हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार, एकांकी और नाटककार उपेन्द्रनाथ शर्मा ‘अश्क’ की आज 113वीं जयंती है। अश्क ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत उर्दू से की थी, लेकिन मुंशी प्रेमचंद की सलाह से वह हिंदी में रचना लिखने लगे थे। उपेन्द्रनाथ अश्क ऑल इंडिया रेडियो से भी जुड़े हुए थे। उन्हें नाटक लेखन में उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष 1965 में ‘संगीत नाटक अकादमी’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार पाने वाले उपेन्द्रनाथ अश्क पहले हिंदी नाटककार थे। उन्होंने बचपन में कई सपने देखे, जिनमें से कुछ को पूरा करने में वे सफल भी रहे। इस खास अवसर पर जानिए उनके बारे में कुछ अनसुनी बातें…
उपन्यासकार उपेन्द्र नाथ शर्मा का जन्म 14 दिसंबर, 1910 को पंजाब के जालंधर में हुआ था। वह एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार से आते थे। उनके पिता पंडित माधोराम थे, जोकि स्टेशन मास्टर हुआ करते थे। अश्क 6 भाइयों में दूसरे नंबर के थे। उपेन्द्रनाथ ने जालंधर से अपनी मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। बाद में यहीं डीएवी कॉलेज से वर्ष 1931 में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करने में भी कामयाब रहे। इसी समय उनका ‘नौ रत्न’ शीर्षक से लघु कहानियों का पहला संग्रह प्रकाशित हुआ था।
अश्क बचपन से ही अध्यापक, लेखक, संपादक, वकील और एक्टर-डायरेक्टर बनने तथा थियेटर या फिल्मों में जाने के सपने देखा करते थे। उपेन्द्र नाथ अश्क अपनी आरंभिक शिक्षा के वक्त ही पंजाबी में तुकबंदियां करने लगे थे। स्नातक करने के बाद उन्होंने अध्यापन का कार्य शुरू कर दिया था। उन्होंने वर्ष 1932 में शीला देवी नाम की महिला से शादी कीं।
वर्ष 1933 में उपेन्द्रनाथ अश्क अध्यापन कार्य छोड़ कर जीविकोपार्जन के लिए साप्ताहिक पत्र ‘भूचाल’ का संपादन करने लगे थे। उसी समय एक अन्य साप्ताहिक ‘गुरु घंटाल’ के लिए उन्हें हर सप्ताह एक रुपए में एक कहानी लिखकर दी। वर्ष 1934 में अश्क ने संपादन का कार्य छोड़कर लॉ कॉलेज में प्रवेश लिया और वर्ष 1936 में लॉ की डिग्री प्राप्त की।
कानून की डिग्री मिलने के बाद उन्होंने उप-न्यायाधीश (मजिस्ट्रेट) बनने की सोची, लेकिन नियति को यह मंजूर नहीं था। उनकी पत्नी उनके साथ ज्यादा समय नहीं रह पाई और टीबी (तपेदिक) नामक बीमारी के कारण उनका देहांत हो गया था। पत्नी के निधन के बाद अश्क ने मजिस्ट्रेट बनने का विचार त्याग दिया और स्वतंत्र लेखक बन गए। बाद में उन्होंने वर्ष 1941 में दूसरा विवाह किया। इसी साल उन्होंने ऑल इण्डिया रेडियो में नौकरी की।
उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ को दिसंबर, 1945 में फिल्म लेखन का कार्य करने के लिए निमंत्रण मिला। वर्ष 1947-48 उनके साहित्य लेखन का स्वर्णिम समय था। वर्ष 1948 से 1953 तक अश्क और उनकी पत्नी कौशल्या अश्क का जीवन काफी संघर्षमय बीता। बाद में वह इलाहाबाद आ गए। यहां पर उन्होंने अपना पूरा ध्यान साहित्यिक रचना और प्रकाशन दोनों पर फोकस किया। अश्क ने यहां अपनी कहानी, उपन्यास, निबन्ध, लेख, संस्मरण, आलोचना, नाटक, एकांकी, कविता आदि के क्षेत्रों में कार्य किया है।
उपेन्द्रनाथ ने अपना साहित्यिक कॅरियर उर्दू भाषा में शुरू किया था। उर्दू में उनके दो कहानी संग्रह ‘नव-रत्न’ और ‘औरत की फ़ितरत’ प्रकाशित हुए। परंतु मुंशी प्रेमचंद की सलाह पर अश्क ने हिंदी में लेखन कार्य आरंभ किया। वर्ष 1933 में प्रकाशित उनके दूसरे कहानी संग्रह ‘औरत की फितरत’ की भूमिका मुंशी प्रेमचन्द ने ही लिखी थी। उनका हिंदी में पहला संग्रह ‘जुदाई की शाम का गीत’ वर्ष 1933 में प्रकाशित हुआ।
प्रमुख रचनाएं
कहानी संग्रह: सत्तर श्रेष्ठ कहानियां, जुदाई की शाम का गीत, औरत की फितरत, काले साहब, पिंजरा, अंकुर, नासुर, चट्टान, गोखरू, बैंगन का पौधा, मेमने, केप्टन रशीद आदि।
उपन्यास: सितारों के खेल, गिरती दीवारें, गर्म राख, पत्थर अल पत्थर, शहर में घूमता आईना, एक नन्ही कंदील, और बड़ी-बड़ी आंखें आदि।
नाटक: लौटता हुआ दिन, बड़े खिलाड़ी, जय-पराजय, स्वर्ग की झलक, छठा बेटा, कैद और उड़ान, पैंतरे, अलग-अलग रास्ते, आदर्श और यथार्थ तथा अंजो दीदी।
काव्य: एक दिन आकाश ने कहा, प्रातः प्रदीप, दीप जलेगा, बरगद की बेटी, उर्म्मियां, रिजपर।
संस्मरण: मण्टो मेरा दुश्मन, फिल्मी जीवन की झलकियां, आलोचना अन्वेष्ण की सह यात्रा, हिन्दी कहानी एक अंतरंग परिचय।
एकांकी: अंधी गली के आठ एकांकी, मुखड़ा बदल गया, चरवाहे, नए रंग एकांकी, देवताओं की छाया में, साहब को ज़ुकाम है, पापी, वेश्या, लक्ष्मी का स्वागत, अधिकार का रक्षक, स्वर्ग की झलक, पक्का गाना, कइसा साब कइसी आया, तूफान से पहले, कस्बे के क्रिकेट क्लब का उद्घाटन, मस्केबाजों का स्वर्ग, पर्दा उठाओ पर्दा गिराओ, भंवर, जोंक, आपस का समझौता, पहेली, विवाह के दिन, नया-पुराना, चमत्कार, खिड़की, सूखी डाली, बहनें, कामदा, मेमूना, चिलमन, चुम्बक और तौलिये।
उपेन्द्रनाथ अश्क को हिंदी साहित्य में उनके योगदान के कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें वर्ष 1965 में ‘संगीत नाटक अकादमी’ पुरस्कार और वर्ष 1972 में ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ जैसे बड़े अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था।
हिंदी के प्रख्यात उपन्यासकार उपेन्द्रनाथ अश्क का 19 जनवरी, 1996 को प्रयागराज में निधन हो गया।
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