‘मैं जिंदगी को उसी के गेम में हराती रही। अभी आप मुझे बुजुर्ग और बदसूरत देख रहे हैं, जबकि पहले आपने मुझे जवान और बदसूरत देखा होगा।’ ये लाइनें पढ़कर आपको अंदाजा लग गया होगा कि कोई कितना जिंदादिल हो सकता है। हम यहां बात कर रहे हैं अदाकारा जोहरा सहगल की। एक साक्षात्कार के दौरान जब उनसे पूछा गया कि जिंदगी का मुश्किल समय कौनसा रहा, तो उसके जवाब में उन्होंने ऊपर लिखी बातें कहीं। जोहरा की एक खास बात थी कि वह जिंदगी का हर पल जीने में विश्वास रखती थीं और यह उनके चेहरे पर भी साफ झलकता था।
सिनेमा जगत में 80 साल तक सक्रिय रही जोहरा सहगल को देखकर कभी यह नहीं कहा जा सकता था कि वे थक गई हैं। उनके अंदर इतनी ऊर्जा थी कि वे अपने आस-पास मौजूद हर शख्स में जान फूंक दिया करती थीं। उनकी बातें इतनी सकारात्मक हुआ करती थी कि कोई भी उनसे प्रेरणा ले सकता था। खुशियों से भरी इस शख्सियत की 27 अप्रैल को 111वीं बर्थ एनिवर्सरी है। इस अवसर पर आपको रूबरू करवाते हैं उनकी जिंदगी के पहलुओं से…
जोहरा सहगल का जन्म 27 अप्रैल, 1912 को उत्तरप्रदेश के सहारनपुर में एक शाही परिवार में हुआ था। उन्हें बचपन से ही कला में काफी दिलचस्पी थी, लेकिन एक रूढ़िवादी सुन्नी मुस्लिम परिवार में पैदा होने की वजह से उन्हें नाचने-गाने की इजाजत नहीं थी। हालांकि, जोहरा अपनी इच्छाओं को मारना नहीं देना चाहती थीं। वे एक ऐसे दौर में पैदा हुई थीं, जब महिलाएं पुरुषों के सामने आने में भी सकुचाती थी, लेकिन जोहरा की एक खास बात थी आत्मविश्वास, जिसके दम पर वे हर जंग आसानी से जीत लिया करती थीं।
क्वीन मैरी से ग्रैजुएट होने के बाद जोहरा सहगल ने एक ब्रिटिश एक्टर से यूरोप में एक्टिंग की ट्रेनिंग ली थी। साथ ही उन्होंने बैलेट भी सीखा। उनकी आर्ट में दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी। जब उन्होंने यूरोप में उदय शंकर को परफ़ॉर्म करते देखा था तो वे सीधा उनके पास गई और उन्हें कहा कि मुझे अपनी टीम में शामिल कर लीजिए। जोहरा की काबिलियत और उनके आत्मविश्वास को देखकर उदय शंकर ने उन्हें अपनी टीम में शामिल कर लिया। उन्होंने इसके बाद जापान, मिस्त्र, यूरोप और अमेरिका जैसे कई देशों की यात्रा अपनी टीम के साथ की।
भारत से जोहरा का खास लगाव था। यही कारण है कि भारत-पाक विभाजन के दौरान जोहरा और उनके पति मुबंई ही रुक गए थे, क्योंकि वे लाहौर में घर जैसा महसूस नहीं कर रहे थे। जोहरा नास्तिक थीं और उनके पति कमलेश्वर भी धर्म में खास विश्वास नहीं करते थे।
जोहरा सहगल मुबंई में 14 सालों तक पृथ्वी थिएटर से जुड़ी रही थीं। कई सालों की मेहनत के बाद जोहरा को अब्बास की फिल्म ‘धरती के लाल’ में काम करने का मौका मिला। इसके बाद उन्होंने ‘नीचा नगर’ में काम किया था। फिल्म को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त हुई और वर्ष 1946 में कान फिल्म फेस्टिवल में अवॉर्ड भी जीता।
जोहरा ने अपने कॅरियर में 50 से ज्यादा देशी-विदेशी फिल्मों और टीवी सीरियल में काम किया। ‘भाजी ऑन द बीच’ (1992), ‘हम दिल दे चुके सनम’ (1999), ‘द करटसेन्स ऑफ बॉम्बे’ (1982) ‘बेंड इट लाइक बेकहम’ (2002), ‘दिल से'(1998), ‘वीर जारा’ (2004) और ‘चीनी कम’(2007) जैसी फिल्मों में बेहतरीन अभिनय के लिए उन्हें याद किया जाता है। नवंबर 2007 में रिलीज हुई फिल्म ‘सांवरिया’ उनकी आखिरी फिल्म थी।
9 जुलाई, 2014 को जोहरा सहगल को निमोनिया होने के कारण दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती करवाया गया। इसके अगले दिन 10 जुलाई, 2014 को 102 साल की जोहरा का हार्ट अटैक से निधन हो गया। मौत से पहले जोहरा ने अपने परिवार से कहा था कि उन्हें बिना कविता कहानियों के जलाया जाए और अगर शमशान में उनकी अस्थियां रखने से मना कर दिया जाए तो उनकी अस्थियों को टॉयलट में फ्लश कर दिया जाए।
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