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CBI से लेकर RBI तक, 5 साल गुजरने के बाद कैसे हैं मोदी सरकार के “चौकीदार”, अब ये भी जानों !

भारतीय जनता पार्टी का #MainBhiChowkidar अभियान, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ पार्टी के हर छोटे-बड़े नेता ने खुद को सोशल मीडिया पर “चौकीदार” घोषित किया है, जिसके बाद इन दिनों चौकीदार काफी चर्चा में है।

यह कैंपेन कांग्रेस के अभियान “चौकीदार चोर है” को रोकने के लिए शुरू किया गया है जिसकी शुरूआत 2014 में मोदी ने खुद को भारतीय टैक्स पेयर के पैसों का चौकीदार कहकर की थी। लेकिन मोदी सरकार के कार्यकाल में कितनी चौकीदारी की गई और क्या मोदी भारतीय की आवाम के लिए एक बेहतर चौकीदार साबित हुए?

जवाब देने का एक तरीका यह है कि हम भारत सरकार के “चौकीदारों” पर एक नज़र डालें- वे संस्थाएँ जो सरकार पर निगरानी रखने के लिए होती हैं कि यह कैसे काम करती है। इस मोर्चे पर, मोदी सरकार का रिकॉर्ड काफी खराब रहा है।

लोकपाल-

जन लोकपाल विधेयक, भारत सरकार के लिए भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के लिए एक ऐसा कानून था जो 2014 के चुनाव अभियान में सबसे बड़ा मुद्दा था। उस साल इसी उम्मीद में पारित किया गया था कि लोकपाल संस्थाओं में होने वाले भ्रष्टाचार पर लगाम लगाएगा। 5 साल बाद, अब सरकार केवल भारत के लिए लोकपाल नियुक्त करने तक पहुंची है वो भी चुनाव शुरू होने से एक महीने से भी कम समय पहले। इसमें इतना समय क्यों लगा इसका जवाब सरकार को देना चाहिए या नहीं, यह आप तय कीजिए ?

न्यायपालिका –

सत्ता में आते ही, मोदी सरकार ने न्यायपालिका में विशेषकर नियुक्तियों को लेकर चल रहे झगड़े को उठाया। काफी दिनों तक न्यायाधीशों और चीफ जस्टिस के बीच टकराव चलता रहा। यह मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान ही हुआ जब सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों ने एक अभूतपूर्व प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें यह दावा किया गया था कि भारत के मुख्य न्यायाधीश के बर्ताव के कारण लोकतंत्र खतरे में है। विशेष सीबीआई जज बीएच लोया की मौत और अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो के सुसाइड नोट के बारे में भी कई सवाल अभी अनसुलझे हैं।

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) –

भारत की प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई ने जो देखा वो ऐसा इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ। मोदी द्वारा नियुक्त किए गए CBI के 2 अधिकारियों ने एक-दूसरे के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप तय किए। आखिरकार सीबीआई की टीम ने खुद अपने ही ऑफिस में छापा मारा। जब केंद्र ने अंत दखलअंदाजी की तो सर्वोच्च न्यायालय ने बाद में इसे गैरकानूनी, पक्षपातपूर्ण आदेश बताया। इसमें शामिल अधिकारियों को फिर बाहर कर दिया गया, लेकिन उनके आरोपों के कई ऐसे धागे बंधे हुए हैं जो स्पष्टता की उलझन से अभी बहुत दूर है।

केंद्रीय सूचना आयोग –

सूचना का अधिकार यानि राइट टू इनफॉर्मेशन का मतलब यह है कि हर एक भारतीय नागरिक “चौकीदार” है। इसलिए वर्तमान सरकार ने कानून में संशोधन करने की मांग की जिसके बाद कई सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना था कि इससे कानून कमजोर हो जाएगा। सरकार ने अंततः जनता के दबाव का सामना किया।

भारतीय रिजर्व बैंक –

केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था का संरक्षक है, जिसका मतलब यह है कि वो सुनिश्चित करना है कि सरकार जो आर्थिक फैसले कुछ दिनों के लिए लेती है वो उनको अधिक समय के लिए लेता है। मोदी सरकार में, भारतीय रिजर्व बैंक ने 1950 के दशक के बाद पहली बार किसी गवर्नर का इस्तीफा देखा।

राज्यसभा –

कुछ मायनों में, राज्य सभा लोकसभा पर विशेष रूप से राज्यों की ओर से निगरानी रखने के लिए मौजूद है। इसके अलावा राज्यसभा यह भी सुनिश्चित करती है कि किसी भी कानून को संसद के भारी बहुमत का कहीं नुकसान ना झेलना पड़े। हालांकि, मोदी सरकार के दौरान उच्च सदन को कई बार दरकिनार किया गया।

इसके अलावा मोदी सरकार में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग से लेकर दिल्ली पुलिस के दुरूपयोग से निपटने तक कई तरह के संस्थागत हमले हुए हैं। आखिर में सवाल यह है कि क्या भाजपा का यह अभियान जनता की नब्ज पकड़ पाएगा या केवल मोदी समर्थकों की पहचान करने का एक आसान तरीका बनकर रह जाएगा, यह चुनावों के परिणाम ही तय करेंगे।

sweta pachori

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