भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार दूसरी बार गुट निरपेक्ष देशों के शिखर सम्मेलन में सम्मिलित नहीं होंगे। यह सम्मेलन 25—26 अक्टूबर को अजरबैजान के बाकू शहर में होगा। सरकारी सूत्रों में अनुसार इस बार गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन में भारत की ओर से उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू देश का प्रतिनिधित्व करेंगे। इस सम्मेलन में दुनिया के विकासशील देशों भाग लेते हैं। बता दें कि भारत गुट निरपेक्ष आंदोलन (Non aligned movement) का संस्थापक सदस्य देश है।
क्या है गुट निरपेक्ष आंदोलन
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद रूस और अमेरिका के रूप में दो सुपर पावर देशों का उदय हुआ। ऐसे में भारत अभी आजाद हुआ था, उसके सामने इन दोनों खेमों में से किसी एक में शामिल होने का विकल्प था। परंतु तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में देश ने फैसला किया कि वो इन दोनों खेमों में से किसी में शामिल नहीं होगा। दुनिया के विकासशील देशों ने इन दोनों से गुटों में शामिल नहीं होना चाहते थे और इनसे अलग गुट निरपेक्षता की नीति अपनाना चाहते थे।
वर्ष 1955 में बांडुंग सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप बरोज टीटो की पहल पर गुट निरपेक्ष आंदोलन पर चर्चा हुई। वर्ष 1961 में यूगोस्लाविया के बेलग्रेड में हुए सम्मेलन में NAM की स्थापना की गई थी। वर्ष 2012 तक इसके 120 सदस्य थे। इस गुट का उद्देश्य था कि इन दोनों गुट से दूर रहना और विश्व शांति कायम रखने की कोशिश करना।
इससे पूर्व 2016 में हुए सम्मेलन में शामिल नहीं हुए थे पीएम मोदी
इस बार के नाम सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधि के रूप में उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू शिरकत करेंगे। उप राष्ट्रपति नायडू ही गुट निरपेक्ष देशों के शिखर सम्मेलन को संबोधित करेंगे। इससे पूर्व वर्ष 2016 में हुए गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन में पीएम नरेंद्र मोदी की जगह वेनेजुएला में हुए इस सम्मेलन में भारत के तत्कालीन उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी शामिल हुए थे।
वैश्विक संबंधों में आया बदलाव
पीएम नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू की नीति के विपरीत चल रहे हैं। जिसका बड़ा कारण 21वीं सदी में भारत का दुनिया के कई देशों और संगठनों के साथ कूटनीतिक और रणनीतिक संबंध स्थापित करने की आवश्यकता है। मौजूदा दौर में भारत को एक साथ अमेरिका, रूस और चीन जैसे शक्तिशाली देशों के साथ मजबूत व्यापारिक और कूटनीतिक संबंध बनाने हैं। इस आधार पर भारत जैसे देश के लिए मौजूदा दौर में यह संभव नहीं है कि वह बिना किसी गुट में शामिल हुए अपने हितों का ख्याल रख सके।