खबरों पर फिलहाल सभी जगह प्रियंका गांधी छाई हुई है। वजह यही है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने प्रियंका गांधी वाड्रा को उत्तर प्रदेश पूर्व के महासचिव नियुक्त किया। प्रियंका फरवरी के पहले सप्ताह में कार्यभार संभालेंगी। ज्योतिरादित्य सिंधिया को तत्काल प्रभाव से उत्तर प्रदेश पश्चिम का प्रभारी बनाया गया है। लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के इस दांव को कुछ लोग मास्टरस्टॉक बता रहे हैं। लेकिन इससे सवाल यही उठता है कि प्रियंका गांधी इन दिनों में कहां गायब थीं।
इतने दिनों तक राहुल गांधी ही कांग्रेस में दिखाई दे रहे थे। ऐसा क्यों था? रायबरेली और अमेठी में अभी भी प्रियंका गांधी को प्रचार करते हुए देखा रहा था। लेकिन लाइमलाइट से वे दूर ही रहीं।
राहुल को पार्टी की कमान देने के फैसले से ठीक पहले प्रियंका और उसके समर्थक शांत हो गए थे। कहा जा रहा है कि सोनिया ने स्पष्ट रूप से कहा था कि केवल राहुल ही पार्टी अध्यक्ष होंगे। उसके बाद, प्रियंका ने एक सोची-समझी रणनीति के अनुसार पार्टी में अपनी गतिविधियों को कम कर दिया। फिर भी प्रियंका कांग्रेस के लिए काम करती रहीं लेकिन वो भी स्टेज के पीछे से।
कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि राहुल के सत्ता संभालने के बाद सोनिया को दो सत्ता केंद्र नहीं चाहिए। अगर प्रियंका पहले की तरह सक्रिय रहतीं तो राहुल पर सवाल खड़े होते। इसके अलावा वाड्रा मुद्दे पर भी सवाल उठाए जा सकते थे। इसलिए राहुल की कमान स्थापित करने के लिए सोनिया ने पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने और प्रियंका को सक्रिय राजनीति से दूर रखने का फैसला किया।
कई लोगों का मानना है कि प्रियंका में लीडरशिप के कई गुण हैं। कांग्रेस के नेता सलमान खुर्शीद ने भी कहा था कि प्रियंका गांधी गेम चेंजर हैं। प्रियंका गांधी भले ही एक्टिव पॉलिटिक्स में नहीं रही थीं लेकिन फिर भी वो पीछे से विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी की मदद कर रही थीं।
इस दौरान कई बार पार्टी नेता इस बात को मान चुके थें कि प्रियंका गांधी पार्टी के भीतर एक अहम रोल अदा कर रही हैं। अब जब प्रियंका को उत्तर प्रदेश में पार्टी जिम्मेदारी दी गई है तो साफ हो जाता है कि लोकसभा चुनावों को देखकर ही ऐसा किया जा रहा है।
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