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Twitter, FB और WhatsApp पर भी होगा लोकसभा चुनाव 2019, क्या है फेक नयूज के लिए प्लान

सोशल मीडिया साइट ट्विटर पर कुछ दिनों पहले एक नई स्टार ने एंट्री ली। स्टार इसलिए कह रहे हैं क्योंकि प्रियंका गांधी वाड्रा के ट्विटर पर आने के 24 घंटों भीतर, 160,000 फॉलोवर्स हो गए। बेशक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 45 मिलियन फॉलोवर्स के सामने प्रियंका कहीं नहीं है। लेकिन प्रियंका और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री बसपा सुप्रीमो मायावती ने ट्विटर पर आने वाले नए लोगों में तेजी से फॉलोवर्स बढ़ाए हैं।

प्रियंका और मायावती का ट्विटर पर आना यह बताता है कि 2014 के चुनावों की तुलना में इस बार चुनाव में नेताओं के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म कैसे और भी महत्वपूर्ण युद्ध का मैदान साबित हो रहे हैं। ट्विटर या फ़ेसबुक पर कितने वोट से जीते या हारे हैं, यह कोई नहीं जानता, लेकिन हर कोई यह मानता है कि सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। वहीं लोगों के बीच एक चिंता का विषय यह भी है कि सोशल मीडिया पर बिना सोचे-समझे फर्जी खबरों का चलन बढ़ रहा है।

भारत में ट्विटर को लेकर अब माहौल में काफी बदलाव आ रहा है। भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर की अगुवाई में बनी आईटी संसदीय समिति ने हाल में ट्विटर के अधिकारियों को यूजर्स की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाए जा रहे कदमों के बारे में बताने के लिए एक नोटिस भेजा। समिति को जब अधिकारियों से संतुष्टि वाला जवाब नहीं मिला तो अब सरकार ने सीईओ जैक डोर्सी को 25 फरवरी से पहले पेश होने के लिए कहा है।

ट्विटर के अधिकारियों का ऐसा बर्ताव और यूथ फॉर सोशल मीडिया नामक एक ग्रुप की ट्विटर ऑफिस के बाहर नारेबाजी जिसमें उन्होंने ट्विटर को दक्षिणपंथी विरोधी बताया ने सरकार के शक को और मजबूत कर दिया। हालांकि इसी ग्रुप का कुछ समय पहले कथित तौर पर फेसबुक के खिलाफ भी यही आरोप लगाए थे।

जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते हैं, ऑनलाइन साइट्स – ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम और गूगल इन सभी पर ट्रैफ़िक बढ़ जाता है। ट्विटर पहले ही इस बारे में बता चुका है कि “हम इस राजनीतिक और सामाजिक चुनावी मौसम में बातचीत के सभी पक्षों का स्वागत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं”। वहीं गूगल का कहना है कि वे अपने प्लेटफार्मों पर राजनीतिक विज्ञापनों को अधिक पारदर्शी बनाने पर काम कर रहे हैं जबकि इस बारे में फेसबुक का कहना है कि वह “2019 में चुनावों की सुरक्षा के उपायों” पर काम कर रहा है।

ऑनलाइन दिग्गजों को लेकर यह सब केवल भारत में ही नहीं है। 2019 में, एशिया में चार और जगह चुनाव हो रहे हैं – इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस और अफगानिस्तान में। ऐसे में टेक दिग्गजों पर यह दबाव है कि वे उन देशों में भी फर्जी खबरों की जांच करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

भारत में राजनीतिक विज्ञापनों के बारे में अधिक पारदर्शिता लाने के लिए, Google ने मार्च में एक पॉलिटिकल एडवर्टाइजमेंट लाइब्रेरी लॉन्च करने की योजना बनाई है, जिसका उद्देश्य साइट पर चुनावी विज्ञापन खरीदने और वे क्या खर्च कर रहे हैं, के बारे में जानकारी प्रदान करना है। वहीं गूगल भारत में एक पॉलिटिकल एडवर्टाइजमेंट्स को लेकर एक रिपोर्ट भी जारी कर सकती है।

एसेक्स यूनिवर्सिटी के रिसर्चर सयान बनर्जी जिन्हें चुनाव से संबंधित गलत सूचनाओं से निपटने के तरीकों पर स्टडी करने के लिए व्हाट्सएप से फंड मिला है कहते हैं गूगल की पॉलिटिकल एडवर्टाइजमेंट लाइब्रेरी एक “अच्छा टूल” है, लेकिन इससे कोई बड़ा फर्क पड़ने की संभावना नहीं है”।

