कौन होते हैं दलाई लामा, क्या करते हैं, कैसे चुने जाते हैं, सब कुछ यहां पढ़िए

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तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा इस वक्त दुनिया के सबसे चर्चित व्यक्तियों में से एक है। उनकी बताई हुई बातों पर लाखों लोग चलते हैं, कोई उनके चेहरे के ऊपर साक्षात भगवान की छाया देखते हैं। 2015 में लामा का एक बयान आया था जिसकी खूब आलोचना हुई थी।

दलाई लामा ने कहा कि उनके जाने के बाद अगर कोई महिला दलाई लामा बनती है तो वह खूबसूरत होनी चाहिए। अब 4 साल पुराने इस बयान की हम आज चर्चा क्यों कर रहे हैं, आइए बताते हैं।

दरअसल हाल में बीबीसी ने दलाई लामा का एक इंटरव्यू किया जिसमें आपके बाद कौन वाले इसी सवाल पर लामा ने अपना वो ही जवाब दोहराया। उन्होंने कहा मैं मेरे कहे पर कायम हूं, जितना महत्व दिमाग का होता है, उतना ही खूबसूरती का। अब दलाई लामा जैसी शख्सियत के इन शब्दों को नैतिकता के तराजू में बाद में तोलेंगे जब इंटरव्यू सामने आने के बाद इस बयान का पूरा संदर्भ सामने आएगा।

फिलहाल हम आपको बताते हैं दलाई लामा होते कौन है, कैसे बनते हैं, क्या करते हैं जैसे कुछ सवालों के जवाब।

दलाई लामा और धर्म

धर्म क्या है? अगर हम इस सवाल का जवाब खोजने निकले तो हर धर्म ग्रंथ में हमें धर्म की सैकडों परिभाषाएं मिल जाएगी लेकिन हम यह जरूर जानते हैं कि धर्म की राह पर बने रहने में हमारा मार्गदर्शन कौन करता है, हमें धर्म का महत्व कौन समझाता है, इसका एक ही जवाब है – ‘धर्मगुरु’।

धर्म के बारे में हर बारीकी बताना, धर्म का आम जिंदगी में महत्व समझाना जैसे काम धर्मगुरु करते हैं, इनके लाखों-करोड़ों अनुयायी होते हैं। दलाई लामा भी एक ऐसे ही धर्मगुरू हैं जिन्हें ‘लामा’ गुरु भी कहा जाता है।

लामा का क्या मतलब होता है ?

लामा का मतलब होता है ‘गुरु’। तिब्बत में बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक गुरु को लामा कहते हैं। मान्यताओं के मुताबिक लामा कोई आम शब्द नहीं होता है, इसका सरल शब्दों में मतलब होता है वह इंसान जो सर्वश्रेष्ठ हो।

तिब्बती भाषा में इसे ‘ब्ला-मा’ भी कहते हैं। बौद्ध भिक्षुओं को कई तरह की साधना करने के बाद लामा उपाधि दी जाती है, लेकिन ‘दलाई लामा’ से सब नीचे होते हैं।

लामा गुरु कैसे बनते हैं ?

लामा गुरु बनाने की प्रक्रिया धार्मिक और राजनीतिक होती है। राजनीतिक कारणों की वजह से कई बार एक से अधिक शिशुओं को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाता है। सभी की शारीरिक एवं मानसिक परीक्षाएं ली जाती है।

चयन होने के बाद बच्चे को मठ में शिक्षा देते हैं। नए लामा को चुनने से पहले उनकी जगह एक प्रतिनिधि नियुक्त होता है। लामा बच्चा पूरी तरह से जिम्मेदारियां संभालने के लिए जब तैयार हो जाता है, तब उसे दलाई लामा की उपाधि दी जाती है।

15वां लामा कैसे चुना जाएगा यह अब तक तय नहीं हो सका

तिब्बत पर अपना हक जमाने वाला पड़ोसी मुल्क चीन पिछले लंबे समय से पुरानी किसी भी परम्परा को मानने से इनकार करता रहा है। वहीं मौजूदा 14वें लामा गुरु भी यह बात कह चुके हैं कि वह अपना उत्तराधिकारी अपने जीवनकाल में चुन सकते हैं या धर्मगुरुओं को यह काम सौंपा जा सकता है। अगर इस बार ऐसा होता है तो यह तिब्बत की परम्पराओं से अलग होगा।

बौद्ध धर्म के मानने वालों के मुताबिक़, वर्तमान दलाई लामा पहले के दलाई लामाओं के ही अवतार माने जाते हैं, यानी कि वर्तमान लामा गुरु का ही पुनर्जन्म हुआ है। अगर चीन की अकड़ को देखते हुए पहले से चली आ रहीं बौद्ध परम्पराओं को एक तरफ़ कर दिया जाए तो फिलहाल यह साफ नहीं हो सका है कि अगले दलाई लामा को कैसे चुना जाएगा।

तिब्बत संकट क्या है ?

तिब्बत पर चीन के कब्ज़ा जमाने और विवाद की शुरुआत 1951 से होती है। इस दौरान पहले से आज़ाद मुल्क तिब्बत पर चीन ने हजारों सैनिकों की टीमों को भेजकर कब्ज़ा कर लिया था। चीन के तिब्बत पर कब्ज़े के बाद तेनजिन ग्यात्सो को 14वें दलाई लामा के तौर पर पद पर बैठाया गया। दलाई लामा को अगले गुरु के तौर पर 1937 में ही चुन लिया गया था। दरअसल, लामा चुने जाने की एक पूरी प्रक्रिया होती है।

अगले लामा को खोजने में महीनों से सालों तक का वक्त लग सकता है। वर्तमान में 14वें लामा गुरु के रूप में तेनजिन ग्यात्सो तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष और आध्यात्मिक गुरु हैं। वर्तमान लामा लंबे समय से निरन्तर बौद्ध धर्म का प्रचार कर रहे हैं।

फिलहाल चौदहवें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो हैं। दो साल की उम्र में बालक ल्हामो धोण्डुप की पहचान 13वें दलाई लामा थुबटेन ग्यात्सो के अवतार के रूप में की गई। पिछले 60 सालों से भारत में रहकर वह शरणार्थी जीवन जी रहे हैं। वे चीन से बचकर 1959 में हजारों बौद्धों के साथ भारत आए। 31 मार्च, 1959 को बड़े नाटकीय ढंग से जब वे मैकमोहन रेखा पार कर हिंदुस्तान में दाख़िल हुए थे तो उन्होंने सपने में भी सोचा नहीं होगा कि वे अब कभी तिब्बत वापस नहीं जा पाएंगे।

लामा का 14 दिनों का तिब्बत से तवांग तक का उनका सफ़र किसी चमत्कार से कम नहीं था। करीब एक साल पहले ख़बर आई थी कि चीनी सरकार 60 बौद्धों को ट्रेनिंग देकर तिब्बत में दलाई लामा के प्रभाव को कम करने का प्रयास कर रही है। पिछले दस सालों से चीन बौद्धों की अपना धार्मिक गुरु चुनने के प्रक्रिया पर नकेल कस रहा है। चीन चाहता है कि यह दलाई लामा का अधिकार भी उसके पास रहे।

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