अधमरी प्रिंट मीडिया पर कस्टम लगाकर सरकार को क्या हासिल हो जाएगा?

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मोदी 2.0 सरकार ने पहला बजट पेश कर दिया है। बजट में न्यूजप्रिंट पर 10 प्रतिशत कस्टम ड्यूटी भी लगाया है। 10 प्रतिशत कस्टम ड्यूटी डूबती इंडस्ट्री को और भी डुबाने का काम करेगी। अख़बारों के लिए इस्तेमाल किए गए कागज और पत्रिकाओं में इस्तेमाल होने वाले हल्के कोटेड पेपर पर यह कस्टम ड्यूटी लागू होगी। एसोसिएशन ऑफ़ इंडियन मैगज़ीन ने इस कस्टम ड्यूटी का विरोध दर्ज किया है और इसे प्रिंट मीडिया के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बताया है।

लोकल प्रिंट वाले कम रेवन्यू के चलते पहले से अंधेरे में हैं। हाल की रिपोर्टों में सामने आया कि सरकार तीन प्रमुख मीडिया हाउस से अपने विज्ञापन वापिस ले रही है। इसमें बेनेट कोलमैन एंड कंपनी जो टाइम्स ऑफ इंडिया और द इकोनॉमिक टाइम्स प्रकाशित करती है, एबीपी ग्रुप जिनके द्वारा टेलीग्राफ चलाया जाता है और हिंदू अखबार समूह शामिल हैं।

कस्टम ड्यूटी लगाना और अपने विज्ञापन हटाना अपने आप में गंभीर सवाल खड़े करता है। क्या सरकार फ्री प्रेस की व्यवस्था और उसकी चिंताजनक स्थिति को लेकर सजग है?

न्यूज प्रिंट पर कस्टम ड्यूटी लगाने के पीछे तर्क दिया गया है कि इससे घरेलू उद्योग को प्रोत्साहन मिलेगा। इस कदम की घोषणा करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि यह भारतीय जनता पार्टी के “मेक इन इंडिया” एजेंडे के साथ है। उसने यह भी दावा किया कि भारत में अखबार के लिए काफी कागज हैं।

यह थोड़ा अजीब लगता है। उद्योग के अनुमानों के अनुसार भारत में न्यूजप्रिंट की कुल मांग का केवल 15%-20% घरेलू क्षमता को पूरा कर सकता है। इसके अलावा कई आउटलेट्स का मानना है कि जो न्यूजप्रिंट या कागज वो खरीदते हैं वो इंटरनेशनल टेक्नोलोजी से मेल भी खाना चाहिए।

प्रकाशकों को यह भी डर है कि घरेलू अखबारी कागज पर स्विच करने का मतलब गुणवत्ता में गिरावट होगा। प्रिंट मीडिया का रेवेन्यू काफी कम हुआ है ऐसे में उपभोक्ता पहले से ही पैसे लगाने से हिचकता है। इससे प्रकाशकों के लिए लागत बढ़ जाएगी। पिछले साल बढ़ी कीमतों से पहले ही प्रकाशक उबर रहे हैं। अब ऐसे में डूबती इंडस्ट्री पर खतरा और भी बढ़ जाएगा।

कई प्रकाशकों का कहना है कि सरकार इससे प्रिंट मीडिया पर वित्तीय और संपादकीय दबाव डालना चाहती है इसीलिए यह आयात शुल्क लगाया जा रहा है।

द टेलीग्राफ ने अक्सर मोदी सरकार को क्रिटिसाइज या आलोचना करते हुए कई आर्टिकल चलाए हैं। द हिंदू ने राफेल सौदे में अनियमितताओं पर रिपोर्ट दी। विपक्षी नेताओं के अनुसार टाइम्स ऑफ इंडिया से विज्ञापन इसलिए हटाए गए हैं क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन को कवर किया था। इसलिए जो भी सरकार की आलोचना करते हैं ऐसे में उनका रेवेन्यू घट जाएगा और लागत बढ़ जाएगी।

अब मीडिया पर वित्तीय दबाव डालने का का चलन शुरू हुआ है। 2014 को मोदी पहली बार सत्ता में आए और इसके बाद पत्रकारों ने कई बार शिकायत की है कि सरकार की आलोचनात्मक खबरें करने पर उन्हें डराया जाता है।

सत्ता में अपने पांच साल में मोदी ने एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस अटेंड नहीं की थी। मीडिया और सरकार का एक अलग रिलेशनशिप होता है जहां मीडिया सच बोलती है और सत्ता से सवाल पूछती है और सरकार को उनके कर्तव्यों से रूबरू करवाती है। इस रिश्ते में फिलहाल बाधा दिखाई दे रही है।

स्वतंत्र प्रेस को यह एक तरीके का झटका है जिसके बारे में मोदी सरकार को पता होना चाहिए कि वे एक लोकतांत्रिक सरकार के रूप में अपनी खुद की साख को नष्ट कर रहे हैं।

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