राजस्थान में आज वोटिंग का दिन है। वोटिंग सभी विधानसभा क्षेत्रों मे सुबह 8 बजे शुरू हो चुकी है। सभी पार्टियों की नजर अब नतीजों पर होगी जो कि 11 दिंसबर को आने वाले हैं। चुनावी समीकरणों की अगर बात करें तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों को ही बागी या निर्दलीय प्रत्याशियों का डर जरूर सता रहा है। राजस्थान में निर्दलीय प्रत्याशी लगभग 60 सीटों को प्रभावित कर सकते हैं। और यह कहना उतना मुश्किल नहीं लगता है कि सरकार बनाने की चाबी इन्हीं निर्दलीय उम्मीदवारों के पास हो सकती है।
1990 के विधानसभा चुनावों के बाद से राजस्थान में निर्दलीय वोटों का हिस्सा कभी भी 20% से कम नहीं हुआ है। आपको बता दें कि इसका मतलब है कि बीजेपी और कांग्रेस को अगर छोड़ दें तो उसके अलावा विधानसभा में स्वतंत्र उम्मीदवारों की लिस्ट में 14 सीटें तो हमेशा ही आई हैं।
पिछले विधानसभा चुनावों में जब बीजेपी ने 163 सीटें जीतीं थी तो कांग्रेस को 21 सीटें मिलीं और निर्दलीय और अन्य 16 सीटों पर काबिज रहे।
देश के अधिकतर राज्यों में जहां कांग्रेस और बीजेपी ही प्रभावी है वहीं निर्दलीय प्रत्याशियों की अगर बात करें तो राजस्थान इस मामले में सबसे आगे है।
ऐसा 2008 में भी सामने आया था जब गहलोत ने मुख्यमंत्री की शपथ ली थी। तब कांग्रेस ने 6 बीएसपी और कुछ निर्दलीय प्रत्याशियों को जोड़कर सरकार बनाई थी। इनमें से कुछ वही थे जिन्हें कांग्रेस ने टिकट नहीं दी थी। बाद में 6 बीएसपी एमएलए को मंत्री या संसदीय सचिव बनाया गया।
कांग्रेस ने चुनावों में पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए 35 नेताओं को निष्कासित कर दिया है। भाजपा ने चार मंत्रियों सहित 11 को निष्कासित कर दिया है। वरिष्ठ कांग्रेस और बीजेपी नेताओं ने सहमति व्यक्त की कि स्वतंत्र या विद्रोहियों की भविष्यवाणी करना मुश्किल है लेकिन दोनों पार्टियों का कहना है कि उन्हें अब उनसे डील करना सीख लिया है।
फिर भी हर बार राजस्थान में निर्दलीय प्रत्याशी बीजेपी और कांग्रेस दोनों को ही प्रभावित करते नजर आते हैं। देखना दिलचस्प होगा तीसरा मोर्चा और निर्दलीय प्रत्याशी सरकार बनाने की प्रक्रिया को किस तरह प्रभावित कर पाते हैं।
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