किसी फिल्म की सफलता को नापसंद करना मूर्खता है लेकिन अब जब ‘उरी’ ‘हिट’ हो ही चुकी है तो यह देखना दिलचस्प है कि फिल्म में क्या सही है और क्या गलत? अगर किसी फिल्म को इतना देखा जा रहा है तो क्या उस पर चर्चा नहीं होनी चाहिए कि फिल्म में मैसेज क्या जा रहा है?
आदित्य धर की फिल्म को काफी अच्छे से शूट किया गया और एडिट किया गया। फिल्म में देशभक्ति को हाइपर लेवल पर दिखाया गया है।
जब भी विक्की कौशल का किरदार दुखी होता है या गुस्से में आंसू बहाता है तो हम खुद को इमोशनल होने से रोक नहीं पाते। अब तक फिल्म निर्माताओं को उम्मीद है कि हमारे आर्म्ड फोर्सेज को ट्रिब्यूट देने पर दर्शक इतने खो जाएंगे कि उन्हें पीछे का कुछ शायद दिखाई ना पड़े और जनता सिर्फ कलेक्शन के आंकड़ों पर नजर रखेगी और इसमें फिल्म निर्माता सफल भी हो रहे हैं। और शायद यही फिल्म के पीछे ना देख पाना ‘उरी’ को ‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ से भी ज्यादा खतरनाक फिल्म बनाता है।
‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ को इतने घटिया तरीके से बनाया गया है कि जो लोग राजनीतिक रूप से किसी एक पार्टी की ओर झुकाव भी रखते हैं वो लोग भी इसे सीरीयसली नहीं ले सकते। आदित्य धर की फिल्म इस स्पेक्ट्रम के दूसरी तरफ स्थित है। फिल्म में परेश रावल का किरदार यह कोशिश करता है कि युद्ध, पड़ोसी देश पर हमला करना, सर्जिकल स्ट्राइक करना सभी बहादुरी के काम हैं जो कि इस नए भारत में भी साकार हो सकता है।
मौजूदा प्रधान मंत्री को फिल्म में एक जगह दी जाती है और कहलवाया जाता है कि “देश भी तो मां है”। राजनेताओं को ‘अच्छी रोशनी’ में दिखाने के लिए आप इस प्रयास को और क्या कहेंगे? क्या यह प्रचार नहीं है?
फिल्म में यही दिखाया जाता है कि सत्ता पक्ष से हर बात पर हरी झंडी मिलती है। फिल्म में इसके राजनेता और अभिनेता खुले तौर पर दक्षिणपंथी विचारधारा के साथ नजर आते हैं। निर्देशक शहीदों की वीरता को श्रद्धांजलि देना भूल गए। कहीं ना कहीं डायरेक्टर “ सियाचिन में हमारे जवान लड़ रहे हैं” डायलोग का प्रचार करते हुए नजर आते हैं। धर की फिल्म आर्म्ड फोर्सेज को एक पंच लाइन की तरह यूज करती नजर आती है। इसमें पाकिस्तान फोबिया को दिखाना डायरेक्टर ने कतई उचित नहीं समझा।
Uri की बॉक्स ऑफिस सफलता भारतीय दर्शकों के लिए एक अलार्म है जिन्हें शायद इस फिल्म से उतना फर्क नहीं पड़ता कि यह क्या मैसेज डिलीवर करती है। ये कहना कितना सही है ”फिल्म ही तो है यार”
ऐसा नहीं है कि हम भूल जाते हैं। ये 1930 के दशक के अंत में और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 1940 के दशक की शुरुआत में आने वाली फिल्मों की तरह थी। अमेरिकी और ब्रिटिश दोनों फिल्में आम जनता के लिए हथियारों की तरह थीं। प्रभावी रूप से युवा सैनिकों को भर्ती करने के लिए संबंधित सरकारों के हाथ में फिल्में एक हथियार की तरह थीं। हिटलर के नाजी शासन ने भी लेनिन रिफ़ेन्स्टहल की पसंद पर भरोसा करते हुए लाखों जर्मन नागरिकों का ब्रेनवॉश किया कि वे अब तक के सबसे महान देश में कैसे रहें। हम सभी जानते हैं कि वहां अंत में क्या हुआ?
सत्तारूढ़ पार्टी की जवानों की बहादुरी की कहानियों पर विश्वास करना आसान है और जब यह विक्की कौशल जैसे एक्टर के साथ आती है तो इसका प्रभाव भी ज्यादा होता है। यह कहा जा रहा है कि सिनेमा सरकार के लिए आम जनता में एक धारणा बनाने के लिए सबसे आसान तरीका है। और कैसे किसी चीज को ‘सत्य’ के रूप में बेचा जा सकता है। पहले भी ऐसा हो चुका है। क्या इससे पहले प्रधानमंत्री और बॉलीवुड सितारों के बीच कम समय में इतनी सारी मीटिंग्स होती थीं?
यह समय उन सभी तर्कों को खारिज करता है जिसमें राजनीति को सिनेमा के बाहर रखने की सलाह दी जाती है। एक अच्छी तरह से बनाई गई प्रचार फिल्म अभी भी है … एक प्रचार फिल्म ही है। फिल्मों में एक बड़े झूठ को दोहराया जाता है जब तक कि हमारे पास वो एक सच ही बचा रह जाता है।
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