राजस्थान में फिलहाल कांग्रेस की सरकार है। कुछ महीनों पहले कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में थी। और जैसा विपक्ष हमेशा करता है कांग्रेस जमकर वसुंधरा सरकार का विरोध कर रही थीं। उन मुद्दों में गाय को भी सबसे बड़ा मुद्दा बनाया गया। लिंचिंग और गौमांस की आड़ में किए जा रहे अत्याचार के खिलाफ कांग्रेस ने वसुंधरा सरकार का विरोध किया।
लेकिन विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार करते समय गाय के नाम पर भीड़ और हिंसा के मुद्दे को कांग्रेस ने ज्यादा नहीं उठाया। इसके अलावा कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में भी गाय कल्याण को शामिल किया।
अलवर जिले में बहरोड़ सीट के लिए प्रचार के दौरा कांग्रेस ने अप्रैल 2017 को हुए डेयरी किसान पहलू खान की उस क्षेत्र में लिंचिंग का जिक्र तक नहीं किया। तब भी कांग्रेस के उम्मीदवार को निर्दलीय बलजीत सिंह यादव ने हरा दिया था। यादव ने अपने अभियान में यह मुद्दा बनाया कि पहलू खान की हत्या के लिए “निर्दोष” यादव पुरुषों को “फंसाया” न जाए।
अब सत्ता में राजस्थानी हृदयभूमि में पूजनीय और पूजे जाने वाले पशु के प्रति अपनी नीति को लेकर कांग्रेस दुविधा में पड़ती दिख रही है और ऐसा लग भी रहा है कि बड़ी संख्या में लोगों की भावनाएं इससे प्रभावित भी हो सकती हैं।
“सांप्रदायिक” भाजपा की नीतियों की बार-बार आलोचना के बावजूद और बीजेपी की “गाय राजनीति” पर आलोचना करने के बाद भी कांग्रेस की फिलहाल की नीतियों को देखते हुए यही लगता है कि वो भाजपा से ज्यादा अलग नहीं है।
इसलिए, अपने घोषणापत्र में वादों के अलावा, नई सरकार ने फैसला किया है कि गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर, गायों को अपनाने वालों को सम्मानित किया जाएगा।
’गोपालन’ मंत्री प्रमोद भाया ने कहा है कि कांग्रेस पार्टी गाय की पूजा करती है और यह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पिछले कार्यकाल के दौरान ही शुरू हुआ था कि गाय आश्रयों को पहला अनुदान प्रदान किया गया था। उन्होंने यह भी कहा है कि उनका विभाग राज्य में गोजातीय लोगों के कल्याण के लिए बड़ी पहल शुरू करना चाहता है।
कांग्रेस की तरफ से सोचा जाए तो गायों पर हिंसा की खुलेआम आलोचना करने या मुस्लिम मवेशी परिवहनकर्ताओं के पक्ष में बोलने का ज्यादा लाभ आपको नहीं मिल सकता बल्कि इससे यादवों और जाटों जैसे समुदायों से एक बड़े हिंदू वोटबैंक का अलग होने का जोखिम हो सकता है। शायद इसीलिए सरकार गोपालन मंत्री को आगे बढ़ा रही है और साथ ही गायों के लिए खुलकर बोल रही है मगर हिंसा पर नहीं।
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