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जल संकट: चुनावों से पहले और इसके बाद भी इस मुद्दे पर बात होनी ही चाहिए!

लोकसभा चुनावों की मतगणना फिलहाल जारी है। एनडीए को बहुमत मिलता दिख रहा है। ऐसे में साफ तौर पर नरेन्द्र मोदी की सरकार वापस आती हुई नजर आती है। सात चरणों का लम्बा चुनाव चला। समस्या अगर बात करें तो पानी की समस्या पर चुनावों के दौरान उतना ध्यान नहीं दिया गया।

भाजपा पार्टी का इस दौरान कहना रहा है कि 2024 तक हर घर में पाइप्ड पानी उपलब्ध करावाया जाएगा। वहीं कांग्रेस ने भी कहा था कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो पूरे देश में पीने योग्य पानी की व्यवस्था करवाई जाएगी।

देश में पानी की समस्या एक संकट जैसी ही है। एक अनुमान के अनुसार वर्तमान में देश की 42% भूमि सूखे से प्रभावित है। तो क्या सभी तक पानी पहुंचाने का वादा वाकई पूरा हो सकता है?

भारत में जल संकट

भारत में जनसंख्या दुनिया की आबादी की 18% से अधिक है लेकिन अगर बात करें मीठे और साफ पानी की तो भारत में ऐसे संसाधन दुनिया के सिर्फ 4% ही हैं।

हाल ही में सरकार द्वारा प्रायोजित रिपोर्ट के अनुसार भारत अपने इतिहास के सबसे खराब जल संकट से पीड़ित है।  दिल्ली, बैंगलोर, हैदराबाद और चेन्नई सहित 21 शहरों में 2020 तक भूजल कम होने की संभावना है। इस रिपोर्ट का अनुमान है कि  2030 तक देश भर में 40% भारतीय, ताजे पीने के पानी की आपूर्ति के बगैर अपना जीवन बिताएंगे।

शहरों की है एक अलग ही कहानी

अशोक ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड द एनवायरनमेंट की साथी डॉ. वीना श्रीनिवासन का कहना है कि शहरी और ग्रामीण भारत के लिए पानी की समस्या अलग है। शहर इतनी तेजी से बढ़ रहे हैं कि कोई बुनियादी ढांचा नहीं है जो उपलब्ध पानी पहुंचा सकता है। सन् 2030 तक, देश की शहरी आबादी 600 मिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है। हालांकि, डॉ श्रीनिवासन के अनुसार लंबे समय तक चिंता का विषय ग्रामीण भारत में भूजल का अत्यधिक उपयोग है।

भारत में लगभग 80% पानी कृषि के उपयोग में आता है तथा इसका ज्यादातर हिस्सा चट्टान और मिट्टी में जमे भूजल से आता है। वाटरएड इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वीके माधवन का कहना है कि जब पानी जमा होने से ज्यादा संसाधनों से निकाला जाता है तो यह एक बड़ी समस्या के संकेत हैं। गेहूँ, चावल, गन्ना और कपास जैसी प्रमुख फ़सलों पर पानी की आवश्यकता ज्यादा होती है और पानी को यहां ठीक तरीके से इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

वाटर फुटप्रिंट नेटवर्क के अनुसार 1 किलोग्राम कपास का उत्पादन भारत में 22,500 लीटर (5,000 गैलन) पानी के साथ किया जाता है लेकिन अमेरिका में इसे सिर्फ 8,100 लीटर में किया जाता है।

सन् 2017-18 के लिए भारत के आधिकारिक आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार 30 वर्षों में जल तालिका में 13% की कमी आई है।

सन् 2013 में, भारत समग्र रूप से सुरक्षित माना जाता था हालांकि, तब भी देश के कुछ हिस्सों में भूजल की खपत अधिक थी। 2018 तक, सभी क्षेत्रों में लगभग 66% कुओं पर पानी के स्तर में गिरावट आई थी।

फरवरी 2019 में संसद में एक बयान में कहा गया कि 2011 की प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,545 क्यूबिक मीटर (400,000 गैलन) से घटकर 2050 में 1,140 क्यूबिक मीटर रह जाएगी।

जलवायु परिवर्तन भी एक बड़ा कारण रहा है। सुंदरम जलवायु संस्थान के मृदुला रमेश का कहना है कि कम और अधिक तीव्रता वाली बारिश के कारण पानी पृथ्वी पर ही रहा जाता है और जमीन के अंदर तक नहीं जा पाता है।

धन की कटौती

भारत में पानी का उपयोग एक राज्य का मुद्दा है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित पेयजल आपूर्ति के लिए राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ वर्षों से एक संघीय योजना है।

हालांकि, पिछले पांच वर्षों में वित्त पोषण में कटौती की गई थी क्योंकि वर्तमान सरकार ने स्वच्छता जैसी अन्य योजनाओं को प्राथमिकता दी थी। इस साल मई तक, सिर्फ 18% से अधिक ग्रामीण घरों में पाइप से पानी की आपूर्ति थी, जो कि पांच साल पहले की तुलना में केवल 6% अधिक है।

डॉ. श्रीनिवासन का कहते हैं कि समस्या को हल करने के लिए किसानों को पानी की जरूरत के बजाय उनकी आय की जरूरत पर ध्यान दिया जा रहा है। इसके अलावा महत्वपूर्ण हैं कि पानी को रिसाइकिल किया जाए।

Neha Chouhan

12 साल का अनुभव, सीखना अब भी जारी, सीधी सोच कोई ​दिखावा नहीं, कथनी नहीं करनी में विश्वास, प्रयोग करने का ज़ज्बा, गलत को गलत कहने की हिम्मत...

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