SC ने अयोध्या मामले में सुनाया ऐतिहासिक फैसला, जानें राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले में कब क्या हुआ…

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देश के सबसे बड़ा विवादित मामला राम मंदिर-बाबरी मस्जिद किसी  तरह से अपने अंजाम तक पहुंच गया है। सालों से चले आ रहे इस विवादित मामले में शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों वाली बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि रामजन्मभूमि न्यास को मंदिर बनाने के लिए विवादित जमीन दी जाएगी। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को किसी अन्य जगह पर 5 एकड़ जमीने देने का फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने विवादित जमीन पर मुस्लिम पक्ष के दावे को भी खारिज कर दिया है।

इससे पहले कोर्ट ने विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता का रास्ता अपनाने हुए आदेश जारी किया। 5 जजों की संवैधानिक बेंच राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद में सुनवाई की। एससी ने मध्यस्थता के लिए 3 सदस्यों का एक पैनल बनाया।

कुछ समय पहले संघ के नंबर 2 माने जाने वाले भैयाजी जोशी का कहना था कि भव्य राम मंदिर 2025 में बनेगा। तंज भरे इस बयान के बाद सरकार से नाराजगी साफ जाहिर होती है।

गौरतलब है कि अपने एक इंटरव्यू में पीएम नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर मामले को लेकर कानूनी कार्यवाही तक इंतजार करने की बात कही थी। ऐसे में आइए जानते हैं राम मंदिर विवाद में अब तक क्या-क्या हुआ है।

1994 में हुई थी पहली बार सुनवाई

27 सितंबर को इस्माइल फारूकी ने भारतीय संघ के खिलाफ एक पुनर्विचार याचिका दायर की जिसके बाद राम जन्मभूमि विवाद की सुनवाई शुरू हुई लेकिन मामला तीन महीने के लिए अटक गया। अब ताजा जजों की जो टीम है उसमें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस संजय किशन कौल शामिल हैं।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने क्या कहा था ?

30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर 2.77 एकड़ जमीन मामले से जुड़े तीनों पक्षों को बराबर बांट देनी चाहिए। फैसला किसी को रास नहीं आया और इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।

राम मंदिर पर मिली तारीख पर तारीख

ऐतिहासिक तौर पर यही माना जाता है कि अयोध्या में 1528 में बाबरी मस्जिद बनवाई गई थी।

1949 – बाबरी मस्जिद में भगवान राम की मूर्ति पाई गई जिसके बाद दो पक्ष बने और कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और स्थल के ताला लग गया।

1959 – निर्मोही अखाड़ा सामने आया और विवादित जमीन को स्थानांतरण करने की अर्जी लगाई।

1961 – सामने वाले पक्ष से यूपी सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ने भी बाबरी मस्जिद स्थल पर अपना मालिकाना हक जताया।

1986 – हालांकि विवादित जगह को आने वाले लोगों के लिए खोला गया है और 1986 में ही बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बन गई थी।

1989 – कहा जाता है कि राजीव गांधी सरकार की इजाजत मिलने के बाज विश्व हिंदू परिषद ने वहां मंदिर का शिलांयास कर दिया।

6 दिसंबर, 1992 – ये दिन इतिहास में दर्ज है जिस दिन हजारों की संख्या में लोग जय श्री राम के नारे लगाते हुए अयोध्या पहुंचे जहां उन्होंने बाबरी मस्जिद को ढ़हा दिया और पुलिस के लाठी चार्ज और फायरिंग में कई लोगों ने अपनी जान गंवाई। प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव जल्दबाजी में एक अस्थाई राम मंदिर बनाया।

1994 – इलाहाबाद हाई कोर्ट में बाबरी मस्जिद विध्वंस का केस शुरू हुआ।

4 मई, 2001 – स्पेशल जज एसके शुक्ला ने फैसला सुनाया और बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सहित 13 नेताओं को साजिश के आरोपों से बरी कर दिया गया।

1 अप्रैल 2002 – अयोध्या की विवादित जमीन पर किसका हक होगा इसके लिए इलाहबाद हाई कोर्ट ने सुनवाई शुरू की। जिसके बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को खुदाई के आदेश मिले।

22 अगस्त, 2003 – भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने खुदाई के बाद बताया कि जमीन के नीचे 10वीं सदी की मस्जिद के अवशेष मिले जिसको लेकर मुस्लिमों के अलग-अलग मत थे।

26 जुलाई, 2010 – इलाहबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा और इससे जुड़े हर पक्ष को आपसी हल निकालने के लिए कहा।

30 सितंबर 2010 – आखिर कार इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया और विवादित जमीन को तीनों पक्षों में बराबर बांटने के लिए कहा गया।

9 मई 2011 – सुप्रीम कोर्ट ने फिर इस फैसले पर रोक लगा दी।

19 अप्रैल 2017 – सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद ढ़हा देने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं पर केस चलाने का फैसला सुनाया।

27 सितंबर 2018 – कोर्ट ने कहा अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद का निर्णय साक्ष्यों के आधार पर होगा और पूर्व का फैसला सिर्फ भूमि आधिग्रहण के केस में ही लागू होता है।

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