वहीं Google के पब्लिक अफेयर्स मामलों की मैनेजर दीप्ति मेहरा कहती हैं, ”हम चुनावों को लेकर गंभीर हैं और हम भारत और दुनिया भर में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का समर्थन करते हैं। हम उन पहलों में निवेश करना जारी रखेंगे जो चुनाव पारदर्शिता के  लिए हमारी प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाते हैं।” Google ने अपने पॉलिटिकल एडवर्टाइजमेंट पॉलिसी में भी कई बदलाव किए हैं। अब कोई पॉलिटिकल एडवर्टाइजमेंट खरीदने के लिए, पार्टियों को भारत के चुनाव आयोग और Google से पहले एक सर्टिफिकेट लेना होगा।

वहीं चुनावों की तैयारी को लेकर ट्विटर का कहना है कि भारतीय चुनावों में ट्विटर इंडिया अमेरिका में हुए चुनावों में उपयोग की गई एक पारदर्शी तकनीक का इस्तेमाल करेगा जिसमें पॉलिटिकल एडवर्टाइजमेंट की हर तरह की जांच संभव है।

इसके अलावा वैश्विक स्तर पर, विभिन्न देशों में चुनावों की सुरक्षा के लिए फेसबुक ने डबलिन और सिंगापुर में दो नए ऑपरेशन सेंटर बनाए हैं। जहां 30,000 से अधिक लोग सुरक्षा के मसले पर काम कर रहे हैं। ये सभी कदम इसलिए उठाए जा रहे हैं क्योंकि दुनिया भर में ऑनलाइन पोर्टलों पर फेक न्यूज की आग लगी हुई है।

लेकिन फेक न्यूज को खत्म करना बेहद कठिन काम है। अक्टूबर 2018 में, ऑक्सफ़ोर्ड इंटरनेट इंस्टीट्यूट जो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का ही हिस्सा है, ने वर्ल्ड इन्वेंटरी ऑफ ऑर्गेनाइज्ड सोशल मीडिया मैनिपुलेशन पर एक रिपोर्ट जारी की जिसमें उन्होंने बताया कि कम से कम 48 देशों में न्यूज मैनिपुलेशन की जा रही है। इन देशों में भारत भी शामिल है, जहां राजनीतिक पार्टियां चुनावों के दौरान प्रचार-प्रसार के लिए पीआर या कंसल्टिंग फर्मों को काम पर रखते हैं।

हाल में, कर्नाटक विधानसभा चुनावों के दौरान, फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ ने अपने विरोधी को निशाना बनाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर की गई कई झूठी खबरों का खुलासा किया।

तो कौन फर्जी खबर फैला रहा है?

बीबीसी वर्ल्ड सर्विस द्वारा बियॉन्ड फेक न्यूज, स्टडी में पाया गया कि “दक्षिणपंथी नेटवर्क वामपंथियों की तुलना में अधिक मजबूत हैं, जो कि राष्ट्रवादी नकली कहानियों को आगे बढ़ाते हैं”। वहीं यह भी पता चला कि भारत में एक बढ़ती राष्ट्रवादी लहर आम जनता को इन फेक और प्रोपेगेंडा न्यूज को फैलाने के लिए प्रेरित कर रही है। बीबीसी ने भारत में 16,000 ट्विटर हैंडल और 3,000 फेसबुक पेजों पर रिसर्च की।

दूसरी ओर, व्हाट्सएप एक पूरी तरह से अलग चुनौती का सामना कर रहा है क्योंकि यह एक एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन वाला प्लेटफॉर्म है। फेक न्यूज को रोकने के लिए व्हाट्सएप ने पिछले जुलाई में भारत में किसी मैसेज की एक बार में पांच फॉरवर्ड तक की लिमिट कर दी थी। इसी तरह, फेसबुक ने इंडिया टुडे ग्रुप और Fact Crescendo, BoomLive जैसे नामों के साथ भारत में अपनी थर्ड-पार्टी फैक्ट-चेकिंग पार्टनरशिप पर काम कर रहा है।

इन सब के बावजूद फर्जी खबरों और गलत जानकारियों का मुकाबला करना हमारे सामने एक चुनौती है जो तेजी से बढ़ती जा रही है। हमेशा सच और झूठ के बीच बारीक फर्क ही होता है और शायद हर बार फैक्ट-चेकिंग वेबसाइटें भी इन बारीकियों को कैप्चर नहीं कर पाती है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में आने वाले दिनों में जहां चुनावी चर्चा होगी वहीं सोशल मीडिय़ा प्लेटफॉर्म सुर्खियों में रहेंगे कि उन्होंने अपनी लड़ाई कैसे लड़ी ?

sweta pachori

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