Will this time become Odisha's BJP-ruled state?
भारत के पूर्वी राज्य ओडिशा में लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव भी सम्पन्न हो गए हैं। अब इन चुनावों के नतीजों का सबको इंतजार है। ओडिशा में लोकसभा की 21 और विधानसभा की 147 सीटों के लिए 29 अप्रैल तक चार चरण में मतदान हुए। इन चुनावों में ओडिशा में बहुत कुछ बदलने की बात कही जा रही है। ये चुनाव ओडिशा में बीजेपी की आगे की राजनीति का भविष्य भी तय करने वाले हैं। साथ ही नतीजे आने तक यह सवाल सामने है कि इस बार ओडिशा में किसकी सरकार? क्या 2019 का विधानसभा चुनाव ओडिशा के सबसे लंबे समय तक सीएम नवीन पटनायक को खुशी दे पाएंगे? आइये जानते हैं इस बार के ओडिशा चुनाव बीजेपी और बीजेडी दोनों के लिए ही क्यों महत्वपूर्ण बने हुए हैं..
ओडिशा के वर्तमान मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल (बीजेडी) के अध्यक्ष नवीन पटनायक अपनी हर चुनावी सभा में लोगों से पूछते थे कि ‘क्या आप सब खुश हैं?’ वहीं मौजूद भीड़ की ओर से जवाब मिलने के बाद नवीन भी कहते थे कि ‘मैं भी खुश हूं।’ ओडिशा के मुख्यमंत्री के रूप में लगातार चार कार्यकाल पूरे कर चुके नवीन पटनायक के लिए यह चुनाव कठिन चुनौती और परीक्षा वाला रहा है। इस बार यहां बीजेपी भी बीजेडी को मज़बूती के साथ टक्कर देती नज़र आती है। भारतीय जनता पार्टी ने पिछले चार सालों से यहां संगठनात्मक विस्तार तो किया ही है, साथ ही अपनी लोगों के बीच जगह बनाने में भी सफल रही है।
ओडिशा विधानसभा चुनाव के बारे में कहा तो ये जा रहा है कि इस बार यहां बीजेडी, बीजेपी और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यहां मुख्य मुकाबला बीजेडी और बीजेपी के प्रत्याशियों के बीच ही है। ओडिशा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी के पक्ष में जमकर प्रचार किया। इन दोनों वरिष्ठ नेताओं के अलावा पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने बीजेडी और नवीन पटनायक सरकार पर प्रहार किए। साल 2000 से साल 2008 तक ओडिशा विधानसभा में बीजेडी की सहयोगी पार्टी के रूप में काम करती रही बीजेपी बीते एक दशक के दौरान राज्य में मजबूती हासिल करती दिख रही है। 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ओडिशा की 147 विधानसभा सीटों में 10 तथा 21 लोकसभा सीटों में से एक पर जीत दर्ज की थी। वहीं, कांग्रेस ने भी विधानसभा की 10 सीटों पर कब्जा किया था। दूसरी तरफ नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी ने लोकसभा की 20 सीटें और विधानसभा की 117 सीटें पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी।
2009 के चुनाव से पहले बीजेपी ने अपने गठबंधन साथी बीजेडी के साथ ओडिशा में चुनाव लड़ा। लेकिन साल 2008 में गठबंधन टूट जाने बाद बीजेपी ने बीजू जनता दल से अलग होकर चुनाव लड़ा। हालांकि इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मात्र 6 विधानसभा सीटों पर जीत मिली। यहीं से बीजेपी ने राज्य में अपना अलग आधार बनाना शुरू कर दिया। जबकि इस दौरान हुए लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को सफलता हाथ नहीं लगी और वह एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। बीजेडी ने लोकसभा की 14 और विधानसभा की 103 सीटों पर जीत हासिल की थी। कांग्रेस को इस चुनाव में 6 लोकसभा और 27 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थीं।
साल 2014 में ऐतिहासिक जीत के साथ बीजेपी के केन्द्रीय सत्ता में आने के बाद से ही संगठन ने ओडिशा पर नज़र टिका दी थी। साल 2017 के स्थानीय निकाय चुनाव में इसका फायदा देखने को मिला। निकाय चुनाव में 853 में से 306 जिला परिषद सीटों पर जीत दर्ज कर बीजेपी ने चौंका दिया। 2012 के निकाय चुनाव में जहां बीजेडी की सीटें 651 थीं, वो बीजेपी की वजह से 2017 में घटकर 460 ही रह गई थीं। इस चुनाव में बीजेपी को एक बड़ी सफलता यह भी मिली की उसने कांग्रेस को राज्य में तीसरे नंबर पर धकेल दिया। 2017 के चुनाव में कांग्रेस के जिला परिषद सदस्यों की संख्या 126 से घटकर मात्र 66 रह गईं।
माना जा रहा है कि इस 2019 के लोकसभा चुनाव और राज्य के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कमजोर प्रचार के चलते लड़ाई BJD वर्सेज BJP बन गई है। हालांकि इससे पहले भी एंटी बीजेडी वोट्स, बीजेपी और कांग्रेस में बंटते रहे हैं, जिसका सीधा लाभ BJD को मिलता था। इस बार के चुनाव प्रचार में बीजेपी की ओर से आक्रामक प्रचार किया गया। पीएम मोदी और अमित शाह की अगुवाई ने ओडिशा की जनता के मन में यह सवाल ला ही दिया है कि नवीन पटनायक की क्लीन इमेज के बावजूद क्या बिना किसी सवाल-जवाब के वे पटनायक को अपना लीडर मान बैठे? हालांकि इस बार भी पूर्व सीएम बीजू पटनायके के बेटे नवीन को पांचवी बार सीएम बनने की पूरी उम्मीद नज़र आती है। उनकी यह उम्मीद पूरी होती है या नहीं यह तो चुनाव के परिणाम तय करेंगे।
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1997 में बीजू पटनायक के निधन के बाद उनके बेटे नवीन पटनायक राजनीति में उतरे और 2000 में ओडिशा के पहली बार सीएम बने थे। तब से वे राज्य के सीएम बने हुए हैं। 2019 का चुनाव नवीन और उनकी पार्टी के महत्वपूर्ण रहने वाला है। यह इनकी क्षमता और एंटीइन्कमबेसी को हावी नहीं होने देने का सबूत वाला चुनाव होगा। अगर बीजेपी यहां से जीत दर्ज करती है तो वह पहली बार ओडिशा में खुद की सरकार बनाने में कामयाब होगी। माना जा रहा है कि इस बार बीजेपी ओडिशा में बीजेडी का गढ़ ढ़हा सकती हैं।
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