कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों पर हुए आतंकवादी हमले के बाद जहां पूरा देश गम में डूबा हुआ है वहीं सेना और पैरामिलिट्री के जवानों के साथ सरकार की गैरबराबरी पर चर्चाओं का दौर एक बार फिर शुरू हो चुका है। हर बार किसी आतंकी हमले के बाद जवानों की शहादत को किस पैमाने पर आंका जाए, शहीद का दर्जा किसे मिले?..ये सब सवाल फिर जवाब मांगने लगे हैं।
ऐसे में आइए आसान भाषा में आपको समझाते हैं कि क्यों सेना और पैरामिलिट्री फोर्स के जवान अलग-अलग हैं और इनमें क्या फर्क होता है?
सबसे पहले भारतीय सेना के बारे में थोड़ा समझते हैं।
देश की सुरक्षा के लिए भारतीय सेना और अन्य सुरक्षा बल तैनात होते हैं। सेना में भारतीय सेना, वायु सेना और नौसेना को शामिल किया जाता है। भारतीय सेना के जवान सीमा पर तैनात नहीं होते हैं बल्कि युद्ध जैसी किसी भी स्थिति के लिए खुद को तैयार रखते हैं। भारतीय सेना रक्षा मंत्रालय को रिपोर्ट करती है। सेना के जवानों को अन्य किसी जवानों से सरकारी सुविधाओं का लाभ सबसे ज्यादा मिलता है।
अब समझो अर्धसैनिक बल या पैरामिलिट्री फोर्स को
भारतीय सेना से अलग देश में किसी भी जगह आंतरिक सुरक्षा यानि इंटरनल सिक्योरिटी और बॉर्डर पर चौकसी के लिए कई फोर्सेस बनाई गई हैं जिनमें सीआरपीएफ, बीएसफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ, एसएसबी होती है। आइए साथ में इनकी फुल फॉर्म भी जान लेते हैं।
ये सारे बल भारतीय सेना से कई मायनों में अलग होते हैं। वहीं ये सभी गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करते हैं।
सीआरपीएफ (CRPF)
230 बटालियनों के साथ केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) भारत के अर्धसैनिक बलों में सबसे बड़ा है। यह भारत सरकार के गृह मंत्रालय के तहत काम करता है। यह 27 जुलाई 1939 को अस्तित्व में आया। भारतीय स्वतंत्रता के बाद यह 28 दिसंबर 1949 को सीआरपीएफ अधिनियम के लागू होने पर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल बन गया।
क्या करते हैं अर्धसैनिक बल
– आतंकवाद औऱ नक्सलवाद विरोधी अभियानों को रोकना
– वीआईपी सिक्योरिटी
– देश में किसी भी जगह सिक्योरिटी के लिए तैनात
दिक्कत कहां आ रही है ?
पिछले काफी समय से जवानों के परिवार और कई संगठन यह मांग उठाते रहे हैं कि देश के लिए जान देने वाले जवानों के साथ सरकार दोगला रवैया अपनाती है। किसी भी पैरामिलिट्री फोर्स का जवान अगर आतंकी हमले में जान गंवाता है तो देश में उसे “शहीद” का दर्जा नहीं मिलता जबकि आर्मी यानि सेना के जवानों के लिए यह दिया जाता है।
वहीं सेना के जवानों और उनके परिवार के लोगों को मिलने वाली सरकारी सुविधाएं और लाभ पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों से काफी ज्यादा होती है।
सरकार इस पर क्या कहती रही है?
केन्द्र सरकारों के सामने यह मसला काफी बार आया है। 2017 में मोदी सरकार के गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू कहते हैं कि पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों के लिए शहीद शब्द का आधिकारिक रिकॉर्ड में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। सरकार ने आगे एक हलफनामे में यह भी कहा कि किसे शहीद का दर्जा दिया जाए इसके लिए हमारे पास शहीद शब्द की कोई परिभाषा नहीं है।
हालांकि वर्ष 2017 में संसद में सरकार बता चुकी है कि पैरामिलिट्री जवानों के ड्यूटी पर जान गंवाने पर शहीद शब्द का आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाता. 14 मार्च को लोकसभा में एक जवाब में गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू ने ये साफ किया था कि किसी कार्रवाई या अभियान में मारे गए केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों और असम राइफल्स के कर्मिकों के संदर्भ में शहीद शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है।
रोहित शर्मा ने सनराइजर्स हैदराबाद के खिलाफ फील्डिंग की सजावट की और कप्तान हार्दिक पांड्या…
अग्निवीर स्कीम को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने…
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) रोक लगाने से इनकार कर दिया…
चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बड़ी भविष्यवाणी की है। प्रशांत…
आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंफोसिस के चेयरमैन नारायण मूर्ति…
कोलकाता हाई के पूर्व जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय भाजपा में शामिल हो गए है। उन्होंने हाल…
Leave a Comment