इन पांच चीजों के कारण 2025 तक इलेक्ट्रिक कारें भारत के हाथ से थोड़ी दूर ही रहेंगी!

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अगर आपको लगता है कि आपका अगला व्हीकल इलेक्ट्रिक हो सकता है तो आपको एक बार फिर सोचने की जरूरत है। इंडिया फिलहाल इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए तैयार नहीं है। हाल ही में ब्लूमबर्ग एनईएफ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक देश में बिकने वाले कुल वाहनों में से लगभग 6.6 प्रतिशत इलेक्ट्रिक होंगे।

केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी द्वारा 2030 तक 100 प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहन के सपने से तो यह बहुत दूर है। पांच साल में सरकार के 15 प्रतिशत के संशोधित लक्ष्य से भी कम है।

हालांकि, फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ हाइब्रिड एंड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (FAME-II) स्कीम के तहत इन्फ्रास्ट्रक्चर और सब्सिडियरी चार्ज करने पर कई बहसें हो चुकी हैं, लेकिन जब तक सस्ती पेट्रोल और डीजल गाड़ियां चल रही हैं तब तक इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को फिलहाल इंतजार करना होगा।

हालांकि, थ्री-व्हीलर जैसे कुछ इलेक्ट्रिक व्हीकल फिलहाल सड़कों पर दिखाई दे रहे हैं।  इस पर बहुत बहस हुई हैं, लेकिन ये पांच महत्वपूर्ण कारण हैं जिनकी वजह से इलेक्ट्रिकल व्हीकल के लिए इंडिया को काफी इंतजार करना है।

इंफ्रास्ट्रक्चर को चार्ज करना

क्या चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर को पहले लाने की जरूरत है या एक चार्ज नेटवर्क की मांग के लिए पर्याप्त इलेक्ट्रिक वाहन बनाए जाने चाहिए? पैनासोनिक जैसी कंपनियां इसका समाधान निकालने की कोशिश कर रही हैं। यह चार्जर्स का एक नेटवर्क तैनात कर रहा है जो दोपहिया और तिपहिया वाहनों की डिमांड को पूरा कर सकता है।

पैनासोनिक इंडिया के एनर्जी सिस्टम डिवीजन के हेड अतुल आर्य का कहना है कि हम निकट भविष्य में अन्य वाहनों के लिए इसमें विस्तार करना चाहते हैं। हमने वर्तमान में दिल्ली एनसीआर में इसके लिए काम किया है और अगले तीन वर्षों में बेंगलुरू, पुणे, हैदराबाद, चेन्नई में इस चार्जिंग नेटवर्क का विस्तार करने का टारगेट रखा है। के अगले पांच सालों में इसके बाद हम 25 दूसरे शहरों में इसको लेकर प्रयास करेंगे।

हालांकि, मुद्दा यह है कि विभिन्न वाहनों को विभिन्न प्रकार के चार्जर और वोल्टेज की आवश्यकता होती है। दिसंबर में सरकार ने कहा कि चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना के लिए एक परिपत्र भेजा गया है। पेट्रोल पंपों पर चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने को प्राथमिकता दी जाएगी।

सरकार का लक्ष्य है कि शहरों में प्रत्येक 3 किलोमीटर और राजमार्ग पर हर 25 किलोमीटर पर एक इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन हो। इसके लिए दूसरी परेशानियां कनेक्टर्स और प्लग टाइप्स है।

प्रत्येक चार्जिंग स्टेशन में तीन प्रकार के फास्ट-चार्ज प्लग होंगे। एक कम्बाइंड चार्जिंग सिस्टम, एक चेडूमो प्लग और एक टाइप 2 फास्ट चार्जर। टाइप 2 प्लग में 380-480 वोल्ट को बाहर रखने के लिए 22 क्वाड कनेक्शन होना चाहिए। अन्य दो में डीसी पावर के 200-1000 वोल्ट के साथ 50 क्वाड कनेक्शन होगा।

इसमें दो धीमी चार्ज पॉइंट को Bharat AC 001 और Bharat DC 001 क्रमशः 10Kw, 230 वोल्ट और 15Kw 72 वोल्ट के साथ होना चाहिए। इस तरह की कनेक्टिविटी को स्थापित करने में वक्त लगने वाला है जो स्कूटर, रिक्शा और चार पहिया वाहनों के काम आएंगे।

