आपने बाबा और साधु-संत खूब देखें होंगे पर जिनके बारे में हम बताने जा रहे हैं उनका अंदाज एकदम ही निराला है। हेलीकॉप्टर से घूमने का शौक रखने से लेकर वॉट्सऐप और फ़ेसबुक के एक्टिव यूजर हैं कंप्यूटर बाबा, जी हां, एक बार फिर मध्य प्रदेश के ये बाबा फिर चर्चा में है। देश में लोकसभा चुनावों की आचार संहिता लागू होने से पहले मध्य प्रदेश सरकार ने एक अहम कंप्यूटर फैसला लिया। सीएम कमलनाथ ने कंप्यूटर बाबा को मां नर्मदा, मां क्षिप्रा और मंदाकनी नदी न्यास का अध्यक्ष बना दिया है।
गौरतलब है कि इससे पहले कंप्यूटर बाबा मीडिया में तब छाए थे जब एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें राज्य मंत्री बनाया था। बताया जाता है कि मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार के समय बाबा सरकार की नर्मदा यात्रा पर सवाल उठाना चाहते थे और कई कथित घोटालों को उजागर करने वाले थे। इससे पहले कि शिवराज सिंह ने उन्हें अपनी कैबिनेट में ही शामिल कर लिया। इसके बाद बाबा ने कभी नर्मदा को लेकर सवाल खड़े नहीं किए।
हालांकि कुछ जानकार का यह भी कहना है कि कंप्यूटर बाबा को इतनी बड़ी जिम्मेदारी देने के पीछे कांग्रेस ने सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड खेला है। आइए आपको बताते हैं मॉडर्न चीजों का शौक रखने वाले कंप्यूटर बाबा के बारे में।
नाम इतना अजीब सा क्यों है ?
वैसे तो बाबा का असली नाम नामदेवदास त्यागी है लेकिन तेज दिमाग, स्मार्ट वर्किंग शैली की वजह से साधु-संतों ने उनको यह नाम दे दिया। बताया जाता है कि जब 1998 में कम्प्यूटर क्रांति आई तब एक कार्यक्रम में साधु-संतों ने बाबा नामदेवदास के तेज दिमाग और काम करने के तरीके को देखकर उन्हें वहीं कम्प्यूटर बाबा नाम दिया।
कंप्यूटर बाबा दिगंबर अखाड़ा से जुड़े हैं और इंदौर के अहिल्या नगर में एक भव्य आश्रम में इनका ठिकाना है। बाबा से जुड़े लोग कहते हैं कि बाबा को जो बात पसंद नहीं आती है वो बेबाकी से उस पर अपनी असहमति दिखाते हैं।
फेसबुक पर चैट करने के शौकीन
बाबा रहते तो कुटिया में है लेकिन कुटिया में सभी हाईटैक गैजेट जैसे लैपटॉप, आईपेड होते हैं। वहीं बाबा को हेलीकॉप्टर से सफर करना और फेसबुक पर अपने भक्तों से चैटिंग करना बेहद पसंद है। यहां तक कि बाबा अपने आश्रम में होने वाले हवनों के पर्चे भी हेलीकॉप्टर से बांटते हैं।
कांग्रेस के रंग में कैसे रंगे
कंप्यूटर बाबा के बारे में यह कहा जाता है कि वो बखूबी जानते हैं कि कैसे सत्ता के साथ रहा जाए। जैसा कि राज्य मंत्री पद पर कुछ समय रहने के बाद वो विधानसभा चुनावों में शिवराज सिंह चौहान के फिर ख़िलाफ हुए और पद से इस्तीफा भी दिया। प्रदेश में 15 साल बाद कांग्रेस की नई सरकार के पहले ही दिन से बाबा को कांग्रेस नेताओं के क़रीब देखा गया जिसका फल अब उनको मिल चुका है।
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