कांग्रेस-JD(S) सरकार बचाने के चक्कर में जो सौदेबाजी कर रही है वो भी चिंताजनक है

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कर्नाटक में मचे हंगामे को आज एक हफ्ता हो चुका है। 1 जुलाई से राज्य की जनता दल (सेकुलर) और कांग्रेस गठबंधन सरकार टूटने के कगार पर है। इन दोनों दलों के 14 विधायकों ने इस्तीफे की पेशकश कर दी है।

दोनों पार्टियों ने आरोप लगाया है कि कर्नाटक में इन सब के लिए भारतीय जनता पार्टी ही जिम्मेदार है। इस कड़ी में दोनों पार्टियों ने बीजेपी पर आरोप लगाया कि भाजपा के राज्यसभा सदस्य की कंपनी से संबंधित एक फ्लाइट में शुक्रवार को दस बागी विधायकों को सुरक्षित मुंबई के लिए रवाना किया गया था।

कर्नाटक विधानसभा में 225 सीटें हैं और हर इस्तीफे के साथ बहुमत प्राप्त करने के लिए पार्टी के लिए मुसीबतें खड़ी हो जाती हैं।

कांग्रेस-जनता दल (एस) गठबंधन को अब 104 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। भाजपा के पास शायद 107 विधायक हैं। इसमें निर्दलीय विधायक एच नागेश और कर्नाटक प्रज्ञवन्ता जनता पार्टी के आर.शंकर को भी शामिल किया गया है जिन्होंने अपनी सीटों से इस्तीफा दे दिया और भाजपा को समर्थन करेंगे।

बहरहाल, मंगलवार को अध्यक्ष रमेश कुमार ने कहा कि वह इस बारे में फैसला तभी करेंगे जब वे विधायकों से व्यक्तिगत रूप से मिलेंगे उसके बाद ही उनका इस्तीफा स्वीकार या नकारा जाएगा।

जैसा कि सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों में कहा गया है राज्य सरकार के लिए बहुमत का समर्थन किसको मिला है इस बारे में फैसला केवल विधानसभा में ही लिया जा सकता है। लेकिन जिस तरह से गठबंधन अपने बहुमत को बनाए रखने की कोशिश कर रहा है उसने संवैधानिक लोकतंत्र का मजाक उड़ाया है।

असंतुष्ट विधायकों को इस्तीफा देने से रोकने के लिए गठबंधन सरकार ने उनको मंत्रिमंडल में स्थान देने का फैसला किया। फिर इसके बाद सोमवार को सभी कांग्रेस और जद (एस) के मंत्रियों ने अपने कैबिनेट पदों से इस्तीफा दे दिया ताकि बागियों को उनके स्थानों पर मंत्री पद दिया जा सके।

जब बागी विधायक इस्तीफा देने के अपने फैसले पर अड़ गए तो कांग्रेस ने मंगलवार को अध्यक्ष रमेश कुमार से अपील की कि वे उन्हें अयोग्य घोषित करें और सुनिश्चित करें कि वे छह साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। मांग का कोई कानूनी आधार नहीं है और यह केवल असंतुष्ट विधायकों को धमकाने का एक प्रयास है। कांग्रेस का मानना है कि अगर उनके दोबारा चुने जाने की संभावना कम हो जाती है तो विधायकों के पास अपना इस्तीफा वापस लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।

हालांकि कांग्रेस और जेडी (एस) फिलहाल मामले को जल्दी से निपटाने की कोशिश कर रहे हैं। एक बार के लिए मान लिया दोनों पार्टियां असंतुष्ट विधायकों को मना लेती है। मंत्री पद उनमें बांट दिए जाते हैं और कर्नाटक में वे अपनी सरकार बचा लेंगे लेकिन भविष्य में भाजपा इस पर फिर से काम करेगी और एक बार फिर सरकार गिरने का खतरा कांग्रेस और जेडीएस पर मंडराने लगेगा।

गठबंधन ने इस मामले में जो भी एक्शन लिए हैं वो चिंताजनक हैं। मंत्री पदों को चिप्स की तरह बांटने का काम किया जा रहा है मगर इस बात को कहीं ना कहीं नजरअंदाज किया जा रहा है कि मंत्री परिषद एक राज्य में अच्छा शासन सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। गठबंधन चाहता है कि वे किसी भी तरह से सरकार को गिरने से बचा ले और इसके लिए मंत्री पदों को दांव पर लगा दिया है। भाजपा और कांग्रेस के बीच इस कच्ची राजनीति में संविधान और नागरिक दोनों पीड़ित होंगे।

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