ये हुआ था

फिल्मों में नए प्रयोग करने के लिए मशहूर थे प्रसिद्ध फिल्मकार वी शांताराम

एक अभिनेता, मराठी फिल्म निर्माता-निर्देशक शांताराम राजाराम वानकुद्रे की 18 नवंबर को 122वीं बर्थ एनिवर्सरी है। उन्हें वी. शांताराम या शांताराम बापू के नाम से भी जाना जाता था। उन्होंने फिल्मी जगत को अपने जीवन के करीब 50 साल दिए थे। शांताराम को भारतीय सिनेमा जगत का ‘पितामह’ भी कहा जाता है। उन्हें ‘डॉ. कोटनिस की अमर कहानी’, ‘अमर भूपाली’, ‘झनक-झनक पायल बाजे’ (1955), ‘दो आंखें बारह हाथ’, ‘नवरंग’ (1959), ‘पिंजारा’ जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है। वी. शांताराम को भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े पुरस्कार ‘दादा साहब फाल्के’ सहित कई प्रमुख अवॉर्ड से नवाज गया। इस खास अवसर पर जानिए दिग्ग्ज फिल्मकार शांताराम की जिंदगी के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

वी शांताराम का फिल्मों में करियर

प्रसिद्ध फिल्मकार वी शांताराम का जन्म 18 नवंबर, 1901 को कोल्हापुर में हुआ था। उनकी शिक्षा नाममात्र की हुई थी। उन्होंने 12 वर्ष की उम्र में रेलवे वर्कशाप में अपेंट्रिस के रूप में कार्य किया था। इसके बाद वह एक नाटक मंडली से जुड़ गए। वी. शांताराम ने फिल्म निर्माण की कला बाबू राव पेंटर से सीखी थी। उन्होंने वर्ष 1925 में रिलीज ‘सावकारी पाश’ फिल्म में किसान की भूमिका निभाई थी। बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म ‘नेताजी पालकर’ वर्ष 1927 में आई थी।

बाद में उन्होंने अपने बैनर ‘राजकमल कला मंदिर’ स्थापित किया। कहा जाता है अपने इस स्टूडियो के लिए उन्होंने आधुनिक सुविधाएं जुटाई थीं। उन्होंने बतौर एक्टर कई फिल्मों में काम किया, इनमें प्रमुख ‘सावकारी पाश’, ‘स्त्री’,   ‘परछाईं’, ‘दो आंखें बारह हाथ’ और ‘सिंहगड’ शामिल हैं। उन्होंने फिल्म-निर्माता के रूप में ‘नेताजी पालकर’, ‘अमर ज्योति’ और ‘झनक-झनक पायल बाजे’ फिल्में की थी।

पारिवारिक और सामाजिक मुद्दों पर बनाई फिल्में

वी शांताराम उन हस्तियों में शामिल है, जिनके लिए फिल्में मनोरंजन करने के साथ ही सामाजिक संदेश देने का माध्यम थी। उन्होंने अपने जीवन काल के लंबे करियर में फिल्मों में प्रयोगधर्मिता को भी बढ़ावा दिया। उनकी सबसे चर्चित फिल्म ‘दो आंखे बारह हाथ’ है, जो वर्ष 1957 को रिलीज हुई। यह एक साहसी जेलर की कहानी पर आधारित है, जो 6 कैदियों को बिल्कुल नए तरीके रूप में सुधारता है। फिल्म अपनी अनूठी कथा और पृष्ठभूमि की वजह से दर्शकों को आज भी बांध लेती है। इस फिल्म को राष्ट्रपति का स्वर्ण पदम सम्मान मिला था। यही नहीं इस फिल्म ने बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में ‘सिल्वर बियर’ सहित कई विदेशी पुरस्कार जीते।

फिल्मों में प्रयोग करने के लिए मशहूर

वी. शांताराम ने अपने समय की कई चर्चित फिल्में ‘डॉ. कोटनिस की अमर कहानी’, ‘झनक-झनक पायल बाजे’, ‘नवरंग’, ‘दुनिया ना माने’ जैसी फिल्मों के निर्माण में कई नए प्रयोग किए। उन्होंने हिंदी फिल्मों में पहली बार मूविंग, शॉट्स और ट्रॉली का इस्तेमाल किया था। शांताराम ने फिल्मों में मनोरंजन के साथ कोई समझौता किए बिना ही नए प्रयोग किए, जिसकी वजह से उनकी फिल्में न केवल दर्शकों को बल्कि समीक्षकों को भी काफी पसंद आई।

उन्होंने ही हिंदी सिनेमा में मूविंग शॉट का इस्तेमाल सबसे पहले किया। शांताराम ने बच्चों के लिए वर्ष 1930 में ‘रानी साहिबा’ फिल्म बनाई। फिल्म ‘चंद्रसेना’ में ही इन्होंने पहली बार ट्राली का इस्तेमाल किया था। वर्ष 1933 में शांताराम ने पहली रंगीन हिंदी फिल्म बनाई थी। साथ ही एनिमेशन का इस्तेमाल भी इन्होंने किया था। उन्हें वर्ष 1992 में मरणोपरांत देश के दूसरे सर्वोच्च सम्मान ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया।

वी. शांताराम का निधन

भारतीय हिंदी फिल्मों में नए प्रयोग करने वाले ‘दादा साहब फाल्के’ पुरस्कार और ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित वी शांताराम का 88 वर्ष की उम्र में 30 अक्टूबर, 1990 को निधन हो गया।

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Raj Kumar

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