तारीख पे तारीख…तारीख पे तारीख…सनी देओल का यह डायलॉग आज दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल मन ही मन बोल रहे होंगे! क्योंकि दिल्ली का बॉस कौन है? इस सवाल का जवाब देने में सुप्रीम कोर्ट अभी और समय लेगा। जी हां, उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री केजरीवाल के बीच लंबे समय से चल रही इंसाफ की लड़ाई आज सुप्रीम कोर्ट की 2 जजों वाली बेंच के फैसले के बाद अभी खत्म नहीं हो रही है।
आज सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सीकरी और भूषण बेंच ने जो फैसला सुनाया है उसमें दोनों के बीच काफी मतभेद होने के कारण अब मामला तीन जजों की बेंच के पास भेजा जाएगा।
दोनों जज आज दिल्ली सरकार और केन्द्र के बीच अधिकारियों की पोस्टिंग, तबादले के नियम और भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) के क्षेत्राधिकार को लेकर फैसला सुना रहे थे जिसमें फिलहाल दिल्ली सरकार के पक्ष और विपक्ष दोनों में फैसले आएं हैं।
आम आदमी पार्टी की सरकार काफी लंबे समय से कोर्ट के सामने कह रही है कि जनता की चुनी सरकार होने के बावजूद राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सरकार के अधिकार क्षेत्र काफी कम है। वहीं वो काफी समय से दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग भी उठाते रहे हैं।
लेकिन कोर्ट के इन फैसलों के बीच हम आपको समझाते हैं कि दिल्ली अन्य राज्यों से इतना अलग क्यों है और क्यों इसको लेकर सालों से सरकारों और केंद्र के बीच विवाद बना रहा है। ,
कोर्ट हर बार दिल्ली के ऊपर सुनावाई करते हुए संविधान के अनुच्छेद 239AA का जिक्र करता है जिसमें दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी कहा गया है ना कि पूर्ण राज्य।
देश में सात केंद्र शासित प्रदेश हैं उनमें से दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कहा जाता है। संविधान में 69वां संशोधन कर अनुच्छेद 239AA और 239AB को शामिल किया गया था।
यह अनुच्छेद 239AA क्या है?
संविधान का अनुच्छेद 239AA दिल्ली को अन्य राज्यों से अलग बनाता है। इसमें दिल्ली का प्रशासक उपराज्यपाल को बताया गया है। दिल्ली की अपनी विधानसभा होती है जिसमें विधायक जनता चुनकर भेजती है। वहीं अन्य राज्यों की तरह दिल्ली में भी मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल होता है। वहीं दिल्ली के उपराज्यपाल अन्य राज्यपालों की तुलना में अधिक शक्तिशाली होता है।
यहां समझिए अनुच्छेद 239AB क्या है?
इमरजेंसी लागू करने की स्थिति के बारे में इस अनुच्छेद में बताया गया है। अगर मंत्रिमंडल से सरकार नहीं चलती तो उपराज्यपाल राष्ट्रपति की सहमति के बाद इमरजेंसी लगा सकता है।
सत्ता और दिल्ली
दिल्ली में केंद्रीय सत्ता और मुख्यमंत्री के बीच यह तनातनी कोई नई नहीं है। 1952 में भी जब दिल्ली में कांग्रेस पार्टी की सरकार आई और चौधरी ब्रह्म प्रकाश को मुख्यमंत्री बनाया गया तो उस दौरान चीफ़ कमिश्नर रहे आनंद डी पंडित के साथ उनकी काफी नोकझोंक हुई।
इसके बाद 1956 में दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। 1990 तक दिल्ली में इसी तरह सब कुछ चलता रहा। आखिरकार 1991 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम के तहत संविधान में 69वां संशोधन हुआ और दिल्ली में विधानसभा बनी।
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