जिम्बाब्वे के जनक और पूर्व राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे का 95 साल की उम्र में निधन हो गया। पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे मुगाबे ने शुक्रवार को सिंगापुर के एक अस्पताल में आखिरी सांस ली। मुगाबे को अफ्रीका के महान क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है। वह ऐसे अफ्रीकी नेता थे, जो ब्रिटिश हुकूमत से स्वतंत्रता दिलाकर नायक के रूप में उभरे। लेकिन 37 साल जिम्बाब्वे की सत्ता में रहने के बाद भी उनका मन नहीं भरा। सत्ता मोह का त्याग नहीं कर पाने के कारण मुगाबे को बेदख़ल करना पड़ा।
उल्लेखनीय है कि रॉबर्ट मुगाबे सन् 1980 से 1987 तक जिम्बाब्वे के प्रधानमंत्री और वर्ष 1987 से 2017 तक राष्ट्रपति रहे थे। जिम्बाब्वे के इतिहास में सबसे अधिक समय तक शासन करने वाले मुगाबे के शासनकाल में बेरोज़गारी और महंगाई ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। जिम्बाब्वे की आज़ादी के नायक रहे मुगाबे को उसकी अर्थ-व्यवस्था की बदहाली ने ख़लनायक बना दिया। अंत में स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान करने वाली जिस सेना का इस्तेमाल मुगाबे ने अपने विरोधियों को दबाने में किया, उसी के आगे उन्हें हथियार डालने पड़ गए। वर्ष 2017 में सेना ने उनका तख़्तापलट कर दिया। इसके बाद मुगाबे को राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
बढ़ई पिता और अध्यापिका मां के घर में हुआ था जन्म
रॉबर्ट मुगाबे का जन्म दक्षिणी रोडेशिया (अब जिम्बाब्वे) के कुटामा में 21 फ़रवरी, 1924 को हुआ था। उनके पिता दक्षिण अफ्रीका के एक जेसुइट मिशन में बढ़ई का काम किया करते थे, वहीं उनकी मां टीचर हुआ करती थीं। अपनी प्रारंभिक शिक्षा के 6 साल पूरे करने के बाद मुगाबे को वर्ष 1941 में कुटामा कॉलेज में टीचर ट्रेनिंग कोर्स में जगह मिलीं। उनकी मां ट्यूशन फीस वहन नहीं कर सकती थी, इसलिए मुगाबे ने ट्रेनिंग लेते हुए अपने पुराने स्कूल में पढ़ाना भी शुरु कर दिया था। इसके बादले उन्हें प्रति महीना 2 स्टर्लिंग पाउंड मिलते थे, जिससे वे अपने परिवार को सपोर्ट करने लगे। साल 1945 में रॉबर्ट मुगाबे ने कुटामा छोड़ दिया था।
1945–1960 तक दक्षिणी रोडेशिया के कई स्कूलों में पढ़ाया
रॉबर्ट मुगाबे ने होम टाउन कुटामा छोड़ने के बाद सन् 1945 से 1960 तक दक्षिणी रोडेशिया के कई स्कूलों में टीचर के रूप में काम किया। इस समय तक मुगाबे किसी भी तरह की पॉलिटिक्स में शामिल नहीं थे। साल 1948 में उनके देश की पहली जनरल स्ट्राइक में भी मुगाबे शामिल नहीं हुए थे।
वर्ष 1949 में उन्होंने साउथ अफ्रीकी के इस्टर्न केप स्थित फोर्ट हारे यूनिवर्सिटी की स्कॉलरशिप जीती थी। यहां मुगाबे ने अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस ज्वॉइन कर ली थी। इसके बाद से वे अफ्रीकन नेशलिस्ट मीटिंग्स में भाग लेने लगे थे, जहां उनकी जेविश साउथ अफ्रीकन कम्यूनिस्ट से मुलाक़ात हुई। उन्होंने मुगाबे को मार्क्सवादी विचारधारा से रूबरू कराया था।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के समय महात्मा गांधी के प्रयासों को देखकर रॉबर्ट मुगाबे काफ़ी प्रभावित हुए थे। 1952 में मुगाबे ने इतिहास और अंग्रेजी साहित्य में बीए की डिग्री के साथ कॉलेज छोड़ दिया था। बाद में उन्होंने फोर्ट हारे में बिताए अपने समय को बड़ा महत्वपूर्ण बताया था। मुश्किलों में गुजरे बचपन के बाद जीविकोपार्जन करते हुए उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले मुगाबे ने वर्ष 1963 में अपने सहयोगियों के साथ तंजानिया में जिम्बाब्वे अफ्रीकन नेशनल यूनियन (जेडएएनयू) संगठन की स्थापना कर ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ मूवमेंट की शुरुआत कर दी थी।
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वर्ष 1980 में जिम्बाब्वे स्वतंत्र राष्ट्र बन गया था। इसके बाद से ही रॉबर्ट मुगाबे जिम्बाब्वे की सत्ता में लगातार बने हुए थे। 37 वर्षों तक शासन करने के बाद रॉबर्ट मुगाबे को सैन्य विद्रोह के कारण साल 2017 में अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
Cde Mugabe was an icon of liberation, a pan-Africanist who dedicated his life to the emancipation and empowerment of his people. His contribution to the history of our nation and continent will never be forgotten. May his soul rest in eternal peace (2/2)
— President of Zimbabwe (@edmnangagwa) September 6, 2019
राष्ट्रपति एमर्सन मनांगाग्वा निधन पर जताया शोक
रॉबर्ट मुगाबे के निधन पर जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति एमर्सन मनांगाग्वा ने उनकी मौत की ख़बर देते हुए ट्वीट किया, ‘बेहद दुख के साथ मैं ये सूचित करता हूं कि जिम्बाब्वे के जनक और पूर्व राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे नहीं रहे।’ उन्होंने आगे लिखा, ‘मुगाबे स्वतंत्रता के प्रतीक थे, वो एक ऐसे अफ्रीकी नेता थे जिन्होंने अपने लोगों की स्वतंत्रता और सशक्तिकरण में अपना जीवन लगा दिया था। इस देश और महाद्वीप के इतिहास में उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा। उनकी आत्मा को शांति मिले।’