क्या है डाक मत पत्र, जिनकी गिनती सबसे पहले की जाती है

किसी भी देश के लोकतंत्र की पहली प्राथमिकता है, अपने मतदाताओं द्वारा अपना प्रतिनिधि चुनने का हक और कोई भी योग्य मतदाता अपने मत के अधिकार से वंचित नहीं होना चाहिए। भारत में सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव 11 अप्रैल से 19 मई तक सात चरणों में संपन्न हो चुके हैं और आज 23 मई को चुनावी नतीजों की गिनती जारी है। देश के लगभग 70 प्रतिशत मतदाताओं ने अपना मतदान का ईवीएम मशीन से किया है, पर कभी सोचा आपने कि चुनाव कार्य को करवाने वाले कर्मचारी भी मतदान करते हैं या नहीं? यदि करते हैं तो कैसे?

जी हां, ये कर्मचारी अपने मत का प्रयोग डाक मतपत्र के माध्यम से करते हैं और इन मतपत्रों की गिनती ईवीएम में दर्ज मतों से पहले की जाती है।

क्या होते हैं डाक मत पत्र

डाक मत पत्र (Postal Ballot Papers) भी मत पत्र की तरह ही होते हैं। इन मत पत्रों के माध्यम से मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करता है। डाक मत पत्र का उपयोग करने की सुविधा केवल उन लोगों को मिलती है, जिनकी चुनाव के दौरान ड्यूटी लगी हो या फिर सेना के जवान हो। इसके अलावा किसी अन्य को सुविधा नहीं दी जाती है। सुरक्षात्मक नजरबंद (Preventive detention) में रहने वाले लोग भी इसका इस्तेमाल करते हैं।

चुनाव आयोग अपनी रणनीति के तहत पहले ही चुनावी क्षेत्र में डाक मतदान करने वालों की संख्या को निर्धारित कर लेता है। जिसके बाद खाली डाक मत पत्र को इलेक्ट्रॉनिक तरीके से मतदाता के पास भेजा जाता है। अगर मतदाता ऐसी जगह है, जहां इलेक्ट्रॉनिक तरीके का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, तो वहां डाक सेवा से मतपत्र भेजा जाता है। अगर किसी कारणवश मतदाता द्वारा इसका प्रयोग नहीं किया जाता है, तो मत पत्र पुन: आयोग को लौटा दिया जाता है।

इन डाक मत पत्रों की गिनती भी सबसे पहले की जाती है। इस संबंध में चुनाव आयोग की नियमावली है। यह इस कारण से भी की जाती है क्योंकि डाक मत पत्रों की संख्या कम होती है और ये कागज वाले मत पत्र होते हैं और इन्हें गिना जाना भी आसान होता है। वहीं इनमें किसी तरह के मिलान की गुंजाइश भी नहीं होती है।

क्या होते हैं मत पत्र

भारत में शुरूआत से 80 के दशक तक चुनाव मत पत्रों (बैलेट पेपर) के माध्यम से ही करवाये जाते थे। मत पत्र में प्रत्याशियों के चुनाव चिह्न और नाम छपे होते थे। चुनाव के दिए प्रत्येक मतदाता को मतदान केंद्र पर एक बैलेट पेपर दिया जाता था। फिर मतदाता अपनी पसंद के प्रत्याशी के नाम और चुनावी चिह्न के आगे सील या ठप्पा लगाता था। इस मत पत्र को मोड़कर वहीं पर रखे मतदान पेटी में डाल दिया जाता था।

मत पत्रों की जगह इस प्रकार ली ईवीएम ने

मत पत्रों के माध्यम से मतदान करना बहुत खर्चीला और उलझनों वाला था। जिसके बाद चुनाव आयोग ने समय के साथ व्यवस्था में बदलाव किया और भारत में सबसे पहले 1982 में केरल चुनाव में एक पोलिंग बूथ पर पहली ईवीएम का इस्तेमाल किया। सन 1983 में सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम को लेकर फैसला दिया कि मौजूदा कानूनों के अंतर्गत ईवीएम का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

सन 1988 में संसद द्वारा ईवीएम के इस्तेमाल से चुनाव करवाने वाला कानून पारित हुआ। सन 1998 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली के विधानसभा चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल से चुनाव संपन्न हुए।

सन 2004 का लोकसभा चुनाव ऐसा पहला चुनाव था, जब पूरे देश के सभी केंद्रों पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया।

Rakesh Singh

Leave a Comment

Recent Posts

रोहित शर्मा ने कप्‍तान हार्दिक पांड्या को बाउंड्री पर दौड़ाया।

रोहित शर्मा ने सनराइजर्स हैदराबाद के खिलाफ फील्डिंग की सजावट की और कप्‍तान हार्दिक पांड्या…

9 months ago

राजनाथ सिंह ने अग्निवीर स्कीम को लेकर दिया संकेत, सरकार लेगी बड़ा फैसला

अग्निवीर स्कीम को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने…

9 months ago

सुप्रीम कोर्ट का CAA पर रोक लगाने से इनकार, केंद्र सरकार से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) रोक लगाने से इनकार कर दिया…

9 months ago

प्रशांत किशोर ने कि लोकसभा चुनाव पर बड़ी भविष्यवाणी

चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बड़ी भविष्यवाणी की है। प्रशांत…

9 months ago

सुधा मूर्ति राज्यसभा के लिए नामित, PM मोदी बोले – आपका स्वागत है….

आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंफोसिस के चेयरमैन नारायण मूर्ति…

10 months ago

कोलकाता हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने थामा भाजपा दामन, संदेशखाली पर बोले – महिलाओं के साथ बुरा हुआ है…

कोलकाता हाई के पूर्व जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय भाजपा में शामिल हो गए है। उन्होंने हाल…

10 months ago