सऊदी अरब वाले जो खास तरह की ड्रेस पहनते हैं ये रही उसकी पूरी कुंडली

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कुछ समय पहले तक सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के बारे में आप और हममें से शायद ही कोई उनके बारे में जानता होगा। 2015 में उनके पिता ने जब सउदी अरब के राजा की गद्दी संभाली तो प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान का भी हर तरफ जिक्र होने लगा। आज माहौल ऐसा है कि दुनिया के सबसे बड़े तेल भंडार के मालिक सलमान के बारे में हर कोई जानना चाहता है।

सलमान के प्रिंस बनने के बाद सऊदी में बदलाव की एक हवा महसूस की जा रही है। रूढ़िवादी छवि वाले सऊदी को सलमान ने लिबरल और समानता की छवि वाला देश बनाने का वादा भी किया है। मोहम्मद बिन सलमान ने सैन्य हस्तक्षेप, आतंकवाद को लेकर कई कठोर फैसले आते ही लिए। सलमान अभी भारत में हैं और उनकी यात्रा के बारे में जानने के लिए आपको इंटरनेट पर खूब मैटेरियल मिल जाएगा।

लेकिन हमनें सोचा कुछ अलग मुहैया करवाया जाए, तो बस इसी ललक में हमारी जिज्ञासा हमें उनके पहनावे के बारे में जानने की ओर ले गई। अक्सर आपने सोचा होगा कि सऊदी अरब के नेता और बड़े लोग एक खास तरह की ड्रेस पहनते हैं, अगर आपको फैशन डिजाइनिंग की थोड़ी बहुत समझ है तो ठीक है, नहीं हो तो फिर चलिए हम आपको बताते हैं उस खास ड्रेस के बारे में सबकुछ।

अरब हमेशा से ही अपने फैशन डिजाइनों में सभी से अलग रहा है। सऊदी अरब में पहना जाने वाला लबादा “बिश्ट” एक पारंपरिक अरेबियन लबादा है। लबादा का मतलब होता है चोगा या घुटनों से नीचे तक पहनी जाने वाली ड्रेस। पुरुष लबादा को सिर के ऊपर से पहनते हैं। लबादा आमतौर पर ऊन से बना होता है और यह सफेद, क्रीम, भूरे और काले रंग में मिलता है।

इसके अलावा बिश्ट पॉलिएस्टर या कपास से भी बनाया जाता है। इसकी रेशमी बनावट के कारण, इसे किसी भी मौसम में पहना जा सकता है। अधिक गुणवत्ता वाले बिश्ट ऊंट के बालों से भी बनाए जाते हैं। बिश्ट शब्द फारसी का है जिसका मतलब होता है ‘किसी की पीठ पर’।

यह बिश्ट अरब के खाड़ी देशों में, इराक और सऊदी अरब के उत्तर में स्थित देशों में राजनेताओं, धार्मिक विद्वानों के लिए पहली चॉइस माना जाता है। यह पारंपरिक पहनावे से थोड़ी अलग पहचान देने के लिए है। लोगों का कहना है कि कोई भी कपड़ा हाथ से तैयार किए गए बिश्ट जैसा मजा नहीं देता है। यही कारण है कि बिश्ट सिलाई की कला पीढ़ी दर पीढ़ी निखर रही है।

बिश्ट पहले फारस में सिलवाया गया था। सऊदी में बिश्ट का चलन तब बढ़ा जब फारस से व्यापारी हज या उमरा करने के लिए यहां आने लगे। पूर्वी प्रांत का अल-अहसा क्षेत्र 200 सालों से सबसे शानदार बिश्ट बनाने वाले दर्जियों के लिए जाना जाता रहा है, वहीं 1940 के बाद से खाड़ी देशों में सबसे ज्यादा बिश्ट यहीं से बनकर आते हैं।

बिश्ट बनाने में तीन प्रकार की कढ़ाई का उपयोग किया जाता है – सोने की सिलाई, चांदी की सिलाई और रेशम की सिलाई। सोने की सिलाई के साथ काले बिश्ट सबसे ज्यादा पसंद किए जाते हैं। 90 के दशक की शुरुआत में बाजार में ब्लू, ग्रे और मैरून रंग में भी बिश्ट उतारे गए जो युवा पीढ़ी को काफी पसंद आ रहे हैं।

कपड़े, सिलाई, रंग और डिजाइन को मिलाजुला कर देखें तो बिश्ट 100 सऊदी रियाल यानि करीब 2000 रूपये से लेकर 20,000 सऊदी रियाल तक बाजार में मिलते हैं। राजनेता और वीआईपी लोग अक्सर हैंडमेड बिश्ट ही पहनते हैं।

बिश्ट आमतौर पर 3 तरह की डिजाइनों में आते हैं – दरबेह, मीकासर और तारकीब।

दरबेह पूरी तरह से हैंडमेड होते हैं और उन पर कढ़ाई पारंपरिक पैटर्न में की जाती है। इनको ढीले शेप में डिजाइन किया जाता है।

दूसरे मेकासर को गस्बी भी कहा जाता है, जिनमें रेशम वर्क भी होता है। वहीं तीसरे डिजाइन को तारकीब कहते हैं जिसका मतलब होता है फिटिंग, यह दरबेह का ही मॉडिफाइड डिजाइन होता है।

हैंड-मेकिंग बिश्ट को बनाने में 80 से 120 घंटे लग सकते हैं जिसमें 3 से 4 टेलर्स मिलकर एक साथ काम करते हैं। सिलाई मशीन के आविष्कार से पहले तक बिश्ट को हाथ से ही सिला जाता था लेकिन इन दिनों अधिकांश बिश्ट मशीन से बनाए जा रहे हैं और हां, जैसे भारत में अभी भी खादी पहनने वाले पाए जाते हैं ठीक वैसे ही हैंडमेड बिश्ट आज भी लोगों की पहली पसंद है।

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