक शिक्षा मंत्री रहे थे। पी वी नरसिम्हा राव ने वर्ष 1971 से 1973 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद सुशोभित किया। बतौर आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री नरसिम्हा राव का कार्यकाल आज भी उनके भूमि सुधारों और तेलंगाना क्षेत्र में भूमि सीलिंग अधिनियमों के कड़ाई से कार्यान्वयन के लिए याद किया जाता है।

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राव वर्ष 1975 से 1976 तक अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव रहे और वर्ष 1968 से 1974 तक आंध्रप्रदेश की तेलुगू अकादमी के अध्यक्ष भी रहे। वो वर्ष 1972 से मद्रास के दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के उपाध्यक्ष रहे। नरसिम्हा राव वर्ष 1977 से 1984 तक लोकसभा में सांसद रहे। राव दिसंबर 1984 वो रामटेक से आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए थे।

केंद्रीय मंत्रिमंडल में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे

पीवी नरसिम्हा राव देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी दोनों के समय ही कई विभागों और केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल रहे थे। वह 14 जनवरी, 1980 से 18 जुलाई, 1984 तक विदेश मंत्री और 19 जुलाई 1984 से 31 दिसंबर 1984 तक गृह मंत्री रहे। बाद में 31 दिसंबर, 1984 से 25 सितम्बर, 1985 तक रक्षा मंत्री बनाए गए। उन्होंने 5 नवंबर, 1984 से योजना मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी संभाला था। 25 सितम्बर, 1985 से राव ने मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में पदभार संभाला।

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राजनीति में वापस लौटकर देश के प्रधानमंत्री बने

पी वी नरसिम्हा राव वर्ष 1991 में सक्रिय राजनीति से लगभग संन्यास ले चुके थे। परंतु राजीव गांधी की हत्या के बाद उन्हें प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला। उस साल लोकसभा चुनावों में कांग्रेस बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, लेकिन पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका था। राव अल्पमत होने के बाद नेहरु-गांधी परिवार के बाद पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने पूरे पांच साल का अपना प्रधानमंत्री कार्यकाल पूरा किया।

राव दक्षिण भारत से प्रधानमंत्री बनने वाले पहले शख्स थे। उन्होंने परंपरा से हटते हुए एक गैर-राजनीतिक व्यक्ति मनमोहन सिंह को देश का वित्त मंत्री बनाया था। नरसिम्हा राव ने अपने कार्यकाल में विपक्षी दल के नेता सुब्रमण्यम स्वामी को ‘श्रमिक मापदंड और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार’ आयोग का अध्यक्ष बनाया। भारतीय राजनीति में ऐसा पहला मौका था, जब विपक्ष के किसी सदस्य को कैबिनेट स्तर का पद दिया गया हो।

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बतौर पीएम आर्थिक सुधार संबंधित महत्वपूर्ण कदम उठाए

पीवी नरसिम्हा राव ने अपने कार्यकाल में देश की अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा प्रदान करने के लिए गंभीर परिस्थिति का हल अपनी सूझ-बूझ के साथ बखूबी निकला। उन्होंने वित्त मंत्रालय की कमान अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को सौंपी थीं। जो देश को एक नए आर्थिक युग की ओर ले गए। उन्होंने विदेशी निवेश, पूंजी बाज़ार, मौजूदा व्यापार व्यवस्था और घरेलु व्यापार के क्षेत्र में सुधार लागू किए।

उनकी सरकार का लक्ष्य था मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण, सार्वजानिक क्षेत्र का निजीकरण और इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में निवेश बढ़ाना। राव ने औद्योगिक लाइसेंसिंग प्रणाली में भी सुधार करते हुए मात्र 18 महत्वपूर्ण उद्योगों को इसके अंदर रखा। उनके आर्थिक सुधारों का ही नतीजा था कि देश में विदेशी निवेश बहुत तेज़ी से बढ़ा।

दिल का दौरा पड़ने के बाद हुआ निधन

पी. वी. नरसिम्हा राव को 9 दिसंबर, 2004 को दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली में भर्ती करवाया गया। इलाज के दौरान ही उनका 23 दिसंबर, 2004 को निधन हो गया।

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