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आखिर CAT में इंजीनियर्स सब पर क्यों भारी पड़ते हैं ? इंजीनियरों का मजाक उड़ाने वाले जरूर पढ़ें

कॉमन एडमिशन टेस्ट यानि कैट जिसको क्लीयर करने के बाद देश की टॉप कॉलेजों से एमबीए करने का युवाओं में खासा क्रेज रहता है। कैट 2018 का परीक्षा परिणाम जनवरी के पहले हफ्ते में जारी किया गया जिसमें इस साल भी इंजीनियरिंग बैकग्राउंड से निकले युवाओं ने शीर्ष स्थानों पर जगह बनाई। 100 पर्सेंटाइल स्कोर करने वाले 11 उम्मीदवारों में से, सभी बीई / बीटेक के छात्र हैं। अगर हम पिछले सालों के आंकड़ों पर गौर करें तो उसमें भी कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

कैट परीक्षा का आयोजन करवाने वाली संस्था का कहना है कि कैट 2018 के लिए आवेदन करने वाले उम्मीदवारों में से इंजीनियरिंग बैकग्राउंड वाले 55 प्रतिशत अभ्यार्थी हैं, जिनमें से 82 प्रतिशत उम्मीदवारों ने 90 प्रतिशत और उससे अधिक अंक हासिल किए हैं।

2017 में, लगभग 20 उम्मीदवारों ने 100 पर्सेंटाइल स्कोर हासिल किया था जिनमें भी सिर्फ 3 ही नॉन-इंजीनियरिंग बैकग्राउंड से थे। 2016 में भी टॉप स्कोर पर सभी इंजीनियर ही थे जबकि 2015 में, 1.79 लाख उम्मीदवार कैट में शामिल हुए जिनमें से 1.12 लाख बीई / बीटेक से थे।

अधिकांश गैर-इंजीनियरिंग बैकग्राउंड से आने वालों को हर साल शिकायत रहती है कि परीक्षा का पैटर्न इंजीनियरों के अनुकूल रखा जाता है। इसके अलावा अन्य का कहना है कि इंजीनियर पेपर में शामिल किए जाने वाले लगभग सभी विषयों से परिचित रहते हैं।

कैट नहीं करता किसी के साथ पक्षपात

आईआईएम-कलकत्ता के पूर्व छात्र सुमंता बसु का इस बारे में कहना है कि कैट के पेपर में आने वाले सवाल फंडामेंटल नॉलेज की मांग करते हैं और इसलिए इन सवालों को आमतौर पर साधारण तकनीकों से हल करना मुश्किल होता है। कैट मैनेजमेंट योग्यता स्तर के आधार पर उम्मीदवारों का मूल्यांकन करता है और उसी के अनुसार सवाल तैयार किए जाते हैं। पेपर किसी भी स्ट्रीम वालों के पक्ष में नहीं होता है।

हालांकि, बसु का मानना है कि आईआईएम पक्षपाती नहीं हैं, पिछले साल के एक डेटा शो में आईआईएम कलकत्ता के 2018-20 बैच के 87 प्रतिशत छात्र इंजीनियरिंग बैकग्राउंड से हैं और ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि इंजीनियर आवेदक किसी अन्य स्ट्रीम से अधिक हैं।

भारत में 20 आईआईएम हैं जो अपने 2 साल के मैनेजमेंट कोर्सेस में 4,000 से अधिक छात्रों को एडमिशन देते हैं। जबकि पिछले एक दशक से, IIM अलग-अलग पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों को एडमिशन देकर इस मिथक को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन इंजीनियर अभी भी इन सीटों पर हावी हैं।

कैट 2018 के टॉपर रिकेश मनचंदा, जो कि आईआईटी-दिल्ली के छात्र हैं, ने क्लास 11 से ही मॉक टेस्ट देने की आदत डाल ली। उनका मानना है कि इससे आत्मविश्वास का लेवल बढ़ता है।

इसके अलावा इंजीनियरिंग से आने वाले छात्रों को राष्ट्रीय स्तर पर जेईई जैसी कठिन परीक्षाओं और राज्य की अन्य प्रवेश परीक्षाओं में फेलियर का सामना करना पड़ता इसलिए उनमें किसी भी प्रतियोगिता परीक्षाओं का सामना करने की क्षमता पैदा हो जाती है। केवल कैट में ही नहीं, अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता हासिल करने वालों में से इंजीनियरों की सफलता की दर अधिक रहती है।

sweta pachori

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