मैं छुपाना जानता तो जग मुझे साधु समझता,
शत्रु मेरा बन गया है छल-रहित व्यवहार मेरा।
ऊपर लिखी दो लाइनें किसी इंसान का परिचय है जिसकी मधुशाला से निकला हर एक अल्फाज सुनने वाले को मदहोश कर जाता था। जी हां, हम बात कर रहे हैं हिंदी साहित्य के कालजयी कवि और रचनाकार हरिवंश राय बच्चन की, जिनकी कविताओं में उनके व्यक्तित्व की छवि देखी जा सकती थी। ऐसे में उनकी पुण्यतिथि पर आइए चलते हैं थोड़ा पीछे और झांकते हैं इस महान व्यक्ति की दुनिया में…
घर में ‘बच्चन’ नाम से बुलाये जाते थे हरिवंश राय
इलाहाबाद के पास प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव ‘बाबू पट्टी’ में 27 नवंबर, 1907 को पैदा हुए हरिवंश को घर में ‘बच्चन’ नाम से बुलाया जाता था। आगे चलकर पूरी दुनिया ने भी इसी नाम से जाना। शुरूआती शिक्षा गाँव में ही पूरी हुई। अंग्रेजी में एम.ए. करने के लिए फिर प्रयाग विश्वविद्यालय पहुंचे, जहां से फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी लिटरेचर के जाने माने कवि डब्लू बी यीट्स की रचनाओं पर रिसर्च कर अपनी पीएचडी पूरी की। हरिवंश राय बच्चन के बारे में कहा जाता है कि वो हिन्दी साहित्य के इतिहास में पहले ऐसे कवि और साहित्यकार थे, जिनकी कविताओं में हमेशा बेबाकी और अदम्य साहस झलकता था।
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छांह भी,
मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
हरिवंश राय बच्चन के बेटे आज फिल्मी जगत के शहंशाह है लेकिन उन्होंने अपने पिता की शख्शियत का हमेशा सम्मान किया है। अमिताभ अपने पिता की कविताओं को याद करते हुए कहते हैं कि मैं सदियों से बाबूजी की कविताएं सुनता आ रहा हूँ और आज भी मुझे कविताओं के जरिए उन्हें याद करना अच्छा लगता है। उनकी कविताएं अपने आप मेरे अंदर से निकलती है।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
जिस दिन मेरी चेतना जगी मैंने देखा
मैं खड़ा हुआ हूँ इस दुनिया के मेले में,
हर एक यहाँ पर एक भुलाने में भूला
हर एक लगा है अपनी अपनी दे-ले में
कुछ देर रहा हक्का-बक्का, भौचक्का-सा,
आ गया कहाँ, क्या करूँ यहाँ, जाऊँ किस जा ?
अकेलेपन का बल पहचान !
बच्चनजी की कविताओं में जीवन है, उत्साह है, उम्मीद है, आत्मबल है-
अकेलेपन का बल पहचान !
शब्द कहां जो तुझको टोके,
हाथ कहां जो तुझको रोके,
राह वही है, दिशा वही, तू जिधर करे प्रस्थान !
अकेलेपन का बल पहचान !
हरिवंश राय बच्चन की कविता संगह्र मधुशाला को सबसे ज्यादा पसंद किया गया था। हिंदी साहित्य में मधुशाला को बच्चनजी की तरफ से दिया हुआ उपहार माना जाता है।
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।
प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।
प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।
भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।
जीवन में एक सितारा था
साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में ‘पद्मभूषण’ से नवाजे गए
हरिवंश राय बच्चन का पूरा जीवन हिंदी साहित्य के लिए था और अपने काम के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी नवाजा गया था। वहीं, उन्हें ‘सरस्वती’ सम्मान के अलावा भारत सरकार की तरफ से 1976 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में ‘पद्मभूषण’ भी दिया गया। 18 जनवरी, 2003 को हरिवंश राय बच्चन ने मुंबई में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। लेकिन आज भी लोग उनकी बेहतरीन कविताओं के जरिए उन्हें याद करते रहते हैं।
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