रेंज की परेशानी

लिथियम-आयन बैटरी तकनीक में सुधार हो रहा है और इससे वाहनों की श्रेणी में सुधार हो रहा है। लेकिन भारत में वाहन अभी भी एक ऐसी स्थिति पर नहीं आए हैं जहाँ रेंज इसे सुविधाजनक बनाती है।

उदाहरण के लिए, महिंद्रा ई-वेरिटो और टाटा टिगोर इलेक्ट्रिक सेडान एक बार के चार्ज पर केवल 80 किलोमीटर से 130 किलोमीटर के बीच चल सकती हैं जो सभी एप्लीकेशन के लिए अपने आप में तैयार नहीं है।

चार्जिंग टाइम भी एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि फास्ट चार्जर्स मौजूद नहीं हैं और इन कारों की बैटरी चार्ज करने में कुछ घंटे लगते हैं। दूसरी ओर ओकिनावा आई-प्राइज़ जैसे इलेक्ट्रिक स्कूटर एक चार्ज पर 150 किलोमीटर तक चलने का दावा करते हैं। शहरों में बात करें तो ये चल भी जाएगा लेकिन बड़े लंबे हाईवे पर ऐसे में दिक्कत ही आएंगी।

इलेक्ट्रिक थ्री-व्हीलर्स जिनकी रेंज लगभग 80 किलोमीटर है छोटे इलाकों के लिए काम करते हैं और यही कारण है कि यह सबसे तेजी से बढ़ने वाला सेगमेंट है।

व्हीकल की लागत को लेकर समस्याएं

एक और बड़ा मुद्दा मूल्य है। इलेक्ट्रिक वाहनों की लागत पेट्रोल व्हीकलों की तुलना में लगभग दोगुनी है फिर चाहे कार हों या दोपहिया वाहन। उदाहरण के लिए ओकिनावा आई-प्राइज की कीमत 1.15 लाख रुपये है, जबकि होंडा एक्टिवा 110 की कीमत केवल 50,000 रुपये है।

Tata के Tigor पेट्रोल सेडान की कीमत 5.2 लाख रुपये है, जबकि इसके इलेक्ट्रिक वेरिएंट की कीमत 13 लाख रुपये है। इनको बनाने में लागत भी काफी ज्यादा है इसी कारण इनको रोड पर आने में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है।

हालांकि, कुछ कंपनियां हैं जो सोचती हैं कि समाधान राइड-शेयरिंग मॉडल में है। उदाहरण के लिए दिल्ली स्थित एक स्टार्टअप qquick को देखा जा सकता है जो मेट्रो स्टेशनों से अंतिम-मील कनेक्टिविटी के लिए इलेक्ट्रिक स्कूटरों का उपयोग कर रहा है।

इस कंपनी के संथापक ऐश्वर्य कच्छल का कहना है कि सर्विस पूरी तरह से कस्टमर फ्रेंडली है। एक ग्राहक के लिए एक मोबाइल, डिजिटल भुगतान खाता और एक ड्राइविंग लाइसेंस होना चाहिए। हम मिनट के हिसाब से चार्ज करते हैं इसलिए ग्राहक थोड़ी दूरी के लिए हमारे स्कूटर ले जा सकते हैं। यह कैब या ऑटो-रिक्शा लेने से सस्ता है।

शेयर मोबिलिटी

ब्लूमबर्ग एनईएफ की रिपोर्ट के अनुसार साझा गतिशीलता खंड (उबर और ओला जैसी सेवाएं) इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाएंगे। 2040 तक यह उम्मीद थी कि वैश्विक स्तर पर लगभग 80 प्रतिशत साझा गतिशीलता सेवाएँ इलेक्ट्रिक होंगी।

वर्तमान में सीमित रेंज के साथ इलेक्ट्रिक कैब खरीदने की उच्च लागत इलेक्ट्रिक वाहनों के पक्ष में काम नहीं करती है। डीजल और सीएनजी लागत, रेंज और समय की बचत के लिहाज से सस्ते विकल्प हैं।

टू-व्हीलर इम्पैक्ट

इलेक्ट्रिक वाहनों में वृद्धि फिलहाल चार पहिया वाहनों से नहीं होने वाली है। इस साल 7.5 लाख यूनिट की बिक्री के साथ दोपहिया और तिपहिया वाहनों की शुरुआती वृद्धि होगी जिनमें से चार पहिया वाहनों की संख्या केवल 3,600 यूनिट थी।

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