आधुनिक भारत के जनक और एक स्वस्थ्य लोकतंत्र की नींव रखने वाले पंडित जवाहर लाल नेहरू किसी पहचान के मोहताज नहीं है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद खस्ताहाल भारत को फिर से बनाने का काम नेहरू के अलावा और कोई नहीं कर सकता था।
आज ना तो नेहरू की जयंती है और ना ही देश उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें श्रृद्धांजलि दे रहा है लेकिन आज का दिन कुछ और मायनों में खास है। जी हां, आज 11 जून के ही दिन नेहरू की अस्थियां पूरे देश में बिखेरी गई थी। दरअसल, अस्थियां बिखेरने की इच्छा का जिक्र नेहरू ने अपनी वसीयत में किया था जिसके मुताबिक उनकी अस्थियों की राख को देश के कई कोनों में बिखेरा गया।
इज्जतदार परिवार में पैदा हुए थे नेहरू
देश की बुनियादी नींव रखने वाले पंडित जवाहरलाल नेहरू कश्मीर के एक इज्जतदार परिवार में पैदा हुए। नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू अपने जमाने के एक जाने—माने वकील थे।
पढ़ने-लिखने में बचपन से होशियार रहे नेहरू 15 साल की उम्र में इंग्लैंड के हैरो स्कूल चले गए। इसके बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए नेहरू केम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज पहुंचे।
1947 में भारत को आजादी मिली जिसके बाद नेहरू ने देश के पहले प्रधानमंत्री बने और आगे चलकर नए भारत के सपने को साकार करने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी। 27 मई 1964 की सुबह नेहरू की तबीयत बिगड़ी और उसी दिन दोपहर 2 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली।
क्या था वसीयत में खास ?
नेहरू के जाने के बाद उनकी वसीयत काफी चर्चा में रही। पंडित नेहरू ने वसीयत में अपनी अस्थियों के बारे में लिखा था कि “मेरी यह इच्छा है कि मेरी अस्थियों की राख का मुट्ठीभर हिस्सा प्रयाग के संगम में बहाया जाए जहां से मेरा शरीर हिन्दुस्तान के दामन को चूमे और आखिर में मैं समंदर में जा मिलूं।
इसके अलावा नेहरू की एक इच्छा यह भी थी कि उनकी राख को हवाई जहाज से नीचे खेतों में उड़ाया जाए जिससे देश के लाखों किसानों और मजदूरों के साथ देश के हर जर्रे में समा जाऊं।
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