जानिए क्यों पर्थ के मैदान को कहा जाता है बल्लेबाजों का कब्रिस्तान

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शुक्रवार से आॅस्ट्रेलिया और भारत के बीच शुरू होने जा रहा दूसरा टेस्ट मैच पर्थ के वाका मैदान में खेला जाएगा। दशकों से इस मैदान को बल्लेबाजों का कब्रिस्तान बोला जाता है जिसके कई कारण हैं। पर्थ की पिच पर गेंद की स्पीड तेज होने के साथ अतिरिक्त उछाल लेती हुई आती है। आसान भाषा में समझाएं तो बल्लेबाज को बॉल दिखना शुरू होने से पहले या तो विकेटकीपर के पास पहुंच जाती है या विकेट में घुस जाती है। लेकिन पिछले कुछ सालों से दुनिया की सबसे टफ विकेटों में से एक पर्थ की चमक फीकी पड़ती नजर आई है। यहां ज्यादा घास नहीं होने के कारण ये एकदम फ्लैट हो जाती है जहां गेंदबाजों को बल्लेबाजों के आगे संघर्ष करना पड़ता है।

पिच क्यूरेटर ने आॅस्ट्रेलिया और भारत के बीच खेले जाने वाले दूसरे टेस्ट को लेकर कहा है कि इस बार इस पिच पर गेंदबाजों की चांदी होने वाली है। पर्थ में रिकॉर्ड की बात करें तो पूर्व आॅस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज ग्लैन मैकग्रा के नाम एक पारी में 8 विकेट लेने का रिकॉर्ड दर्ज है। जानिए क्यों पर्थ की पिच करती है बल्लेबाजों को परेशान

1.हवा: आॅस्ट्रेलिया के पर्थ शहर में स्थित वाका क्रिकेट ग्राउंड पर हवा सबसे महत्वपूण भूमिका निभाती है। पिच में उछाल और हवा में तेजी होने की वजह से गेंदबाजों को एक्स्ट्रा स्विंग मिलता है जिसमें बल्लेबाज अंदाजा लगाए उससे पहले ही गेंद या तो उसके बल्ले को छूते हुए स्लिप में खड़े फील्डर के हाथों में होती है या फिर वो स्टंप्स के अंदर होती है।

2. मिट्टी: पर्थ की विकेट एक खास मिट्टी से बनी है जिसमें हर समय नमी मौजूद रहती है। इसी नमी के कारण यहां घास उग जाती है जो गेंद को उछाल देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कहते हैं कि पर्थ के मैदान पर पिच क्यूरेटर रोलिंग मशीन या तो पूरी तरह से चलाते हैं या फिर चलाते ही नहीं है और उसे वो जैसी है वैसी ही छोड़ दिया जाता है।

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