ये हुआ था

नारंगी काफ्तान और एक मनके की माला पहनकर शूटिंग में पहुंचते थे विनोद खन्ना

अपने जमाने के मशहूर बॉलीवुड अभिनेता विनोद खन्ना की आज 77वीं बर्थ एनिवर्सरी है। विनोद अपने जमाने के उम्दा कलाकारों में से एक थे। सुनील दत्त ने जब पहली बार विनोद खन्ना को देखा तो वे उनसे काफी प्रभावित हुए, क्योंकि वे खुद भी पेशावर से आते थे। दत्त ने अपने होम प्रोडक्शन की फिल्म ‘मन का मीत’ (1968) में खन्ना और अपने छोटे भाई सोम दत्त को लॉन्च करने का फैसला किया। इस तरह विनोद का फिल्मों में सफ़र शुरू हुआ था।

अभिनेता खन्ना ‘ओशो’ को अपना गुरु मानते थे। वे बीच में एक्टिंग छोड़कर उनके आश्रम में रहने लगे थे। इसके इतर विनोद खन्ना राजनीति से भी जुड़े व केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे। विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्टूबर, 1946 को ब्रिटिश-भारत के पेशावर (अब पाकिस्तान) में एक पंजाबी हिंदू परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम कमला और पिता का नाम किशनचंद खन्ना था। इस खास अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

साल 1971 करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ

विनोद खन्ना शुरुआत में सिर्फ एक अच्छे दिखने वाले खलनायक थे। लेकिन बाद में स्क्रीन पर जादू से लोगों को खन्ना के हर तरह के रोल पसंद आए और हर फिल्म में उनपर नज़र रहीं। फिर चाहे वह मनोज कुमार के साथ फिल्म ‘पूरब और पश्चिम'(1970) हों या राजेश खन्ना के साथ ‘आन मिलो सजना’ और ‘सच्चा झूठा’। वर्ष 1971 खन्ना के कॅरियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। तीन बॉलीवुड फिल्मों में वे तीन अलग-अलग तरह के रोल में सिल्वर स्क्रीन पर पेश हुए। वे सुनील दत्त की ‘रेशमा और शेरा’, गुलजार की ‘मेरे अपने’, राज खोसला की ‘मेरा गांव, मेरा देश’ में भी लीड किरदार में नज़र आए थे।

अपनी बचपन की दोस्त गीतांजलि से की पहली शादी

अभिनेता विनोद खन्ना की निजी ज़िंदगी की बात करें तो विनोद खन्ना ने अपनी बचपन की दोस्त गीतांजलि से वर्ष 1971 में शादी की थी। इन दोनों के दो बेटे अक्षय और राहुल खन्ना हैं। साल 1985 में विनोद और गीतांजलि का तलाक़ हो गया था। इसके पांच साल बाद यानि वर्ष 1990 में विनोद खन्ना ने कविता से शादी की, जिससे उन्हें बेटा साक्षी खन्ना और बेटी श्रद्धा खन्ना हैं। उनके दो बेटे राहुल और अक्षय खन्ना ​सिनेमा की दुनिया में सक्रिय हैं।

78 से पहले ही ओशो के संपर्क में रहने लगे खन्ना

हिंदी सिनेमा में 70 का दशक मल्टी-स्टारर फिल्मों का दशक था और विनोद खन्ना एक प्रमुख खिलाड़ी थे, जिनकी जोड़ी अमिताभ बच्चन और अन्य अभिनेताओं के साथ खूब जमती थी। उन्होंने रणधीर कपूर के साथ ‘हाथ की सफाई’ और अमिताभ बच्चन के साथ ‘ख़ून पसीना’, ‘परवरिश’ और ‘अमर अकबर एंथनी’ में काम किया। विनोद खन्ना वर्ष 1978 से पहले ही आध्यात्मिक गुरु आचार्य ‘ओशो’ रजनीश के संपर्क में रहने लगे थे। खन्ना इस दौरान एक नारंगी काफ्तान और एक मनके की माला को शूटिंग के वक्त पहन कर आते थे। इस दौर में उनसे साक्षात्कार में कोई भी सवाल पूछने पर वो उसका जवाब उनके गुरु ‘ओशो’ के दर्शन से संबंधित ही दिया करते थे।

ओशो चाहते थे उनका पसंदीदा शिष्य उन्हें फॉलो करे

जब विनोद खन्ना मुंबई (तब बॉम्बे) में थे तो वे सोमवार से शुक्रवार तक शूटिंग करते थे। पैक-अप के बाद वे ओशो के साथ अपना वीकेंड बीताने के लिए पुणे (तब पूना) का रुख करते थे। फिल्म निर्माता ओशो के लिए उनके जुनून को लेकर चिंतित थे, लेकिन खन्ना को इस चिंता से कोई फर्क नहीं पड़ता था। जैसे-जैसे महीनों बीतते गए, काम में उनकी दिलचस्पी काफी घटती दिखी और अधिक स्पष्ट होती गईं।

ओशो रजनीश के पूना रिसॉर्ट में कुछ समस्या थी, जिसके कारण ओशो रातों-रात अमेरिका के ओरेगन प्रांत में शिफ्ट हो गए और चाहते थे कि उनके पसंदीदा शिष्य विनोद खन्ना उनको फॉलो करे। वर्ष 1980 में एक समय ऐसा था, जब विनोद खन्ना को पूरा देश पसंद करता था। ‘द बर्निंग ट्रेन’ के एक्शन हीरो और बहुत लोकप्रिय ‘कुरबानी’ के रोमांटिक हीरो। सवाल है कि क्या खन्ना ने अपने गुरु ओशो के लिए अपना कॅरियर दांव पर लगा दिया?

