क्रांतिकारी बिपिन चंद्र पाल ने महात्मा गांधी जैसे नेताओं के विचारों का किया था कड़ा विरोध

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मशहूर भारतीय क्रांतिकारी बिपिन चंद्र पाल गरम दल की प्रमुख तिकड़ी के सदस्य थे। ये तीनों लाल, बाल और पाल के नाम से प्रसिद्ध थे। इन्होंने भारत की आजादी के आंदोलन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बिपिन चंद्र पाल की आज 165वीं जयंती है। वे एक सच्चे देशभक्त होने के साथ-साथ राजनीतिज्ञ, पत्रकार व प्रख्यात वक्ता भी थे। पाल ने अपने जीवन काल में कई रचनाओं का लेखन कार्य तथा कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया। इस खास अवसर पर जानिए बिपिन चंद्र पाल के प्रेरणादायक जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

बिपिन चंद्र पाल का जीवन परिचय

क्रांतिकारी बिपिन चंद्र पाल का जन्म 7 नवंबर, 1858 को सिलहट के हबीबगंज जिले में (अब बांग्लादेश) एक संपन्न कायस्थ परिवार में हुआ था। उन्होंने ‘चर्च मिशन सोसाइटी कॉलेज’ (अब सेंट पॉल्स कैथेड्रल मिशन कॉलेज) में अध्ययन किया और बाद में वहीं पढ़ाने का कार्य भी किया। यह कॉलेज कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बद्ध था। पाल ‘वंदे मातरम्’ नामक पत्रिका के संस्थापक और एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने समाज के सामने एक मिशाल कायम की और अपने परिवार के घोर विरोध के बावजूद एक विधवा से शादी कर ली थी।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में दिया अहम योगदान

बिपिन चंद्र पाल वर्ष 1886 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे। वर्ष 1887 में कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन में उन्होंने अंग्रेजी सरकार द्वारा लागू किये गए ‘शस्त्र अधिनियम’ तत्काल हटाने की मांग की, क्योंकि यह अधिनियम भेदभावपूर्ण था। पाल ने अरविंद घोष के साथ मिलकर एक ऐसे राष्ट्रवाद का प्रवर्तन किया, जिसके आदर्श पूर्ण स्वराज, स्वदेशी, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा था। उन्होंने इन आदर्शों पर चलकर ही स्वदेशी को अपनाने, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को आगे बढ़ाया।

पाल ने लाला लाजपत व बाल गंगाधर तिलक के साथ बंग-भंग के विरोध में चलाये गए स्वदेशी आंदोलन में भाग लेकर स्वदेशी का खुलकर समर्थन किया। इस आंदोलन में तिलक को गिरफ्तार कर लिया और अंग्रेजों ने स्वदेशी आंदोलन का दमन कर दिया, जिसके कारण पाल वर्ष 1907 में इंग्लैंड चले गए व श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा चलाए जा रहे क्रांतिकारी संगठन ‘इंडिया हाउस’ से जुड़ गए। बाद में यहीं स्वराज पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया गया।

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अरविंद घोष के ख़िलाफ़ गवाही देने कर दिया था इंकार

जब क्रांतिकारी मदन लाल ढीगड़ा ने वर्ष 1909 में कर्ज़न वाइली की हत्या कर दी, तो ‘स्वराज पत्रिका’ का प्रकाशन बंद हो गया और लंदन में उन्हें काफ़ी मानसिक तनाव से गुज़रना पड़ा। इस घटना के बाद बिपिन चन्द्र पाल ने अपने आपको उग्र विचारधारा से अलग करने का निर्णय कर लिया। उन्होंने ‘वंदे मातरम् राजद्रोह’ मामले में म​हर्षि अरविंद घोष के ख़िलाफ़ गवाही देने से साफ इंकार कर दिया था, परिणामस्वरूप उन्हें महज 6 माह की सजा हुईं।

पाल का महात्मा गांधी के साथ था वैचारिक मतभेद

अंग्रेजी हुकूमत पर से बिपिन चंद्र का विश्वास उठ गया था। उनका मानना था कि विनती व असहयोग जैसे हथियारों से विदेशी ताकत को पराजित नहीं किया जा सकता। इसी कारण गांधी जी के साथ उनका वैचारिक मतभेद भी था। अपने जीवन के अंतिम कुछ सालों में वे कांग्रेस से अलग हो गए थे। पाल ने कई मौक़ों पर महात्मा गांधी जैसे नेताओं की आलोचना की और उनके विचारों का कड़ा विरोध भी किया। उन्होंने वर्ष 1921 में गांधीजी की आलोचना करते हुए कहा था, ‘आपके विचार तार्किक नहीं, बल्कि जादू पर आधारित हैं।’

क्रांतिकारी बिपिन चंद्र की प्रमुख रचनाएं

बिपिन चंद्र पाल क्रांतिकारी होने के साथ-साथ एक कुशल लेखक, वक्ता और संपादक थे। उन्होंने अपने जीवन काल में कई रचनाओं का लेखन और कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया।

पाल की कुछ प्रमुख रचनाएं निम्न हैं:-

  • इंडियन नेशनलिज्म
  • नेशनलिटी एंड एम्पायर
  • द सोल ऑफ़ इंडिया
  • स्वराज एंड द प्रेजेंट सिचुएशन
  • द न्यू स्पिरिट
  • स्टडीज इन हिंदुइज़्म
  • क्वीन विक्टोरिया – बायोग्राफी
  • द बेसिस ऑफ़ रिफॉर्म

बिपिन चंद्र के द्वारा संपादित प्रमुख पत्रिकाएं

  • परिदर्शक, 1880
  • बंगाल पब्लिक ओपिनियन, 1882
  • लाहौर ट्रिब्यून, 1887
  • द न्यू इंडिया, 1892
  • वन्देमातरम, 1906, 1907
  • द इंडिपेंडेंट, इंडिया, 1901
  • स्वराज, 1908 -1911
  • द डेमोक्रैट, 1919, 1920
  • बंगाली, 1924, 1925
  • द हिन्दू रिव्यू , 1913

महान भारतीय क्रांतिकारी पाल का निधन

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महान क्रांतिकारियों में से एक बिपिन चंद्र पाल का 20 मई, 1932 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में देहांत हो गया।

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