बुधवार की बात है 23 साल की साक्षी मिश्रा ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया जिसने पूरे देश भर को परेशान किया। वीडियो में साक्षी ने दावा किया कि उनके पिता उनकी और उनके पति अजितेश कुमार की हत्या करना चाहते हैं। इसका कारण साक्षी ने बताया कि उन्होंने अलग अलग जाति से होते हुए भी शादी कर ली जिसके बाद लड़की पिता नाराज हो गए। पिता उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के विधायक हैं।
बहरहाल ये घटना थोड़ी अलग लगती है जहां पर सोशल मीडिया पर सबके सामने साक्षी ने अपनी बात कही लेकिन अंतर-जातीय विवाह को लेकर हिंसा होना भारत में आम सी बात है।
पिछले एक हफ्ते में ऑनर किलिंग की दो घटनाएं सामने आई हैं। गुजरात में सोमवार को एक दलित व्यक्ति को कथित रूप से अपनी उच्च जाति की पत्नी के परिवार द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया। तमिलनाडु में एक व्यक्ति और उसकी गर्भवती पत्नी को जाति से बाहर शादी करने पर मार डाला गया।
जाति भारत की सबसे बड़ी सामाजिक कुरीति है और शादियों को अपनी ही जाति तक सीमित रखना एक तरह की सामाजिक संरचना का हिस्सा रहा है। जैसा कि ऑनर किलिंग की लगातार घटनाओं से पता चलता है जाति की समरूपता भारतीय समाज में बनी हुई है और जब इसको फॉलो नहीं किया जाता तो माता पिता अपने बच्चों को मौत के घाट उतारने में भी नहीं कतराते।
आज भारतीय समाज की एक मुख्य विशेषता जाति है जो हजारों सालों से चली आ रही है। आनुवांशिक शोध में पाया गया है कि भारतीय उपमहाद्वीप में जाति की समरूपता की अवधारणा 2,000 से 3,000 सालों पुरानी है। परिणामस्वरूप भले ही भारत घनी आबादी वाला है लेकिन इसके 4,000 जाति समूह आनुवांशिक रूप से अलग हैं और अपने पड़ोसी या दूसरी जाति के लोगों से अलगाव रखते हैं।
विश्वास नहीं होता लेकिन आधुनिकता ने भारत में जाति व्यवस्था को कुछ खास नुकसान नहीं पहुंचाया है। भारतीय सांख्यिकी संस्थान, दिल्ली में त्रिदीप रे, अर्का रॉय चौधरी और कोमल सहाय द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि बड़े पैमाने पर सामाजिक-आर्थिक बदलावों के बावजूद पिछले चार दशकों से जाति की समरूपता यानि लोगों का अपनी ही जाति में विवाह करना अभी भी स्थिर है। इसके अलावा ऐसा सामने आया कि शहरी परिवारों में ग्रामीण लोगों की तुलना में अंतरजातीय विवाह की अधिक संभावना नहीं है।
शोधकर्ताओं कुमुदिनी दास, कैलाश चंद्र दास, तरुण कुमार रॉय और प्रदीप कुमार त्रिपाठी द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि औद्योगिकीकरण से भी जाति की समरूपता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। तमिलनाडु का सबसे ज्यादा इंडस्ट्रियलाइजेशन हुआ लेकिन वहीं पर सबसे ज्यादा जाति एंडोगामी सामने आती है जहां इसकी दर 87 प्रतिशत है यानि 87 प्रतिशत शादियां अपनी ही जाति में हो रही हैं।
परिणामस्वरूप नवीनतम जनगणना के आंकड़ों के अनुसार भारत में अंतर-जातीय विवाह की दर सिर्फ 5.8% थी। 2001 और 2011 के बीच भारत में 20 में से 19 विवाह अपनी ही किसी जाति में किए गए।
जातिवाद के बोझ तले हमारा समाज अपंग सा ही है। जातिगत भेदभाव भारतीय समाज के लिए विनाशकारी बनकर उभरा है। दलित बच्चे के पहले साल में मरने की संभावना उच्च जाति के बच्चे की तुलना में 42% अधिक है। भारत में एक दलित महिला की जीवन प्रत्याशा सिर्फ 39.5 वर्ष है जो कि उच्च जाति की महिला से लगभग 20 वर्ष कम है। इस लिहाज से इंडिया सबसे पिछड़ा हुआ देश है जहां पर महिला जीवन प्रत्याशा बेहद कम है।
कितना विरोधभास साक्षी के वीडियो में छिपा हुआ है। 21वीं सदी की एक बालिग लड़की अपने हाई टेक्नोलोजिकल स्मार्टफोन पर एक वीडियो बनाती है और लोगों को बताती है कैसे प्राचीन जाति व्यवस्था ने उनके जीवन को खतरे में डाल दिया है। भारत किसी भी तरह के जाति के आतंक को नजरअंदाज नहीं कर सकता।
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