देश के चौथे राष्ट्रपति व ‘भारत रत्न’ से सम्मानित वी. वी. गिरि साहब की 10 अगस्त को 129वीं जयंती है। सबसे दिलचस्प बात ये है कि गिरी भारत के अब तक के इतिहास में एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हुए हैं, जो निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में इस पद के लिए चुने गए थे। उन्होंने अपने कार्यकाल में मजदूरों के अधिकारों के लिए कई उल्लेखनीय कार्य किए। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी से मित्रता का लाभ गिरि को मिला। इससे उनका राजनीतिक करियर तेजी से आगे बढ़ा। इस खास अवसर पर जानिए देश के पूर्व राष्ट्रपति वी. वी. गिरि के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
वराहगिरि वेंकट गिरि का जन्म 10 अगस्त, 1894 को ओडिशा के बेरहमपुर गांव में हुआ था। उनके पिता वी. वी. जोगय्या पंतुलु थे, जो एक सफल वकील और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनीतिक कार्यकर्ता थे। गिरि की माता का नाम श्रीमती सुभद्राम्मा था। उनकी मां ने राष्ट्रीय आंदोलन असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। वी. वी. गिरि की शादी सरस्वती बाई से हुई थी और उन दोनों के 14 बच्चे थे।
गिरि की आरंभिक शिक्षा खल्लिकोट कॉलेज में और बाद में उत्कल विश्वविद्यालय से संबद्ध बेरहमपुर में पूरी की। वर्ष 1913 में वह कानून की पढ़ाई के लिए आयरलैंड चले गए, जहां उन्होंने वर्ष 1913-1916 के बीच यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन और द माननीय सोसायटी ऑफ़ किंग्स इन, डबलिन में पढ़ाई की। यहीं पर अध्ययन के दौरान गिरि एक आंदोलन से जुड़ गए और उन्हें इसकी वजह से आयरलैंड छोड़ना पड़ा। भारत आकर गिरि ने मद्रास उच्च न्यायालय में वकालत शुरू कर दी। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस जॉइन कर ली। वर्ष 1920 में उन्होंने गांधी के द्वारा संचालित असहयोग आंदोलन में भाग लिया और कैद कर लिए गए।
बाद में वी. वी. गिरि वर्ष 1923 में मज़दूर संगठनों से जुड़ गए। वह जल्द ही आल इंडिया रेल कर्मचारी फेडरेशन का महासचिव नियुक्त हुए और बाद में अध्यक्ष भी चुने गए। वर्ष 1928 में गिरि के नेतृत्व में बंगाल-नागपुर रेलवे संगठन की स्थापना की। गिरि के नेतृत्व में रेल कर्मचारियों ने पहली अहिंसात्मक हड़ताल की जिस पर गांधी का प्रभाव था। इस हड़ताल का इतना व्यापक असर था कि सरकार और रेल प्रबंधन को उनकी मांगें मानने को राज़ी होना पड़ा और निकाले गए मजदूरों को पुन: भर्ती करना पड़ा। गिरि ने ‘इंडियन ट्रेड यूनियन फ़ेडरेशन’ की स्थापना की। उन्होंने जिनेवा में वर्ष 1927 में हुई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर कॉन्फ्रेंस में भारतीय मजदूरों की ओर से भाग लिया।
देश की आजादी के समय दक्षिण भारत में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी काफी चर्चित थे। राजाजी और गिरि में इस दौरान मित्रता हो गई। इससे गिरि का राजनीतिक सफर तेजी से आगे बढ़ा। वर्ष 1936 में मद्रास प्रेसीडेन्सी में जब राजगोपालाचारी के नेतृत्व में कांग्रेस की अंतरिम सरकार बनी तो उस सरकार में गिरि को श्रम मंत्री बनाया गया। दूसरे विश्व युद्ध में भारत को ब्रिटेन की ओर युद्ध में शामिल करने के विरोध में और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा।
आजादी के बाद देश में वर्ष 1952 में पहला आम चुनाव हुआ और वीवी गिरी को कांग्रेस सरकार में पहला श्रम मंत्री बनने का सौभाग्य मिला। इसके पीछे कारण यह था कि उन्होंने आजादी के दौरान मजदूर का नेतृत्व बखूबी किया था। कांग्रेस सरकार ने एक बार बैंक कर्मचारियों की वेतन में वृद्धि की मांग ठुकरा दी तो उन्होंने श्रम मंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया। वर्ष 1957 में हुए दूसरे आम चुनावों में वी. वी. गिरि को आंध्र प्रदेश के पार्वतीपुरम लोकसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा। यहीं से उनके राजनीतिक जीवन समाप्त हो गया।
वीवी गिरि की दूसरी राजनैतिक पारी विभिन्न राज्यों के राज्यपाल बनने के साथ शुरू हुई थी। कांग्रेस सरकार ने उन्हें पहली बार वर्ष 1956 में उत्तरप्रदेश, वर्ष 1960 में केरल और वर्ष 1965 से 1967 तक कर्नाटक का राज्यपाल बनाया। बाद में उन्हें भारत का तीसरा उपराष्ट्रपति बना दिया गया। जाकिर हुसैन के निधन से रिक्त हुए राष्ट्रपति पद पर वी. वी. गिरि को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया। वर्ष 1969 में गिरि देश के चौथे राष्ट्रपति बने।
भारत सरकार ने उनके योगदान और उपलब्धियों को सम्मानित करने के लिए वर्ष 1975 में अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से वी. वी. गिरि को सम्मानित किया। सरकार के श्रम मंत्रालय ने वर्ष 1974 में ‘श्रम से संबंधित मुद्दों पर शोध, प्रशिक्षण, शिक्षा, प्रकाशन और परामर्श’ के लिए एक स्वायत्त संस्था की स्थापना की। इसका नाम वर्ष 1995 में गिरि के सम्मान में ‘वी. वी. गिरि नेशनल लेबर इंस्टीट्यूट’ रखा गया।
वी. वी. गिरि को मजदूरों के उत्थान और उनके अधिकारों के संरक्षण की दिशा में किए गए उल्लेखनीय कार्यों के लिए एक मुखर कार्यकर्ता के रूप में हमेशा याद किया जाएगा। ‘भारत रत्न’ से सम्मानित वी. वी. गिरि का 85 वर्ष की अवस्था में 23 जून, 1980 को चेन्नई में निधन हो गया।
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