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क्या है INF संधि, जिससे अमेरिका ने खुद को अलग कर अन्य देशों की चिंता बढ़ा दी

जिस प्रकार के वैश्विक परिदृश्य हमारे सामने है उससे तो लगता है कि वैश्वीकरण की सोच केवल सपना बनकर रह जाएगा। हाल ही में मध्यम दूरी परमाणु शक्ति संधि (Intermediate-Range Nuclear Forces Treaty: INF) से अमेरिका के बाहर होने और रूस द्वारा इसको निलंबित किए जाने से पूरे वैश्विक समुदाय के लिए चिंता का विषय बन गई है। पिछले साल से ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इससे अलग होने की बात कर रहे थे। इस संधि ने अमेरिका और रूस के बीच तनाव दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

क्या है INF संधि
संयुक्त राज्य अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ ने मध्यम दूरी के परमाणु प्रक्षेपास्त्रों को समाप्त करने के लिए 8 दिसंबर, 1987 को ‘मध्यम दूरी परमाणु शक्ति संधि’ पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता हथियार नियंत्रण पर छह वर्षों तक चली वार्ताओं का परिणाम था। उस समय इस संधि पर सोवियत संघ के तत्कालीन राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोव और अमेरिका की तरफ से रोनाल्ड रेगेन ने दस्तखत किए थे। इस संधि को कराने में ब्रिटेन की प्रधानमंत्री मार्गेट थेचर की अहम भूमिका थी। यह समझौता 1 जून 1988 से लागू हुआ था।
इस दौरान दोनों ने ही भविष्य में मध्यम व छोटी दूरी की मिसाइलों का निर्माण न करने का वचन दिया था। इसके तहत यह भी तय हुआ कि दोनों अपनी कुछ मिसाइलें नष्ट करके उनकी संख्या को एक निश्चित सीमा के भीतर ला देंगे। अनुमान है कि 1991 तक करीब 2,700 मिसाइलों को नष्ट किया जा चुका है। इस संधि के तहत अमेरिका ने जहां BGM-109G ग्राउंड लॉन्च क्रूज मिसाइल, पर्शिंग 1ए, पर्शिंग II मिसाइल को खत्म किया तो वहीं सोवियत संघ SS-4 सैंडल, SS-5 स्केन, SS-12 स्केलबोर्ड, SS-20 सेबर, SS-23 स्पाइडर, SSC-X-4 स्लिंगशॉट को नष्ट किया था।

संधि के पीछे क्या थी वजह
बात 1980 के दशक की है जब सोवियत संघ अपने यूरोपीय क्षेत्र में परमाणु हमला करने में सम्पन्न एसएस-20 मिसाइल को तैनात किया था। जिसकी हमला करने की सीमा 4700-5500 किमी थी। यह पश्चिमी यूरोप तक हमला करने में सक्षम थी। इसकी वजह से यूरोप समेत अमेरिका में काफी तनाव था। इसके बाद अमेरिका ने भी यूरोप में अपनी मिसाइल तैनात कर दी थी। लेकिन वर्षों तक चली वार्ताओं के बाद दोनों ही देश इस संधि पर हस्ताक्षर करने में सहमत हुए। इस संधि के तहत 311 मील से 3420 मील रेंज वाली जमीन आधारित क्रूज मिसाइल या बैलिस्टिक मिसाइल को प्रतिबंधित किया गया। हालांकि इसके तहत हवा एवं समुद्र से प्रक्षेपित की जाने वाली मिसाइलों को प्रतिबंधित नहीं किया गया। इसमें अमेरिका की टोमाहॉक एवं रूस की कैबिलर मिसाइल आती थी।

अमेरिका ने इस संधि से अलग होने का कारण बताते हुए, रूस पर आरोप लगाया है कि रूस इस संधि का उल्लंघन कर रहा है और संधि के तहत प्रतिबंधित हथियारों का भी इस्तेमाल कर रहा है। इसके अलावा अमेरिका इसकी जगह पर दूसरी संधि करना चाहता है, जिसमें वह उन देशों को भी शामिल करना चाहता है, जिनके पास में लंबी दूरी की मिसाइलें हैं। इनमें चीन के अलावा नॉर्थ कोरिया भी शामिल है। हालांकि अमेरिका के इस संधि से हटने के बाद उसकी हर तरफ से आलोचना हो रही है।

चीन ने अमेरिका के इस संधि से हटने पर अफसोस जाहिर किया है। चीन का ये भी कहना है कि यह संधि विश्व में शांति बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी है। इसके लिए चीन ने दोनों देशों से वार्ता कर मतभेद समाप्त करने की अपील की है। चीन ने साफ कर दिया है कि अमेरिका के इस संधि से हटने का नकारात्मक असर होगा।
फ्रांस और जर्मनी ने भी अमेरिका के इस कदम की कड़ी आलोचना की है। इन देशों ने भी वार्ता कर रास्ते तलाशने और मतभेद समाप्त करने की अपील अमेरिका से की है। फ्रांस का कहना है कि यह हथियार नियंत्रण संधि सामरिक स्थिरता की रक्षा के लिये बहुत उपयोगी है। फ्रांस ने रणनीतिक आयुध छंटनी संधि (Strategic Arms Reduction Treaty) को वर्ष 2021 के बाद बढ़ाने की भी अपील की है। रूस ने भी साफ कर दिया है कि अमेरिका के इस संधि से पीछे हटने के बाद या इसके दायित्वों का पालन न करने के बाद वह भी नए हथियारों का निर्माण करने से नहीं चूकेगा।

Rakesh Singh

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