लोकसभा में बीते शुक्रवार को सूचना का अधिकार (RTI) संशोधन विधेयक 2019 पास हो गया। विपक्ष ने इसे “खतरनाक” और “लोकतंत्र के लिए काला दिन” करार दिया। संशोधन विधेयक में केंद्र और राज्यों में सूचना आयुक्तों (इनफॉर्मेशन कमीश्नर) में मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) की नियुक्ति के नियमों और शर्तों में बदलाव की बात कहता है। RTI संशोधन बिल में तीन प्रावधान हैं जिन्हें संसद में विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने चुनौती है।
लेकिन आगे बढ़ने से पहले, आइए उन बुनियादी चीजों पर एक नज़र डालें जो 2005 का आरटीआई कानून कहता है। मौजूदा कानून में कहा गया है कि कोई भी पब्लिक अथॉरिटी को इन बातों की जानकारी देने की आवश्यकता है।
उनका संगठन और काम के बारे में जानकारी
अपने अधिकारियों और कर्मचारियों की शक्तियां एवं काम
फाइनेंशियल इनफॉर्मेशन
यदि पब्लिक अथॉरिटिज इस तरह की जानकारी खुद उपलब्ध नहीं करवाती है तो कोई भी नागरिक आरटीआई कानून के तहत वह जानकारी मांगने का अधिकार रखता है। सूचना आयुक्त मंत्रियों और सरकारी संस्थाओं से जानकारी लेते हैं।
केंद्रीय सूचना आयोग का नेतृत्व एक मुख्य सूचना आयुक्त (chief information commissioner) और 10 सूचना आयुक्त (information commissioner) होते हैं। ये सभी राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।
उन्हें 5 साल के लिए निश्चित कार्यकाल और मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के रैंक के बराबर सैलरी दी जाती है।
संशोधन में क्या कहा गया है ?
2019 आरटीआई संशोधन बिल में, नरेंद्र मोदी सरकार ने मुख्य सूचना आयुक्तों और सूचना आयुक्तों के लिए पांच साल के कार्यकाल, उनकी सैलरी और काम करने की शर्तों में भी बदलाव के बारे में कहा गया है।
इसके राजनीतिक मायने निकालें तो सरकार मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों को धमकाने या लुभाने की दिशा में बढ़ रही है, क्योंकि हाल के दिनों में सूचना आयोग से निकली जानकारियों ने मोदी सरकार को कई बार असहज किया था, जैसे पीएम की दिल्ली यूनिवर्सिटी की डिग्री मामला।
सरकार संशोधन पर क्या तर्क दे रही है ?
सरकार ने कहा है कि संशोधन बिल के जरिए उनका केंद्रीय सूचना आयोग की स्वायत्तता या स्वतंत्रता के साथ छेड़छाड़ करने का कोई उद्देश्य नहीं है। राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने सोमवार को लोकसभा में आरटीआई संशोधन विधेयक 2019 पेश करते हुए भी कहा कि मोदी सरकार यूपीए सरकार द्वारा आरटीआई कानून में छोड़ी गई कमियां दूर कर रही है।
उन्होंने कहा, “शायद, आरटीआई कानून, 2005 को पारित करने की जल्दी में तत्कालीन सरकार ने बहुत सारी चीजों को नजरअंदाज कर दिया। केंद्रीय सूचना आयुक्त को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश का दर्जा दिया गया है, लेकिन उनके निर्णयों को चुनौती दी जा सकती है।
आरटीआई कानून ने सरकार को नियम बनाने की शक्तियां नहीं दीं। हम केवल संशोधन के माध्यम से इसे सही कर रहे हैं।
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