तीन सालों तक किसी को नहीं दिए गए देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान, जानिए क्यों

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आप सभी ने भारत रत्न, पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण जैस प्रसिद्ध नागरिक सम्मानों के बारे में तो सुना ही होागा। इनमें से ‘भारत रत्न’ को देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार माना जाता है। भारत रत्न और पद्म विभूषण की शुरुआत 2 जनवरी 1954 में हुई थी, जिसे भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद द्वारा घोषित किया गया था। ये सभी देश की अलग-अलग विधाओं में महारथी हस्तियों को दिए जाने वाले विशिष्ट सम्मान हैं।

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फेरबदल के बाद बने पद्मभूषण और पद्मश्री :

पद्म विभूषण की स्थापना के एक साल बाद इसमें कुछ फेरबदल किए गये। जिसके बाद पद्म विभूषण को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया। इसमें सबसे बड़ा पद्म विभूषण, फिर पद्म भूषण और तीसरे स्थान पर पद्म श्री पुरस्कार घोषित किया गया। सबसे पहला पद्म विभूषण गणितज्ञ, भौतिक शास्त्री और वैज्ञानिक सत्येंद्रनाथ बोस को दिया गया था और पहला भारत रत्न प्रसिद्ध वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकटरमन को दिया गया था।

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1977 में सरकार ने बंद कर दिए थे ये पुरस्कार :

साल 1977 में एक समय ऐसा भी आया था, जब तत्कालीन सरकार ने ये सम्मान देना बंद कर दिया था। इस कदम के पीछे सरकार का तर्क भी काफी चौंकाने वाला था। उनका कहना था कि ‘पुरस्कार बांटना एक घटिया काम है और सरकारों को ये नहीं करना चाहिए।’ इस कारण करीब तीन साल तक ये पुरस्कार किसी को नहीं दिए गए थे। ये किस्सा उस जनता पार्टी का है, जिसने सन् 1977 से 1980 के दौरान देश की सत्ता संभाली थी।

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सत्ता पलटी तो फिर मिलने लगा नागरिकों को सम्मान :

1980 में जब कांग्रेस सरकार सत्ता में आई तो सम्मान देने का ये सिलसिला आज ही के दिन यानी 25 जनवरी को फिर शुरू हुआ। दरअसल इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाए जाने के बाद देश में नाराजगी फैल गई थी, ऐसे में जनता पार्टी जीती और केंद्र में आई। ये राष्ट्रवादी सरकार सम्मान, पुरस्कार और उपाधियों को लेकर काफी सख्त थी और इन्हें ‘अंग्रेजों की सोच का परिणाम’ मानती थी। लिहाजा अपने शासनकाल में इस सरकार ने एक भी भारत रत्न या पद्म पुरस्कार नहीं दिया।

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