साइनिंग अमाउंट वापस करने लगे थे विनोद खन्ना

जब विनोद खन्ना के बारे में ये ख़बरें मीडिया तक पहुंची तो किसी ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया और इसे एक अफवाह के रूप में खारिज कर दिया। लेकिन धीरे-धीरे, जैसे-जैसे दिन बीतते गए फिल्म निर्देशकों ने यह स्वीकार किया कि खन्ना ने अपने सभी नए प्रोजेक्ट्स रोक दिए थे। निर्माताओं ने पुष्टि करते हुए कहा था कि विनोद खन्ना साइनिंग अमाउंट वापस कर रहे थे। यह गंभीर था। उनके सह-कलाकार भी इससे चिंतित थे और डिस्ट्रिब्यूटर नाराज़ थे। मीडिया जानना चाहता था कि आखिर क्या चल रहा है। इसलिए अंत में अपने मैनेजर (तत्कालीन सचिव) की सलाह पर विनोद खन्ना ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। प्रोग्राम नए लॉन्च किए गए सेंटूर (आज ट्यूलिप स्टार) होटल में था। उनकी पहली पत्नी गीतांजलि और उनके बेटे सम्मेलन का हिस्सा थे।

उन दिनों प्रेस कॉन्फ्रेंस उतनी आम नहीं थीं जितनी आज है। हर कोई हैरान था कि विनोद खन्ना के साथ क्या चल रहा है। उन्होंने कोई बड़ी स्पीच नहीं दी। लेकिन खन्ना ने अपनी स्पीच में कहा कि उन्होंने फिल्मों को छोड़ने और अपने आधार को बदलने का मन बना लिया था और वह अपने दिल को फॉलो करना चाहते थे। उनकी पत्नी गीतांजलि उनके पास बैठी थीं, जो उनके फैसले का समर्थन कर रही थीं।

रजनीशपुरम आश्रम में एक माली बन गए थे खन्ना

बाद के हफ्तों में विनोद खन्ना ओरेगन के लिए रवाना हो गए। अगर कहानियों पर विश्वास किया जाए तो वह रजनीशपुरम आश्रम में एक माली बन गए थे। हर सुबह, वह उठते थे और पौधों को पानी देते थे। अपने इन सालों के दौरान विनोद खन्ना शायद ही भारत आए। वर्ष 1985 में उनके तलाक़ की ख़बर तक मीडिया ने उनके साथ संपर्क खो दिया। अपने लंबे ब्रेक के बाद विनोद खन्ना को पहली बार सफेद दाढ़ी के साथ एक फेमस मैग्जीन कवर पर देखा गया था। यह फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक संकेत था कि विनोद वापस आ गए हैं और निर्माता उनके घर के बाहर लाइन में लग गए। अपने इस फेज से बाहर आने के बाद वे मुकुल आनंद निर्देशित फिल्म ‘इंसाफ़’ में डिंपल कपाड़िया के साथ नज़र आए। उसके बाद फिरोज खान की ‘दयावान’ की।

इसके बाद यश चोपड़ा ने विनोद खन्ना को फिल्म ‘चांदनी’ के लिए साइन किया, जबकि महेश भट्ट ने उन्हें ‘जुर्म’ के लिए सिलेक्ट किया। 90 के दशक में उन्हें प्रोफेशनल नुकसान हुआ। लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर खन्ना ने कविता से अपनी शादी की घोषणा की। वर्ष 1997 में उन्होंने अपने बेटे अक्षय खन्ना को अपने होम प्रोडक्शन की फिल्म ‘हिमालयपुत्र’ में लॉन्च किया। यह फिल्म नुकसान में गई।

भाजपा में शामिल होकर पहली बार में चुनाव जीता

वर्ष 1997 में विनोद खन्ना भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल हो गए। पार्टी ने उन्हें लोकसभा चुनाव में गुरदासपुर निर्वाचन क्षेत्र, पंजाब से मैदान में उतारा और वे पहली बार में ही जीतने में कामयाब रहे। वर्ष 1999 में वे एक बार फिर उसी निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए चुने गए। इस समय तक खन्ना ने बॉलीवुड और राजनीति दोनों को संतुलित करना सीख लिया था। वर्ष 2009 का लोकसभा चुनाव में हारने के बाद खन्ना ने साल 2014 के आम चुनावों में एक बार फिर जीत के साथ लोकसभा में वापसी की। हालांकि, वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और 27 अप्रैल, 2017 को विनोद खन्ना ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

अपने जीवन के एक दौर में अभिनेता से भिक्षु बने विनोद खन्ना ने अपनी मर्सिडीज बेच दी थी और वह ओशो के आश्रम में एक माली बन गए थे। यह अभिनेता-राजनेता अपनी लोकप्रियता के बारे में चिंता करते हुए बहुत अधिक ऊँचाइयों और चढ़ाव से गुजरा था।

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Raj Kumar

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