खालिस्तान की मांग और सेना का ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’, जानें क्यों है आज भी कई घाव ताजे

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अस्सी के दशक में खालिस्तानियों के कब्जे से स्वर्ण मंदिर को मुक्त कराने के लिए भारतीय सेना द्वारा ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ चलाया गया था। इसमें मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए हर वर्ष 6 जून को कुछ संगठनों द्वारा कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। कार्यक्रम के दौरान इस बार फिर खालिस्तान की मांग को लेकर नारे लगाए गए। मालूम हो कि ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ भारतीय सेना द्वारा 3 से 6 जून, 1984 को अमृतसर (पंजाब, भारत) स्थित श्री हरमंदिर साहिब परिसर को ख़ालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों से मुक्त कराने के लिए चलाया गया एक अहम अभियान था। वर्ष 1984 में हुई दो घटनाओं की टीस आज भी लोगों के जेहन में है। उस साल जून और अक्टूबर के महीने में दो ऐसी घटनाएं हुई, जिससे देश स्तब्ध था।

दरअसल, बॉर्डर स्टेट पंजाब में 80 के दशक में आतंकवाद अपनी जड़े जमा रहा था और उसकी अगुवाई करने का आरोप भिंडरावाले पर लगा। इस दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने एक ऐसा फैसला लिया, जिसका भयावह अंत 31 अक्टूबर, 1984 को हुआ। एक तरफ जहां 6 जून, 1984 को सेना के ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ में प्रमुख खालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले मारा गया और ठीक उसके पांच महीने बाद अक्टूबर 1984 में ही पीएम इंदिरा गांधी अपने ही सुरक्षा दस्ते में तैनात दो सिख अंगरक्षकों का शिकार हो गईं।

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क्या था ऑपरेशन ब्लू स्टार?

जून 1984 में पंजाब के अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ को अंजाम दिया गया था। वर्ष 1984 में पंजाब के हालात हाथों से निकलते जा रहे थे। वहां के तत्कालीन डीआईजी एस.एस. अटवाल की हत्या स्वर्ण मंदिर में कर दी गई थी, जिसके बाद हालात बेकाबू हो चुके थे। जरनैल सिंह भिंडरांवाले की अगुवाई वाले विरोधियों ने मानों जंग ही छेड़ रखी थी। वो खुद खालिस्तानी चरमपंथी था, जो पंजाब में अपनी पैठ तेजी से बना रहा था। इन्हीं को खदेड़ने के लिए इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के निर्देश पर भारतीय सेना द्वारा ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया था।

माहौल को काबू में करने लिया सेना का सहारा

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को स्वर्ण मंदिर से चलाई जा रही खालिस्तानी गतिविधियों से बिगड़ रहे माहौल को काबू में करने के लिए सेना का सहारा लेना पड़ा था। हालांकि, गांधी ने ये फैसला काफी सोच समझ कर लिया था। खालिस्तान समर्थक भिंडरावाले ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन के प्रमुख अमरीक सिंह की रिहाई को लेकर अभियान कर रहा था। ऐसे में अकाली भी इनके समर्थन में आ गए थे। इन परिस्थितियों में पीएम इंदिरा गांधी को सेना का सहारा लेना पड़ा। 5 जून, 1984 को 20 स्पेशल कमांडो स्वर्ण मंदिर में घुसे और ऑपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम दिया।

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ऑपरेशन में हुई मौतों ने इंदिरा को विचलित किया

खालिस्तानियों से श्री हरमंदिर साहिब परिसर को खाली कराने के लिए भारतीय सेना द्वारा चलाया गया ऑपरेशन ब्लू स्टार कामयाब रहा। लेकिन इसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गईं। पहली बार किसी ऑपरेशन की खुशी से ज्यादा लोगों के मारे जाने का गम था। सरकारी आंकड़ों की मानें तो ऑपरेशन में भारतीय सेना के 83 जवानों की शहादत हुई और 248 सैनिक घायल हुए। वहीं, 492 अन्य लोगों की मौत इस ऑपरेशन के दौरान हुईं। पंजाब इस दौरान एक बुरे वक्त से गुजर रहा था। खुद इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन खत्म होने के बाद कहा था, ‘हे भगवान, ये क्या हो गया? इन लोगों ने तो मुझे बताया था कि इतनी मौतें नहीं होंगी।’

ऑपरेशन ब्लू स्टार का क्या असर हुआ?

इस ऑपरेशन में हुई सैनिकों और लोगों की मौतों से पूरे देश में तनाव था। कांग्रेस और सिख समुदाय के बीच दूरियां चरम पर पहुंच गई थीं। उसी दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दीं। इंदिरा की हत्या के बाद पूरे देश में सिख दंगे भड़क गए थे। इसमें हजारों लोगों को जान गंवानी पड़ीं। इतिहास के वो घाव आज भी ताज़ा हैं।

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