महाराष्ट्र के माओवादियों के एक अन्य हमले में बुधवार को गढ़चिरौली में एक विस्फोट में 15 सुरक्षाकर्मी और एक नागरिक मारे गए थे। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार विद्रोहियों ने एक इंप्रूव्ड विस्फोटक डिवाइस काम में लिया। पुलिस यूनिट गढ़चिरौली से लगभग 60 किलोमीटर दूर कुरखेड़ा जा रही थी।
गढ़चिरौली में माओवादियों ने कुछ घंटे पहले सड़क निर्माण दल से जुड़े 26 वाहनों को जला दिया था। पुलिस अधिकारियों ने दावा किया कि यह एक रिमोट कंट्रोलर विस्फोट हो सकता है, जो आम तौर पर माओवादी इस्तेमाल नहीं करते हैं।
यह हमला ऐसे समय में आया है जब सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव प्रचार में राष्ट्रीय सुरक्षा को अपना मुख्य मुद्दा बनाया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर विपक्ष को कमजोर करने का एक मौका नहीं गंवाया। उन्होंने अपनी सरकार की प्रमुख उपलब्धियों में से एक के रूप में फरवरी में पाकिस्तान पर बालाकोट हवाई हमलों को लगातार गिनाया है।
हालांकि, बुधवार के हमले से संकेत मिलता है कि भारत का सुरक्षा तंत्र उतना मजबूत नहीं है जितना कि मोदी सरकार दावा कर रही है। इंडिया टुडे ने बताया कि गढ़चिरौली हमलों के बारे में पहली खुफिया चेतावनी 21 मार्च को आई थी। उसके बाद कम से कम 13 इनपुट थे जिनमें से एक इनपुट विस्फोट के दो दिन पहले आया था।
पुलवामा में 40 सुरक्षाकर्मी एक आत्मघाती हमले में मारे गए थे लेकिन सरकार ने इस पर किसी भी तरह की जिम्मेदारी नहीं ली। भाजपा के नेता केवल निंदा करते हुए दिखे और बदला लेने की बात करते दिखाई दिए। प्राइम टाइम पर अधिकांश टेलीविजन चैनलों ने जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकवादी घोषित किए जाने पर चर्चा की वहीं गढ़चिरौली में हुए हमले को बहुत ही कम स्पेस दिया गया।
यह स्पष्ट है कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा में सिर्फ पाकिस्तान के खतरे शामिल नहीं हैं। गढ़चिरौली हमले से यह स्पष्ट होता है कि माओवादी देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती बने हुए हैं। भारतीय राज्य के उनके विरोध को देखते हुए चुनावी मौसम एक सक्रिय गतिविधि का समय रहा है क्योंकि विद्रोहियों ने मतदाताओं को मतदान से दूर रहने के लिए डराने की कोशिश की।
गढ़चिरौली हमलों से एक रात पहले पुलिस ने दावा किया कि कम से कम 200 माओवादियों ने एक मीटिंग की थी, जिसके बाद उन्होंने क्षेत्र में कई वाहनों को आग लगा दी थी।
सत्ता पक्ष ने चुनौती से निपटने के बजाय, सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार वकीलों पर मुकदमा चलाने के लिए माओवादी खतरे का इस्तेमाल किया। उन्हें “देश-विरोधी” के रूप में चित्रित किया और यहां तक कहा कि पिछले साल वे प्रधानमंत्री की हत्या करने के प्लॉट में शामिल थे।
अगर मोदी राष्ट्रीय सुरक्षा को अपने मुख्य चुनाव मैदान के रूप में उपयोग कर रहे हैं तो यह उनका कर्तव्य है कि वे भारत को यह समझाएं कि गढ़चिरौली हमले के बारे में खुफिया जानकारी को नजरअंदाज क्यों किया गया, जिससे 16 लोगों की मौत हो गई।
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