What is the connection between Ganesh Chaturthi and Bal Gangadhar Tilak, know history.
भारत में त्योहारी मौसम शुरू हो चुका है। कई त्योहार धूमधाम से मनाए जा चुके हैं और कुछ त्याहारों की इन दिनों तैयारी चल रही है। जन्माष्टमी के बाद अब लोग गणेश पूजा यानि गणेश चतुर्थी मना रहे हैं। गणेश स्थापना को लेकर बाजारों में रंगत दिखाई दे रही है। अलग-अलग तरह की गणेश प्रतिमाओं से बाजार सजा हुआ है। आपको बता दें कि भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी उत्सव मनाया जाता है। इस बार यह 31 अगस्त बुधवार को मनाई जा रही है। क्या आप जानते हैं कि गणेश चतुर्थी की शुरुआत कहां और कैसे हुई थी। आइए आपको इस त्योहार के इतिहास के बारे में बताते हैं…
जब भी गणेश चतुर्थी की बात आती है सबसे पहले मुम्बई का नाम सबसे पहले ज़हन में आता है। मुम्बई काफी बड़े स्तर पर इस उत्सव को मनाया जाता है। जगह-जगह विभिन्न तरह के सुंदर पंडाल बनते हैं और स्थापना से लेकर विर्सजन तक वहां एक अलग ही माहौल देखने को मिलता है। दरअसल, सबसे पहले गणेश चतुर्थी महाराष्ट्र में ही मनाई गई थी। इस त्योहार को मनाने के पीछे आज़ादी की लड़ाई की एक कहानी जुड़ी हुई है।
1890 के दशक में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक अक्सर मुंबई की चौपाटी पर समुद्र के किनारे जाकर बैठते थे और सोचते थे कि कैसे लोगों को एक साथ लाया जाए। वहीं उनके दिमाग में खयाल आया कि क्यों न गणेश चतुर्थी को सार्वजनिक स्थल पर मनाया जाए, इससे हर वर्ग के लोग इसमें शामिल हो सकेंगे। बस, फिर क्या था तिलक का यह आइडिया बेहद कारगर सिद्ध हुआ और आज तक यह कायम है।
वीर सावरकर और कवि गोविंद ने नासिक में गणेशोत्सव मनाने के लिए मित्रमेला संस्था बनाई थी। इस संस्था का काम था देशभक्तिपूर्ण मराठी लोकगीत ‘पोवाडे’ आकर्षक ढंग से सुनाना। पोवाडों ने पश्चिमी महाराष्ट्र में धूम मचा दी थी। कवि गोविंद को सुनने के लिए भीड़ उमड़ने लगी। राम-रावण कथा के आधार पर लोगों में देशभक्ति का भाव जगाने में सफल होते थे। लिहाज़ा, गणेशोत्सव के ज़रिए आजादी की लड़ाई को मज़बूत किया जाने लगा।
इस तरह नागपुर, वर्धा, अमरावती आदि शहरों में भी गणेशोत्सव ने आजादी का आंदोलन छेड़ दिया था। वहीं, थोड़े और पुराने इतिहास की बात करें तो बताया जाता है कि पेशवा सवाई माधवराव के शासन के दौरान पुणे के प्रसिद्ध शनिवारवाड़ा नामक राजमहल में भव्य गणेशोत्सव मनाया जाता था। अंग्रेजों के शासन के समय गणेश उत्सव की भव्यता में कमी आने लगी, लेकिन यह परंपरा बनी रही।
गणेश चतुर्थी पर इस बार गणपति पूजन का शुभ मुहूर्त 31 अगस्त को सुबह 06 बजे से 09 बजे तक, सुबह 10.30 से दोपहर 02 बजे तक, दोपहर 03.30 बजे से शाम 05 बजे तक, शाम 06 बजे से 07 बजे तक है। इस दिन मूर्ति स्थापना करने का सबसे अच्छा मुहूर्त सुबह 11 से दोपहर 01.20 तक है, क्योंकि इस मध्य काल में भगवान गणपति का जन्म हुआ था। पूजा के समय ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र का जप करते हुए गणेशजी को जल, फूल, अक्षत, चंदन और धूप-दीप एवं फल नैवेद्य अर्पित करें। प्रसाद के रूप में गणपतिजी को उनके अतिप्रिय मोदक का भोग लगाएं।
Ganesh Chaturthi 2022: गणेश चतुर्थी के मौके पर अपनों को भेजें ये शुभकामना संदेश
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