बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को महाराष्ट्र में शिक्षा और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा लेकिन निर्देश दिया कि इसे 16 प्रतिशत से 12 प्रतिशत और 13 प्रतिशत तक घटा दिया जाए।
सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के नेताओं ने उच्च न्यायालय के फैसले की सराहना की है। लेकिन मराठा कौन हैं और महाराष्ट्र की राजनीति में इस समुदाय की क्या भूमिका है? आइए जानते हैं।
वे महाराष्ट्र में एक मराठी भाषी, राजनीतिक रूप से प्रभावी समुदाय हैं। वे राज्य की आबादी का लगभग एक-तिहाई हिस्सा कवर करते हैं। ऐतिहासिक रूप से उनकी पहचान “योद्धा” के रूप में की जाती है जिनके पास बड़ी-बड़ी जमीने हैं। 1960 में महाराष्ट्र राज्य का निर्माण हुआ और उसके बाद से इसके 18 मुख्यमंत्रियों में से 11 मराठा समुदाय से हैं। वर्षों से भूमि और कृषि संबंधी समस्याओं के विभाजन के कारण मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग मराठों के बीच समृद्धि में गिरावट आई है। समुदाय अभी भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
मराठा आरक्षण की मांग पहली बार 1980 के दशक में हुई थी। 1992 में मराठा महासंघ ने राज्य सरकार को समुदाय को आरक्षण प्रदान करने के लिए एक प्रतिनिधित्व किया था। राकांपा पहली पार्टी थी जिसने 2009 के अपने चुनाव घोषणा पत्र में समुदाय को आरक्षण प्रदान करने का वादा किया था। जुलाई 2014 में, कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने 16 प्रतिशत मराठा कोटा के लिए अध्यादेश लाया था लेकिन यह कानूनी परीक्षण में फेल हो गया। दिसंबर 2014 में भाजपा की सरकार माराठाओं के लिए आरक्षण प्रदान करने के लिए एक अधिनियम के साथ सामने आई लेकिन प्रस्ताव अभी भी अदालत की जांच में सफल नहीं हुआ।
नवंबर 2018 में मराठों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों के बाद राज्य विधायिका ने फिर से एक अधिनियम पारित किया जिसमें सरकार द्वारा शिक्षा और सरकारी नौकरियों में इनको 16 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव दिया गया। इसको सरकार द्वारा सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के रूप में घोषित किया गया। SEBC Act(स्टेट रेजरवेशन्स फॉर सोशियली एंड इक्वली बेकवार्ड क्लासेस) 2018 को फिर बॉम्बे कोर्ट में चैलैंज किया गया और इसे सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के उल्लंघन के रूप में बताया गया कि किसी भी राज्य में आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की नौ न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाया था कि पिछड़े वर्गों के लिए कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता है। महाराष्ट्र उन कुछ राज्यों में से एक है जो नियम का अपवाद है। 2001 के राज्य आरक्षण अधिनियम के बाद राज्य में कुल आरक्षण 52 प्रतिशत है जिसमें से बड़ा कोटा SC (13%), ST (7%) और OBC (19%) के लिए है बाकी स्पेशल बैकवर्ड क्लास (2%) विमुक्त जाति (3%), नोमैडिक ट्राइब (बी) (2.5%), नोमैडिक ट्राइब (सी) (धनगर) (3.5%) और नोमैडिक जनजाति (डी) (वंजारी) (2%) को दिया गया है। विभिन्न घुमंतू जनजातियों और विशेष पिछड़े वर्गों को दिए गए कोटा, वास्तव में, कुल ओबीसी कोटा से बाहर किए गए हैं। 12-13 प्रतिशत मराठा कोटा में शामिल होने से राज्य में कुल आरक्षण 64-65 प्रतिशत हो जाएगा।
न्यायालय ने महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (MSBCC) के अध्यक्ष, सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति जी. एम. गायकवाड़ के निष्कर्षों पर भरोसा किया। समिति ने 1,000 पन्नों की अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मराठा समुदाय सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा है। MSBCC ने 45,000 परिवारों का सर्वे किया। ये उन दो गांवों में से थे जहां पर 50 प्रतिशत से ज्यादा आबादी मराठाओं की है। इसमें 37.28 प्रतिशत मराठा गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले पाए गए।
न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति भारती एच. दंगरे की पीठ ने गुरुवार को कहा कि उसे SC की 50 प्रतिशत लिमिट के बारे में पता था हालांकि असाधारण परिस्थितियों में कुछ किया जा सकता है। यह आयोग के निष्कर्षों से सहमत है कि मात्रात्मक डेटा असाधारण है। अदालत ने हालांकि कहा है कि 16 प्रतिशत आरक्षण उचित नहीं है और आरक्षण रोजगार में 13 प्रतिशत और शिक्षा में 12 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।
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