किसी भी देश के लोगों के लिए वहां की संस्कृति खास अहमियत रखती है फिर चाहे त्योहार हो या कोई अन्य उत्सव उसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार वहां के जन सामान्य के दिलोदिमाग में एक खुशहाली का प्रतीक होता है जिसे वे पूरा जोश व उत्साह से मनाना नहीं भूलते हैं।
मार्च—अप्रैल के महीनों में कई देशों में नववर्ष नये साल के आवागमन पर मनाया जाता है। जहां भारतीय नव वर्ष अभी कुछ दिन पहले गुजरा है वहीं म्यांमार में शनिसार से अपने नये साल के आवागमन का उत्सव ‘थिंगयान वाटर फेस्टिवल’ बड़े धमूधाम से मनाया जाता है।
म्यांमार की पूर्व राजधानी यांगून (रंगून) में शनिवार को 600 साल पुराने पारंपरिक थिंगयान वाटर उत्सव (फेस्टिवल) का रंगारंग आगाज हुआ। यह त्योहार 16 अप्रैल मंगलवार तक चलेगा। इसके खत्म होने के साथ ही यहां पर 17 अप्रैल से बौद्ध नववर्ष की शुरुआत हो जायेगी।
इस जलोत्सव में सम्मिलित होने के लिए दुनिया भर के लोग यहां पहुंचते हैं। यहां पधारे मेहमानों के लिए शहर की सुरक्षा को पूरी तरह सुरक्षित किया जाता है। ये लोग पूरे शहर में घूमते हैं और सड़क के किनारे पांडालों से उनके ऊपर पाइपों से पानी तेज धारा छोड़ी जाती है। इस साल इस उत्सव में 11 करोड़ लीटर पानी का उपयोग किया जाएगा। यहां इस उत्सव में 30 हजार पर्यटकों के पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है। पिछले वर्ष यह संख्या 27 हजार के करीब थी।
म्यांमार में इस त्योहार को यांगून के अलावा के कई शहरों में भी मनाया जाता है। जहां बच्चों से लेकर बूढ़े तक इसमें शिरकत करते हैं।
म्यांमार में मनाये जाने वाले त्योहारों में से थिंगयान वाटर फेस्टिवल सबसे बड़ा माना जाता है। चार दिनों तक मनाया जाने वाले में उत्सव में लोग जश्न के दौरान पिछले एक साल की बुराइयों को मिटाने के लिए आपस में एक—दूसरे पर पानी फेंकते हैं।
यांगून में थिंगयान उत्सव में आए हुए पर्यटकों की सुरक्षा के लिए 8 हजार से ज्यादा सुरक्षाबल के जवानों की तैनाती की गई है। इसका प्रमुख कारण पिछले कुछ समय से रोहिंग्या और म्यांमार सेना के बीच चल रहा संघर्ष है।
भारत से गए हिंदुओं ने इसे उत्सव का रूप दिया
म्यांमार में मनाये जाने वाले थिंगयान उत्सव के बारे में माना जाता है कि लोगों द्वारा एक-दूसरे पर पानी फेंकने से पिछले साल की गई बुराईयां धुल जाती हैं।
उनके द्वारा नए साल की शुरुआत साफ मन से हो, यही उद्देश्य रहता है। सूर्य जब मेष से मीन राशि में प्रवेश करता है (अप्रैल मध्य में), तब थिंगयान मनाया जाता है। यह उत्सव 13वीं शताब्दी से मनाया जा रहा है। तत्कालीन बर्मा में भारत से आए हिंदुओं ने इसे पर्व का स्वरूप दिया था।